रुपया, विदेशी निवेश और आम भारतीय पर कैसे पड़ेगा अमेरिकी टैरिफ का असर?
आरबीआई को यह सलाह दी जा सकती है कि वह रुपये का मूल्य कृत्रिम रूप से ऊंचा बनाए रखने के लिए डॉलर (USD) न बेचे, क्योंकि इससे तब विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ेगा जब डॉलर का प्रवाह घट जाएगा.;
अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है. इसका असर सिर्फ भारत के निर्यातकों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि कई और मोर्चों पर दिखेगा. एक बड़ी ये चिंता है भारतीय मुद्रा यानी रुपये का अवमूल्यन. अगर रुपया काफी गिरता है — जैसा शुरुआती संकेत मिल रहे हैं — तो महंगाई बढ़ेगी, विदेशी निवेश धीमा पड़ेगा और विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट सकता है.
इस तरह की स्थिति विकास दर को बाधित करेगी, नौकरियों और मजदूरी पर असर डालेगी और मांग घटाएगी — यानी एक दुष्चक्र शुरू हो जाएगा.
रुपये में कमजोरी
रुपये की डॉलर के मुकाबले कीमत 4 अगस्त को 87.9 रुपये तक गिर गई, और 8 अगस्त को 87.6 रुपये पर रही. पिछले दो महीने में यह एशिया की सबसे ज्यादा प्रभावित मुद्राओं में से एक रहा है, और करीब 2% तक लुढ़का है.
असल गिरावट और ज्यादा हो सकती थी, लेकिन रिजर्व बैंक (RBI) समय-समय पर विदेशी मुद्रा बाजार में दखल देता रहा है.
अभी भारत के पास 30 मई 2025 तक 691.5 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा रिजर्व है — जो 11 महीने से ज्यादा के माल आयात को पूरा करने लायक है. चालू खाता घाटा (CAD) भी घटकर FY25 की तीसरी तिमाही में GDP का 1.1% रह गया है. लेकिन अगर लंबे समय तक RBI डॉलर बेचकर रुपया संभालने की कोशिश करता है, तो यह स्थिति खतरे में पड़ सकती है. जब निर्यात घटेंगे, तो डॉलर का प्रवाह भी सूख जाएगा.
रुपये को सहारा तब मिल सकता है जब टैरिफ हटा लिया जाए (25% टैरिफ 7 अगस्त से, बाकी 25% 27 अगस्त से लागू होगा), अमेरिकी फेड ब्याज दर घटाए या डॉलर कमजोर हो.
क्यों गिर सकता है रुपया?
चितन रिसर्च फाउंडेशन (CRF) के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अभिजीत मुखोपाध्याय के मुताबिक गिरावट दो चरणों में होती है—डॉलर की कमी यानी निर्यात घटने से डॉलर की सप्लाई घटेगी और उसकी मांग बढ़ेगी. दूसरा विकास पर असर - टैरिफ से GDP विकास दर में 0.6-0.8% की गिरावट आ सकती है, जिससे लंबी अवधि में FDI और शार्ट टर्म में FPI दोनों घटेंगे, और रुपये पर दबाव बढ़ेगा.
कमजोर विदेशी निवेश
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि FY23 और FY24 में सकल FDI प्रवाह में गिरावट रही, हालांकि FY25 में 14% की बढ़ोतरी हुई. लेकिन शुद्ध FDI प्रवाह FY25 में 97% गिरकर $353 मिलियन रह गया (FY24 में $10.1 अरब था). इसका कारण मौजूदा निवेशकों का मुनाफा बुक करना और पैसा बाहर ले जाना है. FPI प्रवाह भी FY25 में घटकर $1.7 अरब रह गया और FY26 (7 अगस्त तक) में $1.2 अरब का शुद्ध बिकवाली रहा है.
RBI की नीति पर सवाल
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन और उनके सहयोगियों ने 2024 में लिखा कि RBI ने 2022 में विनिमय दर नीति में बदलाव किया, जिससे तीन मौकों पर करीब $200 अरब का नुकसान हुआ. उन्होंने कहा कि इस नीति ने निर्यात प्रतिस्पर्धा घटाई और धीमी अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति को अनुपयुक्त बना दिया.
उन्होंने अनुमान लगाया कि यह नीति घरेलू कंपनियों की बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ECB) सस्ती करने के लिए अपनाई गई थी, ताकि वे विदेश से लंबे समय के लिए कम ब्याज पर कर्ज ले सकें. लेकिन कुल निजी निवेश में खास बढ़ोतरी नहीं हुई, और कंपनियों ने बस घरेलू उधार की जगह विदेशी उधार लेना शुरू कर दिया.
रुपये की गिरावट का असर किस पर?
आयातक और आम लोग: स्मार्टफोन, लैपटॉप जैसे आयातित या आयात-निर्भर उत्पाद महंगे होंगे.
निर्यातक: रुपये की गिरावट से उनके उत्पाद सस्ते होंगे, लेकिन फिलहाल अमेरिकी टैरिफ के कारण निर्यात ऑर्डर रुके हुए हैं.
कुछ अनुमान बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे 50% सामान अमेरिकी "छूट सूची" में हैं. FY24 में भारत का अमेरिका को 77.5 अरब डॉलर का गुड्स एक्सपोर्ट था.