दबे गुस्से को आरक्षण की चिंगारी ने दी हवा, शेख हसीना की बर्बादी की कहानी
शेख हसीना अब बांग्लादेश की पीएम नहीं है। इस समय वो भारत में है। यह बात सच है कि उनके खिलाफ आरक्षण के मुद्दे पर आक्रोश था। लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी सी है।
Sheikh Hasina News: शेख हसीना ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस तरह से उन्हें अपना वतन छोड़ना होगा। इस तरह की जानकारी सामने आई कि वो देश को संबोधित करना चाहती थीं। लेकिन सेना ने कहा कि उनके पास सिर्फ 45 मिनट है और वो देश छोड़ दें। इसके बाद उनके पास विकल्प बेहद सीमित हो गए। वो हेलिकॉप्टर के जरिए अगरतला आईं और वहां से दिल्ली के करीब गाजियाबाद। लेकिन सवाल है कि 15 साल तक शासन करने वाली शेख हसीना के लिए मुश्किल इतनी कैसे बढ़ गई। क्या आरक्षण का विषय उन पर भारी पड़ा। या बरसों का दबा गुस्सा था जिसे आरक्षण की चिंगारी ने शोलों में बदल दिया। यह बात सच है कि तात्कालिक वजह आरक्षण का मुद्दा है। लेकिन असंतोष और गुस्से की कहानी पुरानी है।
यूनुस पर आरोप लगा कि ग्रामीण टेलीकॉम के श्रमिक कल्याण कोष से हेराफेरी की थी। दरअसल नार्वे की कंपनी टेलीनॉर की सहायक कंपनी ग्रामीण टेलीकॉम है और नोबल शांति पुरस्कार से यूनुस सम्मानित किए गए थे। लिहाजा नार्वे से कनेक्शन जोड़ा गया। बताया जाता है कि मोहम्मद यूनुस के काम से बांग्लादेश की जनता खुश थी। उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी लिहाजा शेख हसीना उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी मानती थीं।
सुरेंद्र कुमार सिन्हा केस
मोहम्मद यूनुस के बाद एक और नाम है सुरेंद्र कुमार सिन्हा की। सुरेंद्र कुमार सिन्हा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कुछ सरकार विरोधी फैसले सुनाए थे और उसकी वजह से उन्हें देश से बाहर कर दिया गया। सिन्हा पर भ्रष्टाचार के दो केस में 11 साल की सजा सुनाई गई. मनी लॉन्ड्रिंग के केस में सात और क्रिमिनल कांस्पिरेसी के मामले में चार साल की सजा थी.इसके साथ ही साल 2014 में राणा प्लाज और तजरीन फैशन की वजह से भी लोगों में गुस्सा था। राणा प्लाजा हादसे में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे। लेकिन उसके मालिकों को मामूली सजा मिली थी। जनता को लगता था कि अगर हसीना सरकार ने पैरवी की होती तो सजा बढ़ सकती थी। इसी तरह से तजरीश फैशन मामले में 117 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन इसके गुनहगारों के खिलाफ हल्की धाराओं में केस चल रहा है। इसकी वजह से लोग एक तरह से भरे पड़े थे।