यूक्रेन पीस कांफ्रेंस से पीएम मोदी कर सकते हैं किनारा, जानें- क्या है कारण

यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए भारत किसी भी शांति पहल का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन रूस को अपमानित करन के पश्चिमी प्रयासों के पीछे खड़ा होगा उसकी संभावना नहीं हैं.

Update: 2024-05-23 09:21 GMT

पश्चिमी देश जून के महीने में स्विटजरलैंड में होने वाले वैश्विक शांति सम्मेलन में भारत को शामिल करने के लिए बेताब हैं. इस सम्मेलन में दुनिया के शीर्ष राजनेता भाग लेंगे. वे यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को अलग-थलग करने के लिए अंतरराष्ट्रीय राय खासकर विकासशील देशों के नजरिए को समझना चाहते हैं. यूक्रेन में शांति पर शिखर सम्मेलन 15-16 जून को स्विस शहर बर्गेनस्टॉक में आयोजित किया जाएगा. जाहिर है, इस सम्मेलन का उद्देश्य यूक्रेन में युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करना और शांति स्थापित करना है. लेकिन, शांति की बात करने के बहाने के पीछे यह रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का एक और प्रयास है. 

भारत का शांति रुख

अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गुट ने रूस के आक्रमण को लेकर संयुक्त राष्ट्र में उसे घेरने के कई प्रयास किए हैं. लेकिन वह अधिकांश देशों को मास्को के खिलाफ एक आम राय बनाने में विफल रहा है. भारत यूक्रेन में खून-खराबे को खत्म करने के लिए बातचीत के जरिए समाधान के पक्ष में खड़ा है और उसने कुछ शांति पहलों में हिस्सा भी लिया है. पिछले साल भारत ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा जेद्दा में आयोजित एक बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था.अभी यह स्पष्ट नहीं है कि भारत किस स्तर पर स्विटजरलैंड सम्मेलन में शामिल होगा.

रूस युद्ध जीत रहा है?

शांति सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को बढ़ते सैन्य समर्थन के बावजूद रूस को व्यापक रूप से जीतते देखा जा रहा है. कीव यानी यूक्रेन को मास्को से हारे हुए क्षेत्रों को वापस जीतना बहुत मुश्किल होगा. स्विट्जरलैंड में प्रयास रूस को बदनाम करने और उसे सैन्य रूप से नहीं तो कूटनीतिक रूप से हराने के लिए शर्मिंदा करने का होगा. पश्चिम चाहता है कि भारत न केवल सम्मेलन में भाग ले बल्कि सक्रिय राजनीतिक भागीदारी भी करे. इस तरह पश्चिमी देश चाहते हैं कि यदि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा चुने जाते हैं तो वे भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करें.

पश्चिमी देशों की पैरवी

इसके लिए जबरदस्त लॉबिंग चल रही है. हाल के महीनों में, यूरोप से कई उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भारत आए. यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा, स्विस विदेश मंत्री इग्नाजियो कैसिस और स्विस विदेश सचिव एलेक्जेंडर फासेल सरकार को समझाने के लिए दिल्ली में थेऔर वो समझाने की कोशिश कर रहे थे कि मोदी को बैठक में भाग लेना चाहिए. मौजूदा लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आएंगे. अगर मोदी जीतते हैं, तो उनके 14-15 जून को इटली में ग्रुप ऑफ सेवन (जी-7) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने की उम्मीद है. इसलिए स्विस कार्यक्रम के आयोजकों का मानना ​​है कि जी-7 शिखर सम्मेलन के बाद मोदी को उनके शांति सम्मेलन में भाग लेने में कोई परेशानी नहीं होगी.

सम्मेलन के लिए 160 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को निमंत्रण भेजा गया है, जिनमें ग्लोबल साउथ के कई नेता भी शामिल हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन,  जी-7 नेताओं और चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपतियों को आमंत्रित किया गया है. लेकिन रूस को बाहर रखा गया है. इस पर पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने टिप्पणी की कि यह उस शादी में शामिल होने जैसा है जहां दूल्हा गायब है।

पुतिन को नहीं है न्यौता 

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बाहर रखा गया है. सम्मेलन में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के 10-सूत्रीय शांति फॉर्मूले पर चर्चा होगी, जिनसे अधिकतमवादी रुख स्पष्ट करने की उम्मीद है. ज़ेलेंस्की रूस द्वारा कब्ज़ा किए गए यूक्रेनी क्षेत्रों की तत्काल वापसी चाहते हैं, युद्ध में विनाश और जीवन की हानि के लिए मास्को द्वारा  मुआवजे का भुगतान और युद्ध अपराधों के लिए रूसी नेताओं और जनरलों पर मुकदमा चलाना चाहते हैं. पुतिन, जिन्होंने पिछले सप्ताह चीन का दौरा किया था. उन्होंने स्विस सम्मेलन को निरर्थक और खोखली विद्वतावाद की कवायद बताया था जिसमें कम से कम कुछ ठोस परिणाम मिलने की उम्मीद ना के बराबर है. 

पश्चिमी देशों में हताशा 

चीन ने कहा है कि वह किसी भी शांति सम्मेलन का समर्थन करेगा जिसमें रूस और यूक्रेन दोनों शामिल होंगे. पश्चिम भारत को लुभाने की लगातार कोशिश जारी रखे हुए है. भारत ने अब तक युद्ध में तटस्थता बनाए रखी है और संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने वाले किसी भी प्रतिबंध या बयान का समर्थन नहीं किया है.  भारत को अपने प्रयास में समर्थन देने में विफलता ने अमेरिकी और यूरोपीय नेताओं को निराश किया है, इससे यूक्रेन युद्ध को लोकतंत्र और निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई के रूप में पेश करने की उनकी कोशिश कमजोर हो गई है. भारत को विकासशील देशों के बीच काफी प्रभाव रखने वाले और पश्चिम के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करने वाले के रूप में देखा जाता है. यदि नरेंद्र मोदी स्विट्जरलैंड की बैठक में भाग लेते हैं और  कुछ बिंदुओं का समर्थन करते हैं, तो इसे रूस के समर्थकों के बीच दरार पैदा करने के लिए पश्चिम द्वारा एक बड़े कदम के रूप में देखा जाएगा. हालांकि भारत यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए किसी भी शांति पहल का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इसकी संभावना ना के बराबर है जिसमें वो रूस को अपमानित करने की कोशिश करने वाले पश्चिमी प्रयास के पीछे एकजुट होगा.

मायने रखता है रूस

मॉस्को भारत का करीबी रणनीतिक साझेदार है और उसने कई बार इसका समर्थन किया है. यह भारत का मुख्य रक्षा भागीदार है. दोनों देश व्यापार और निवेश से लेकर परमाणु और अंतरिक्ष तक के क्षेत्रों में भी सहयोग करते हैं. अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि रूस भारत को चीन और अमेरिका दोनों के खिलाफ बचाव की इजाजत देता है. भारत की कोशिश यह सुनिश्चित करने की है कि चीन के साथ उसका सीमा तनाव युद्ध में न बदल जाए। उसे रूस के साथ मजबूत संबंध सुनिश्चित करने होंगे क्योंकि चीन के साथ संबंध एक चुनौती बने रहेंगे. इसके अलावा अमेरिकियों के साथ बढ़ते संबंधों के बावजूद रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने से नई दिल्ली को रणनीतिक स्वतंत्रता और अमेरिका के साथ बेहतर सौदेबाजी की शक्ति मिली है।संकेत बताते हैं कि हालांकि चुनाव जीतने पर मोदी के इटली में जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है, लेकिन वह स्विट्जरलैंड से दूर रह सकते हैं और शांति बैठक के लिए निचले स्तर का प्रतिनिधिमंडल भेज सकते हैं.

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