आस्था बनाम अधिकार, प्रीअह विहेयर विवाद में उलझे दो पड़ोसी देश

थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर शिव मंदिरों को लेकर खूनी संघर्ष जारी है। प्राचीन मंदिर एक बार फिर टकराव का केंद्र बन चुके हैं।;

Update: 2025-07-25 09:17 GMT

कंबोडिया के डांगरेक पर्वतों की चोटी पर स्थित 900 साल पुराना प्रीअह विहेयर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू तीर्थस्थल है। 525 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर सिर्फ कंबोडियावासियों के लिए नहीं, बल्कि पड़ोसी थाईलैंड के लोगों के लिए भी धार्मिक आस्था का केंद्र है। इससे लगभग 95 किलोमीटर पश्चिम में ता मुएन थोम मंदिर स्थित है, जो 12वीं शताब्दी का एक और शिव मंदिर है।

हालांकि इन मंदिरों की प्रसिद्धि अंगकोरवाट जैसे विश्वप्रसिद्ध स्थलों के आगे फीकी पड़ जाती है, लेकिन ये मंदिर पिछले पचास वर्षों से अधिक समय से थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद का केंद्र बने हुए हैं।

सीमा पर एक बार फिर भड़की हिंसा

गुरुवार को दोनों देशों के बीच फिर से हिंसक झड़पें शुरू हो गईं, जो पिछले एक दशक की सबसे गंभीर मानी जा रही हैं। इस संघर्ष में 12 लोगों की मौत, दर्जनों घायल और हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना पड़ा। इस बार संघर्ष की शुरुआत गुरुवार तड़के थाईलैंड के सुरिन प्रांत में स्थित ता मुएन थोम मंदिर के पास हुई। थाई सेना का दावा है कि कंबोडियाई सैनिकों ने उनकी सैन्य चौकियों के पास ड्रोन से निगरानी की कोशिश की, और जब उन्होंने तनाव कम करने की कोशिश की तो सुबह 8:20 बजे भारी गोलीबारी शुरू हो गई।

थाईलैंड का आरोप है कि कंबोडिया की सेना RPG (रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड) जैसे हथियारों से लैस थी, और उन्होंने आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई की। वहीं कंबोडिया ने आरोप लगाया कि थाई सेना ने उनकी संप्रभुता का उल्लंघन किया है।इस संघर्ष के बाद थाईलैंड ने सभी सीमा चौकियों को बंद कर दिया और चेतावनी स्तर को "स्तर 4" तक बढ़ा दिया। करीब 40,000 से ज्यादा नागरिकों को 86 गांवों से निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

प्राचीन मंदिर और सीमा विवाद

यह विवाद औपनिवेशिक काल की सीमाओं के निर्धारण को लेकर चला आ रहा है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने कंबोडिया के पक्ष में फैसला दिया और थाईलैंड को सैनिकों की वापसी और मंदिर से चुराए गए पुरावशेष लौटाने का आदेश दिया।

यह फैसला 1907 के एक फ्रांसीसी नक्शे पर आधारित था, जिसमें मंदिर को फ्रेंच संरक्षित कंबोडिया क्षेत्र में दिखाया गया था। उस समय थाईलैंड (तब सियाम) ने इस नक्शे को स्वीकार कर लिया था, लेकिन बाद में कहा कि उसने यह गलतफहमी में किया कि सीमा प्राकृतिक जल-रेखा के अनुसार है। कोर्ट ने थाईलैंड की दलील को खारिज कर दिया।2013 में, जब मंदिर पर फिर से सैन्य झड़पें हुईं, तब ICJ ने साफ कर दिया कि न सिर्फ मंदिर, बल्कि उसके आसपास का क्षेत्र भी कंबोडिया का हिस्सा है और थाई सेना को वहां से हटना होगा।

ता मुएन थोम, ताज़ा संघर्ष का केंद्र

ता मुएन थोम मंदिर, जो डांगरेक की घने जंगलों वाली सीमा पर स्थित है, इस बार के संघर्ष का मुख्य केंद्र रहा। यह मंदिर ता मुएन, ता मुएन थोम, और ता मुएन टोट नामक तीन मंदिरों का समूह है।ता मुएन थोम का वास्तुशिल्प अपने आप में अनोखा है — इसका गर्भगृह दक्षिण की ओर स्थित है, जबकि अधिकांश खमेर मंदिरों का मुख पूर्व की ओर होता है। मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग प्रतिष्ठापित है।

फरवरी में, इसी मंदिर में कंबोडियाई सैनिकों द्वारा राष्ट्रगान गाने पर विवाद हुआ था, जिससे दोनों देशों की सेनाओं में टकराव की स्थिति बनी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

राजनीति और उपनिवेशवाद की लकीरें

1863 में जब फ्रांस ने कंबोडिया को संरक्षित राज्य घोषित किया, तब 1904 से 1907 के बीच फ्रांस और सियाम के बीच कई समझौते हुए। फ्रांसीसी मानचित्रकारों ने जल-प्रवाह के आधार पर सीमाएं तय कीं, लेकिन प्रीअह विहेयर जैसे सांस्कृतिक स्थलों को लेकर अपवाद बनाए।दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहासकारों का मानना है कि ये यूरोपीय सीमांकन पद्धतियां क्षेत्रीय परंपराओं से मेल नहीं खातीं। फ्रांसीसी नक्शों ने कंबोडिया को एक निश्चित "भौगोलिक इकाई (geo-body)" के रूप में दर्शाया, जिसमें प्रीअह विहेयर भी शामिल था। थाईलैंड ने इन सीमाओं का लगातार विरोध किया, खासकर जब आधुनिक तकनीकों ने पुराने नक्शों की असंगतियां उजागर कीं।

2008 में, जब कंबोडिया ने प्रीअह विहेयर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित करवाया, तो थाईलैंड ने इसका विरोध किया। तत्कालीन थाई विदेश मंत्री नोपाडोन पट्टामा को इस फैसले का समर्थन करने पर इस्तीफा देना पड़ा। उसी वर्ष मंदिर के पास फिर से झड़पें हुईं, जिनमें दोनों तरफ सैनिक मारे गए।

प्राचीन मंदिरों की ये आस्था की लकीरें, आज राजनीतिक सीमा की खींचतान बन गई हैं। औपनिवेशिक नक्शों, ऐतिहासिक दावों और सांस्कृतिक गौरव के बीच उलझा यह विवाद बार-बार खून-खराबे की वजह बनता है। जब तक दोनों देश संवाद और साझे इतिहास को स्वीकार नहीं करते, तब तक यह पवित्र भूमि युद्ध का मैदान बनी रहेगी।

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