मिलेगा खुशखबरी? RBI ब्याज दरों में कर सकता है कटौती, जानें कब से होगा लागू

भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और घरेलू स्तर पर कम होती महंगाई के बीच रिजर्व बैंक (आरबीआई) रेपो रेट में कमी कर सकता है.

Update: 2024-09-27 12:01 GMT

RBI reduce repo rate: भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और घरेलू स्तर पर कम होती महंगाई के बीच अच्छी खबर मिल सकती है. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि रिजर्व बैंक (आरबीआई) रेपो रेट में कमी कर सकता है. ऐसा हुआ तो इसका फायदा सीधे तौर पर लोगों को मिलेगा. इसको लेकर यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड (यूबीएस) ने एक रिपोर्ट जारी की है.

'भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पांच प्रमुख प्रश्न' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) दिसंबर 2024 से ढील देना शुरू कर सकती है. एमपीसी रेपो रेट में 75 आधार अंकों की कमी कर सकती है. बता दें कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने पिछले सप्ताह अपनी प्रमुख ब्याज दर में 50 आधार अंकों की कमी की थी.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सर्वोत्तम हित में काम किया है. ऐसे में आरबीआई भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुकूल ब्याज दरों में कटौती के बारे में अपना निर्णय ले सकता है.

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली एमपीसी 7-9 अक्टूबर के दौरान बैठक करेगी और ब्याज दर पर फैसला लेगी. हालांकि, एमपीसी रिटेल महंगाई को अपने ध्यान में रख रहा है. जो जुलाई में 3.54 प्रतिशत से अगस्त में मामूली रूप से बढ़कर 3.65 प्रतिशत हो गई है. वहीं, पूरी महंगाई अब आरबीआई के 4 प्रतिशत के औसत लक्ष्य से नीचे है. अगस्त में खाद्य टोकरी में मूल्य वृद्धि की दर 5.66 प्रतिशत थी.

उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के जोखिमों के बीच आरबीआई ने अगस्त की द्विमासिक समीक्षा में रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया था और इसे 6.5 प्रतिशत ही रखा था. यह लगातार नौवीं एमपीसी बैठक थी, जिसमें रेपो रेट को बदलने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया था.

बता दे कि रिजर्व बैंक ने फरवरी 2023 से बेंचमार्क रेपो दर को अपरिवर्तित रखा है. पिछली बैठक में, छह में से चार एमपीसी सदस्यों ने यथास्थिति के पक्ष में मतदान किया. जबकि दो बाहरी सदस्यों ने दर में कटौती की वकालत की थी. इससे पहले, रिजर्व बैंक के गवर्नर दास ने भी कहा कि ब्याज दरों में नरमी का फैसला मासिक आंकड़ों के आधार पर नहीं, बल्कि लंबी अवधि की मुद्रास्फीति के अनुमान पर आधारित होगा.

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