रूसी तेल पर भारत को घेरते हुए मार्को रुबियो बोले- साझेदार जैसा बर्ताव नहीं

अमेरिका ने भारत पर टैरिफ क्यों लगाया। भारत से डोनाल्ड ट्रंप क्यों खफा हैं। इस विषय पर विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने वजह बताई।;

Update: 2025-08-01 02:13 GMT
अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (बाएं) अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो (दाएं)

US Tariff on India: भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में तनाव लगातार गहराता जा रहा है। ताज़ा घटनाक्रम में अमेरिका ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया है, जो 1 अगस्त से प्रभावी हो गया है। यह निर्णय ऐसे समय आया है जब भारत ने अमेरिका के विरोध के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखा है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्पष्ट किया है कि यही रूस-भारत तेल व्यापार वॉशिंगटन की नाराजगी का प्रमुख कारण है।

रूसी तेल खरीद से अमेरिका खफा

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और वर्तमान विदेश मंत्री मार्को रुबियो दोनों ही भारत के रूस से तेल खरीदने पर खुलकर नाराजगी जता चुके हैं। फॉक्स रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में रुबियो ने कहा कि भारत की यह रणनीति यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड कर रही है। उन्होंने इसे अमेरिका और भारत के रिश्तों में  चिढ़ने की वजह बताया। 

डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने भाषणों में यह स्पष्ट किया है कि वे भारत की ऊर्जा नीतियों से निराश हैं। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत के पास तेल खरीदने के अन्य विकल्प मौजूद हैं, इसके बावजूद वह रूस से तेल आयात जारी रखे हुए है। ऐसे में अमेरिका की ओर से लगाया गया 25 प्रतिशत टैरिफ एक सीधा संकेत है कि भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और व्यापारिक नीति अमेरिका को अस्वीकार्य है।

भारत की मजबूरी,ऊर्जा ज़रूरतें और सस्ता विकल्प

भारत ने बार-बार दोहराया है कि उसकी ऊर्जा ज़रूरतें विशाल हैं और उसे सस्ते स्रोतों की आवश्यकता है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने भी स्वीकार किया कि भारत की ऊर्जा मांग बहुत अधिक है और वह तेल, कोयला और गैस जैसे संसाधनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध सबसे किफायती स्रोत से प्राप्त करता है—जिसमें रूस प्रमुख है। रूस, पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते बाज़ार से सस्ती दरों पर कच्चा तेल बेच रहा है, और भारत उसके प्रमुख खरीदारों में शामिल है।

कृषि और डेयरी सेक्टर बना बाधा

भारत-अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौता भी इसी तनाव का शिकार हो गया है। अमेरिका, भारत से कृषि, डेयरी, मक्का, सोयाबीन, सेब और बादाम जैसे उत्पादों के लिए अपने बाज़ार खोलने की मांग कर रहा है। लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से इन क्षेत्रों में टैरिफ कम करने से इनकार कर दिया है।

भारत का कहना है कि अमेरिकी सब्सिडी वाले कृषि उत्पाद भारतीय किसानों को तबाह कर देंगे। खासकर जब बात आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) चावल, गेहूं और सोयाबीन की हो, तो भारत ने ऐसे किसी भी समझौते को खारिज किया है। भारत की दलील है कि इस तरह के निर्णय से करीब 70 करोड़ ग्रामीण नागरिकों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, जिसमें 8 करोड़ से अधिक छोटे डेयरी किसान शामिल हैं।

कूटनीतिक संकेत और रणनीतिक असहमति

भारत और अमेरिका के बीच गहराते मतभेद केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें रणनीतिक असहमति भी शामिल है। भारत की तटस्थ विदेश नीति जो यूक्रेन युद्ध में किसी पक्ष का समर्थन नहीं करती अमेरिका को असहज कर रही है। भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि वह बहुध्रुवीय दुनिया की कल्पना करता है, जहां राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं।

वहीं अमेरिका का रुख इस समय अधिक स्पष्ट और दबावपूर्ण है। वह चाहता है कि भारत, चीन की चुनौती से निपटने के लिए पश्चिमी गठबंधन का हिस्सा बने, लेकिन भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता करने को तैयार नहीं दिखता। भारत और अमेरिका दोनों के पास एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने के ठोस कारण हैं चाहे वह रक्षा, तकनीक, या भू-राजनीतिक स्थिरता हो। लेकिन रूस से तेल खरीद, कृषि बाजारों तक पहुंच और वैश्विक प्रतिबंधों के अनुपालन जैसे मुद्दे आपसी विश्वास में बाधा बन रहे हैं।

अमेरिका का टैरिफ निर्णय और भारत की नीति-निर्धारण की स्वायत्तता के बीच यह संघर्ष अगले कुछ महीनों में किस दिशा में जाता है, यह तय करेगा कि दोनों लोकतांत्रिक शक्तियों के संबंध सतही बने रहेंगे या रणनीतिक गहराई तक पहुंचेंगे।

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