GDP में भारी गिरावट, मजबूत आंकड़ों की तलाश में केंद्र सरकार
दूसरी तिमाही के जीडीपी के चौंकाने वाले आंकड़े आए हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था इस वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में अनुमान से अधिक तेज गति से सिकुड़ी है.
दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चौंकाने वाले आंकड़े आए हैं. इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में अनुमान से अधिक तेज गति से सिकुड़ी है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक विश्लेषक ने इसे "संक्षिप्त विराम" और अप्रत्याशित अंतराल कहा है. जबकि केयरएज रेटिंग्स के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि मंदी की मात्रा अपेक्षा से कहीं अधिक तेज थी.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 (वित्त वर्ष 25) की दूसरी तिमाही (Q2) में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई, जो वित्त वर्ष 25 की अप्रैल-जून तिमाही में 6.7 प्रतिशत से कम है और पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में दर्ज 8.1 प्रतिशत से काफी कम है.
हालांकि, सरकार ने जीडीपी के चौंकाने वाले आंकड़ों पर चिंताओं को खारिज कर दिया है और आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव अजय सेठ ने कहा है कि "ये आंकड़े चिंताजनक नहीं हैं". लेकिन अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. सेठ ने कहा है कि सरकार जल्द ही कार्रवाई करेगी. उन्होंने कहा कि दूसरी छमाही (अक्टूबर-मार्च) में हम सुनिश्चित करेंगे कि जीडीपी वृद्धि दर काफी बेहतर हो. दरअसल, अक्टूबर के कुछ उच्च आवृत्ति संकेतक इस ओर इशारा करते हैं. साथ ही, जब अधिक डेटा उपलब्ध होगा तो तिमाही अनुमानों को संशोधित किया जाएगा.
आधार वर्ष बदलना
एक और कदम जिस पर सरकार विचार कर रही है, वह है जीडीपी की गणना के लिए आधार वर्ष में बदलाव. वर्तमान में आधार वर्ष 2011-12 है और जिस नए आधार वर्ष पर विचार किया जा रहा है, वह 2022-23 है. जबकि विपक्ष और कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस कवायद को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के आंकड़ों को बेहतर बनाने के लिए एक दिखावा बताया है. सांख्यिकीविदों के बीच आम सहमति यह है कि आधार वर्ष में समय पर संशोधन से अधिक मजबूत आंकड़े और अर्थव्यवस्था की अधिक सटीक तस्वीर सामने आती है.
दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रहने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. एसबीआई ने उद्योग जगत में सुस्त वृद्धि को देश के सकल उत्पादन में कमी का मुख्य कारण बताया. केयरएज ने खराब सरकारी खर्च के कारण खनन और धीमी निर्माण गतिविधियों के लिए लंबे समय तक मानसून को जिम्मेदार ठहराया.
बेहतर संभावनाएं
लेकिन अर्थशास्त्री मोटे तौर पर अजय सेठ से सहमत दिखे और कहा कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही सकल घरेलू उत्पाद के लिए अधिक आशावादी होनी चाहिए. क्योंकि शहरी उपभोग परिदृश्य अनिश्चित रहने के बावजूद, अच्छी फसलों के कारण ग्रामीण उपभोग में वृद्धि होने की उम्मीद है. केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि हमें उम्मीद है कि सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय बढ़ाने के कारण वर्ष की दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि में तेजी आएगी. कृषि उत्पादन के स्वस्थ रहने का अनुमान है और इससे ग्रामीण खपत को और बढ़ावा मिलेगा. खाद्य मुद्रास्फीति में भी चौथी तिमाही तक नरमी आने की उम्मीद है और इससे खपत में तेजी आएगी. इसके अलावा शहरी खपत रोजगार परिदृश्य में सुधार और वास्तविक वेतन वृद्धि पर निर्भर करेगी. एसबीआई ने कहा कि वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में 6 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी वृद्धि के साथ पूरे वित्त वर्ष के लिए समग्र वृद्धि 6.5 प्रतिशत से कम होगी.
नये आधार वर्ष को उचित ठहराना
हालांकि, इस डर के बीच सरकार ने जीडीपी की गणना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आधार वर्ष को मौजूदा 2011-12 से बदलकर 2022-23 करने पर काम करना शुरू कर दिया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अधिकारियों ने कहा कि ऐसा अर्थव्यवस्था की अधिक सटीक तस्वीर दिखाने के लिए किया जा रहा है. नये आधार वर्ष के क्रियान्वयन की संभावित तिथि 2026 के प्रारम्भ में है. भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनोब सेन ने द फेडरल को बताया कि आधार वर्ष को आमतौर पर हर 10 साल में बदला जाना चाहिए. जैसे-जैसे आर्थिक प्रणाली बढ़ती है, सभी क्षेत्र एक ही दर से नहीं बढ़ते. समय के साथ, आधार वर्ष में क्षेत्रों का अनुपात बदलता है. फिर, नए उत्पाद बाजार में आ रहे हैं, पुराने उत्पाद खत्म हो रहे हैं. इसलिए जीडीपी की संरचना बदल रही है. मोटे तौर पर, आधार वर्ष में बदलाव हर 10 साल में किया जाना चाहिए, यही आदर्श है.
अन्य अर्थशास्त्री भी सहमत
सेन ने कुछ विपक्षी दलों और अर्थशास्त्रियों के उन आरोपों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि आधार वर्ष में बदलाव से आमतौर पर जीडीपी में कमी आती है. उन्होंने कहा कि इन दावों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस चाहते हैं कि आधार वर्ष में बदलाव और भी तेजी से हो. समाज में बदलते पैटर्न को देखते हुए किसी भी सूचकांक का आधार वर्ष और संरचना बदलना जरूरी है. बदलाव की गति के कारण हर पांच साल में उन पर पुनर्विचार करना जरूरी है. दुर्भाग्य से महामारी के कारण सही आधार वर्ष प्राप्त करना एक चुनौती है.
लेकिन राष्ट्रीय जनगणना में देरी हो रही है- भारत हर दशक के अंत में जनगणना करता है. क्या आधार वर्ष में संशोधन मजबूत जीडीपी डेटा के लिए पर्याप्त है? सेन ने कहा कि जनगणना सटीक जीडीपी गणना के लिए डेटा प्रदान करती है. लेकिन भारत के महापंजीयक से राष्ट्रीय स्तर के डेटा का उपयोग भी जीडीपी की गणना के लिए किया जा सकता है.
पुरानी वस्तुओं को हटाना
ब्रोकरेज फर्म आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने एक नोट में कहा कि सरकार नए आधार वर्ष के साथ-साथ कई समायोजन करेगी. लालटेन और वीसीआर जैसी पुरानी वस्तुओं को गणना की टोकरी से हटा दिया जाएगा. जबकि स्मार्टवॉच, फोन और प्रसंस्कृत खाद्य जैसे आधुनिक उत्पादों को जोड़ा जाएगा. इसके अतिरिक्त जीएसटी डेटा को सूचना के नए स्रोत के रूप में शामिल किया जाएगा.ब्रोकरेज ने यह भी कहा कि अगर इसकी गणना के लिए आधार वर्ष को समय-समय पर संशोधित नहीं किया जाता है तो वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान अधिक लगाया जा सकता है. समय के साथ मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. पुराने आधार वर्ष का उपयोग करने से वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान अधिक लगाया जा सकता है. क्योंकि इसमें बढ़ती कीमतों को ध्यान में नहीं रखा जाता है.