टकराव-टैरिफ के दौर में फेड ने बरती सावधानी, ब्याज दरों में बदलाव नहीं
फेडरल रिजर्व ने जुलाई बैठक में ब्याज दरें 4.25%–4.5% पर स्थिर रखीं। दिसंबर 2024 से दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अब अगली बैठक सितंबर 2025 में होनी है।;
Fed Reserve Rate: अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) ने 29-30 जुलाई 2025 को संपन्न हुई बैठक के बाद अपनी प्रमुख ब्याज दरों को यथावत रखने का फैसला किया है। मौजूदा दरें 4.25 प्रतिशत से 4.5 प्रतिशत के बीच बनी रहेंगी। यह लगातार आठवीं बैठक है जिसमें फेड ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।
फेडरल रिजर्व की यह नीति दिसंबर 2024 से ही लागू है, जब आखिरी बार दरों को वर्तमान स्तर तक बढ़ाया गया था। तब से अब तक फेड ने मौद्रिक नीति को स्थिर बनाए रखा है ताकि आर्थिक अस्थिरता और वैश्विक परिस्थितियों से निपटा जा सके।
भू-राजनीतिक तनाव और व्यापारिक अस्थिरता बनी चुनौती
फेड के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक आर्थिक वातावरण में भू-राजनीतिक तनाव, खासकर पश्चिम एशिया और पूर्वी यूरोप में, तथा टैरिफ और व्यापार शुल्कों से संबंधित अनिश्चितताएं आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर रही हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए केंद्रीय बैंक ने "सावधानीपूर्वक रुख" अपनाया है और दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।
महंगाई नियंत्रण और आर्थिक वृद्धि की दोहरी चुनौती
फेडरल रिजर्व का प्राथमिक उद्देश्य मुद्रास्फीति (महंगाई) को अपने लक्षित स्तर पर नियंत्रित करना और साथ ही रोजगार वृद्धि और आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखना है। पिछले कुछ महीनों में महंगाई दर में कुछ गिरावट देखने को मिली है, लेकिन यह अब भी फेड के 2 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है।
फेड की इस नीति को वेट एंड वॉच रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें ब्याज दरों को बिना बदले वैश्विक घटनाओं और घरेलू आर्थिक संकेतकों पर नजर रखी जा रही है। यदि आने वाले महीनों में महंगाई में तेजी आती है या आर्थिक विकास में सुस्ती बढ़ती है, तो फेड अगले निर्णय में बदलाव कर सकता है।
फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की अगली बैठक सितंबर 2025 में होनी है। उस समय यह देखा जाएगा कि क्या मौजूदा वैश्विक हालात और घरेलू आर्थिक संकेतक फेड को ब्याज दरों में परिवर्तन करने की दिशा में ले जाते हैं या नहीं। फेडरल रिजर्व ने फिलहाल ब्याज दरों को स्थिर रखकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है। वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताएं और भू-राजनीतिक जोखिमों को देखते हुए यह निर्णय वित्तीय बाजारों में स्थिरता बनाए रखने की एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।