Indian Sovereign Debt Market: सरकारी बॉन्ड को अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड इंडेक्स में किया गया शामिल
भारतीय सॉवरेन डेट मार्केट के लिए नये युग की शुरुआत हो रही है. सरकारी बॉन्ड को अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड इंडेक्स में शामिल किया गया है.
Indian Sovereign Debt Market: भारतीय सॉवरेन डेट मार्केट (Indian sovereign debt market) के लिए शुक्रवार से एक नये युग की शुरुआत हो रही है. क्योंकि सरकारी बॉन्ड को अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड इंडेक्स में शामिल किया गया है, जो अरबों डॉलर के विदेशी निवेश आएगा.
जेपी मॉर्गन 28 जून से अपने GBI-EM ग्लोबल इंडेक्स सूट में 27 पूरी तरह से सुलभ भारतीय सरकारी बॉन्ड शामिल करेगा, जिससे वैश्विक निवेशक इन बॉन्ड में फंड लगा सकेंगे. बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने का मतलब है कि इंडेक्स को ट्रैक करने के लिए अनिवार्य फंड मैनेजरों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह से भारतीय बॉन्ड में पूंजी का एक स्थिर आवंटन होना.
जेपी मॉर्गन के अनुसार, दस महीने की अवधि में भारत के GBI-EM ग्लोबल डायवर्सिफाइड इंडेक्स में अधिकतम 10% तक पहुंचने की उम्मीद है. जेपी मॉर्गन ने 22 सितंबर 2023 को भारत के शामिल होने की घोषणा की थी, तब से 10.5 बिलियन डॉलर के विदेशी निवेश पूरी तरह से सुलभ भारतीय सरकारी बॉन्ड को इंडेक्स में शामिल किया जाना है. मार्केट एक्सपर्ट का अनुमान है कि अगले 10 महीनों में कम से कम 20 बिलियन डॉलर का फ्लो और होगा. सितंबर से अब तक कॉरपोरेट बॉन्ड में विदेशी स्वामित्व में भी 1 बिलियन डॉलर से थोड़ा ज़्यादा की वृद्धि हुई है.
वहीं, 28 जून से पहले बाजार में इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि इस दिन कितना निवेश आएगा. क्योंकि विदेशी निवेशकों ने पिछले दस दिनों में ही एक बिलियन डॉलर से ज़्यादा की सरकारी प्रतिभूतियां खरीदी हैं. इस बीच बैंक भी हरकत में आ गए हैं. क्योंकि लंबे समय से प्रतीक्षित इस विकास से उनके लिए नए कारोबारी अवसर खुल गए हैं.
HSBC इंडिया का मानना है कि हम बड़ी संख्या में ऐसे फंड को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो सीधे पहुंच के ज़रिए सरकारी बॉन्ड में डील करना चाहते हैं. हमने पिछले छह महीनों में अमेरिका, लंदन, हांगकांग और सिंगापुर जैसे बाजारों में रोड शो आयोजित किए हैं. जिसमें इच्छुक निवेशकों से मुलाकात की गई है.
वहीं, विदेशी निवेशकों की उल्लेखनीय मांग ने सरकारी बॉन्ड यील्ड को नीचे धकेल दिया है. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक को उम्मीद है कि सितंबर के अंत तक 10-वर्षीय बॉन्ड यील्ड 24 अंक गिरकर 6.75% हो जाएगी. बॉन्ड की कीमतें और यील्ड विपरीत दिशा में चलती हैं. यह देखते हुए कि सरकारी बॉन्ड यील्ड कॉरपोरेट बॉन्ड यील्ड निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बेंचमार्क हैं, हाईक रेटिंग वाली भारतीय फर्मों को भी आगे चलकर लाभ होने की संभावना है.
बार्कलेज इंडिया का कहना है कि अब वैश्विक एसेट मैनेजर्स का एक बड़ा हिस्सा भारतीय फिक्स्ड इनकम मार्केट्स में शामिल हो रहा है. इसलिए हमने कॉरपोरेट बॉन्ड स्पेस में भी बढ़ती दिलचस्पी देखनी शुरू कर दी है. क्योंकि इनमें से कुछ निवेशक IGB से आगे बढ़कर स्थानीय क्रेडिट में जाना चाहते हैं. IGB के लिए FPI सब-अकाउंट, कस्टोडियन सर्विसेज और ऑपरेशनल वर्कफ़्लो की स्थापना पहले ही की जा चुकी है. वे अब कॉरपोरेट बॉन्ड के लिए इसका लाभ उठाने की सोच रहे हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक पारंपरिक रूप से विदेशी निवेशकों के लिए सरकारी बॉन्ड मार्केट खोलने को लेकर सतर्क रहा है. खासकर साल 2013 के 'टेपर टैंट्रम' जैसे प्रकरणों के कारण विदेशी फंडों का पलायन हुआ, जिससे रुपये में तेज गिरावट आई और बॉन्ड यील्ड में उछाल आया. यह बताता है कि जेपी मॉर्गन द्वारा इसकी घोषणा करने से पहले इंडेक्स मैनेजर्स और घरेलू अधिकारियों के बीच 10 साल तक बातचीत क्यों जारी रही.