ट्रंप की टैरिफ नीति ने हिला दी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था, ट्रेड को बना लिया अपना हथियार
ट्रंप अपने टैरिफ नीति से इतिहास को झकझोर रहे हैं। चीन पर 145% और भारत पर 26% टैरिफ लगाकर अमेरिका ने ये साफ कर दिया कि यह सिर्फ आर्थिक नीति नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार है।;
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर दुनिया को यह दिखा रहे हैं कि जब अमेरिका अपने हितों की बात करता है, तो उसे वैश्विक परंपराओं की परवाह नहीं होती। रेसिप्रोकल टैरिफ का इस्तेमाल अब सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है—यह अमेरिका के वैश्विक रिश्तों की परिभाषा बदलने की कोशिश है। उनके समर्थकों के लिए यह एक साहसिक कदम है, ठीक वैसे ही जैसे 15 अगस्त 1971 को रिचर्ड निक्सन ने गोल्ड स्टैंडर्ड को तोड़कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था।
इतिहास खुद को दोहरा रहा है
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने वैश्विक व्यापार को हिला कर रख दिया हो। 1930 में स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट के ज़रिए 20,000 से अधिक आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाकर अमेरिका ने जो कदम उठाया, उसने दुनिया को आर्थिक अंधकार में धकेल दिया। उस समय यह कहा गया कि यह कदम अमेरिकी किसानों और उद्योगों को बचाने के लिए था — लेकिन इसका नतीजा हुआ वैश्विक व्यापार युद्ध। टकराव बढ़ा, देशों ने एक-दूसरे पर टैरिफ थोपे, और महान मंदी और गहराती चली गई। बेरोज़गारी 25% तक पहुँच गई, और दुनिया का भरोसा व्यापार की नींव से डगमगा गया।
1971 का गोल्ड शॉक: जब डॉलर की नींव हिल गई
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की आर्थिक व्यवस्था को जब 1971 में रिचर्ड निक्सन ने एक झटके में बदल दिया, तो पूरी दुनिया हक्की-बक्की रह गई। "निक्सन शॉक" ने न सिर्फ डॉलर को सोने से तोड़ा, बल्कि उस भरोसे को भी तोड़ दिया जिस पर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढाँचा खड़ा था। अमेरिका की यह ‘अस्थायी घोषणा’ फिर कभी वापस नहीं ली गई। और यह अस्थायी कदम एक स्थायी बदलाव बन गया।
तेल का झटके ने जब क़ीमतें बढ़ा दीं
गोल्ड शॉक के ठीक दो साल बाद, एक और तूफ़ान उठा। 1973 में OPEC ने अमेरिका पर तेल का बहिष्कार लगाया। क़ीमतें आसमान छूने लगीं, और अमेरिका को अपनी ऊर्जा निर्भरता का एहसास हुआ—कड़वा, लेकिन ज़रूरी। यह सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि एक आर्थिक बदला था। OPEC ने महसूस किया कि डॉलर के अवमूल्यन ने उनकी कमाई आधी कर दी थी। सोने और तेल का अनुपात ही उलट गया — तेल सोने से कीमती हो गया।
जिमी कार्टर की जद्दोजहदट्रंप की टैरिफ नीति: एक बार फिर हिल रही है वैश्विक व्यवस्थाट्रंप की टैरिफ नीति: एक बार फिर हिल रही है वैश्विक व्यवस्था
1977 से 1980 के बीच, जिमी कार्टर ने उस ऊर्जा संकट से लड़ने की ठानी। अलोकप्रिय फैसलों के बावजूद, उन्होंने भविष्य की नींव रखी — ऊर्जा मंत्रालय बनाया, तेल भंडारण शुरू किया, और सौर ऊर्जा में निवेश किया। यह वो समय था जब अमेरिका ने पहली बार खुद पर भरोसा करना शुरू किया। तीन वर्षों में उत्पादन में ज़बरदस्त उछाल आया, और OPEC की पकड़ ढीली पड़ने लगी।
ट्रंप की वापसी और पुराने जख्म हुए ताजा
और अब 2025 में, ट्रंप फिर से इतिहास को झकझोर रहे हैं। चीन पर 145% और भारत पर 26% टैरिफ लगाकर अमेरिका ने ये स्पष्ट कर दिया है कि यह सिर्फ आर्थिक नीति नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार है। यह उस राष्ट्रवाद की वापसी है जो कहता है अमेरिका फर्स्ट, चाहे बाकी दुनिया कुछ भी सोचे।