भारत-ब्रिटेन एफटीए में वादों की चमक, लफ्ज़ बड़े लेकिन असर छोटे?

भारत-यूके FTA को ऐतिहासिक बताया गया है। लेकिन दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं है। यही नहीं कार्बन टैक्स, पेटेंट, MSME जैसे मुद्दों पर सवालों के जवाब बाकी हैं।;

Update: 2025-07-25 02:01 GMT

लंदन में 24 जुलाई को भारत और ब्रिटेन के बीच एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर औपचारिक हस्ताक्षर हुए। हालांकि दोनों देशों ने इसे 'ऐतिहासिक' बताया जैसा कि 6 मई को बातचीत समाप्त होने के समय भी किया गया था। लेकिन समझौते का मूल दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। यही गोपनीयता इस समझौते की सच्ची प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना कठिन बना रही है और 6 मई के बाद से उठ रहे कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।

व्यापार दोगुना, लेकिन कैसे?

भारत का दावा है कि यह समझौता वर्ष 2030 तक भारत-ब्रिटेन व्यापार को दोगुना कर देगा—56 अरब डॉलर से 120 अरब डॉलर तक। सुनने में यह आकर्षक लगता है, खासकर जब 99% भारतीय निर्यातों को ब्रिटिश बाज़ार में ड्यूटी-फ्री प्रवेश और 90% ब्रिटिश आयातों पर औसत शुल्क 15% से घटाकर 3% किया गया है।लेकिन क्या यह व्यापार को वास्तव में पाँच साल में दोगुना करने के लिए पर्याप्त है?

व्यापार के आँकड़े कुछ और ही कहते हैं FY23 में व्यापार में वृद्धि: 16.8%, FY24 में गिरावट: 4.8%, FY25 में मामूली सुधार: 8.5% सेवा क्षेत्र के व्यापार के आँकड़े तो मौजूद ही नहीं हैं, ऊपर से अमेरिका द्वारा शुरू किए गए टैरिफ युद्ध ने वैश्विक व्यापार को पहले ही संकट में डाल दिया है।

कार्बन टैक्स-श्रम मानक पर अस्पष्टता के बादल

ब्रिटेन जनवरी 2026 से कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM) लागू करने पर अड़ा है। यह कर उन वस्तुओं पर लगाया जाएगा जिन्हें कार्बन-इंटेंसिव माना जाएगा।

क्या भारत को इस टैक्स से छूट मिली है?

इस पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यह चिंता इसलिए भी अहम है क्योंकि यूरोपीय संघ भी इसी तरह का टैक्स लगाने की तैयारी में है। इसके साथ ही ब्रिटेन द्वारा श्रम मानकों पर संभावित कठोर नियम भारत के श्रमिक-प्रधान निर्यातकों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर सकते हैं।

पेटेंट का संकट

एक और बड़ा मुद्दा है भारत में पेटेंट कानून को कमजोर करने का दबाव। 2024 में भारत ने EFTA-India TEPA समझौते में पेटेंट से जुड़ी प्रक्रियात्मक सुरक्षा कमजोर की। 2024 के पेटेंट संशोधन नियमों में एवरग्रीनिंग (बार-बार पेटेंट नवीनीकरण) की अनुमति दी। इससे बड़ी फार्मा कंपनियों को फायदा और भारत के नागरिकों को आवश्यक दवाओं से वंचित किए जाने का खतरा बढ़ गया है।

FTA की 2022 में लीक हुई बातचीत से यह संकेत मिला था कि ब्रिटेन, भारतीय पेटेंट कानूनों में बदलाव चाहता था ताकि वह TRIPS के दायरे से आगे जाकर कंपनियों को विशेष संरक्षण दे सके। यह मुद्दा अब भी जस का तस बना हुआ है।

MSME सेक्टर को लगेगा झटका?

भारत ने सहमति दी है कि ब्रिटिश कंपनियों को सरकारी खरीद में 'क्लास-2 सप्लायर' के रूप में मान्यता मिलेगी, यदि उनके उत्पाद या सेवा का कम से कम 20% हिस्सा ब्रिटेन से आता हो।

यह निर्णय सीधे तौर पर भारतीय MSME सेक्टर को नुकसान पहुंचा सकता है। घरेलू कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर सकता है। यही MSME सेक्टर वो है जिसे वाणिज्य मंत्रालय ने इस समझौते के प्रमुख लाभार्थियों में गिना है।

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा इस समझौते को लेकर जो सामान्य दावे किए गए, उन्होंने कई व्यापार विशेषज्ञों को नाराज़ कर दिया। एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर इन बयानों को "बिल्कुल अप्रासंगिक" कहा, क्योंकि उनमें कोई ठोस तथ्य नहीं दिए गए।

समझौता ऐतिहासिक या रणनीतिक भ्रम?

भारत-यूके FTA को लेकर भले ही सरकारें उत्साह दिखा रही हों, पर जब तक पूरे समझौते का पाठ सार्वजनिक नहीं होता। कार्बन टैक्स, पेटेंट कानून और श्रम मानकों पर स्पष्टता नहीं आती। MSME और किसानों के वास्तविक प्रभावों का आकलन नहीं होता तब तक इसे ऐतिहासिक कह देना जल्दबाज़ी होगी। यह समझौता जितनी संभावनाएं लेकर आया है, उतनी ही अनिश्चितताएं भी साथ लाया है। भारत को अब बेहद सावधानी से इन नीतिगत जालों से पार पाना होगा।

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