धरती ने तोड़ी समय की लय, 9 जुलाई रहा अब तक का सबसे छोटा दिन
9 जुलाई 2025 को धरती सामान्य से 1.38 मिलीसेकंड तेज घूमी, जिससे दिन छोटा हो गया। वैज्ञानिक अब पहली बार 'नकारात्मक लीप सेकंड' की तैयारी में हैं।;
9 जुलाई, 2025 को पृथ्वी ने सामान्य से 1.38 मिलीसेकंड तेज़ घूमकर एक पूर्ण घूर्णन पूरा किया। यानी वह दिन 24 घंटे से थोड़ा कम था, और यह अब तक दर्ज किए गए सबसे छोटे दिनों में से एक बन गया। अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी घूर्णन और संदर्भ प्रणाली सेवा (IERS) के वैज्ञानिकों ने चेताया है कि आने वाले दिनों में पृथ्वी और भी तेज़ घूम सकती है। 23 जुलाई और 6 अगस्त को पृथ्वी क्रमशः 1.388 और 1.4545 मिलीसेकंड तेज़ घूमेगी, जिससे दिन और भी छोटे होंगे।
'दिन' वास्तव में क्या होता है?
हम आम तौर पर दिन को 24 घंटे का मानते हैं, यानी पृथ्वी द्वारा एक बार खुद के अक्ष पर घूमने में लगने वाला समय। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। जब पृथ्वी 360 डिग्री घूमती है, तो आकाश में एक दूरस्थ तारा फिर से ठीक उसी स्थान पर 23 घंटे, 56 मिनट और 4 सेकंड में पहुंचता है। इसे सिडेरियल डे या तारकीय दिन कहा जाता है। यह हमारे 24 घंटे के दिन से लगभग 4 मिनट छोटा होता है।
वहीं दूसरी ओर, यदि हम सूर्य की स्थिति के आधार पर दिन को मापें जैसे एक दोपहर से अगली दोपहर तक तो यह सौर दिन वर्ष भर बदलता रहता है। पृथ्वी की कक्षा अण्डाकार होने के कारण, जब यह सूर्य के पास होती है (जनवरी में), तब तेज़ चलती है और जब दूर होती है (जुलाई में), तब धीमी। पृथ्वी की झुकी हुई धुरी भी इसमें भूमिका निभाती है।
इस कारण सौर दिन की लंबाई भी बदलती रहती है। कभी यह 24 घंटे 30 सेकंड का होता है (दिसंबर के अंत में), और कभी 23 घंटे 59 मिनट 38 सेकंड (सितंबर मध्य में)। इसी भिन्नता को औसत कर एक मीन सौर दिन यानी 86,400 सेकंड (24 घंटे) तय किया गया, जिस पर हमारी घड़ी आधारित है।
9 जुलाई, 2025 को पृथ्वी ने यह पूरा घूर्णन सिर्फ 86,399.9986154 सेकंड में किया — यानी 23 घंटे, 59 मिनट, 59.9985793 सेकंड में।
‘लेन्थ ऑफ डे’ (LOD) क्या है?
वैज्ञानिकों की भाषा में Length of Day (LOD) उस समय की गणना है, जितनी पृथ्वी को एक पूरा चक्कर लगाने में लगती है। इसे मापने के लिए वैज्ञानिक Very Long Baseline Interferometry (VLBI) तकनीक का उपयोग करते हैं, जो आकाशगंगाओं के कोनों में मौजूद क्वासार्स से रेडियो संकेतों का अध्ययन करता है।
इन संकेतों की आवृत्ति और स्थिति के आधार पर पृथ्वी की वास्तविक घूर्णन गति (Universal Time - UT1) मापी जाती है, जिसकी तुलना हमारे 86,400 सेकंड वाले ‘घड़ी समय’ से की जाती है। अगर LOD पॉजिटिव हो तो इसका अर्थ है कि पृथ्वी की गति धीमी हो रही है; और अगर नेगेटिव हो, तो वह तेज़ घूम रही है।
करोड़ों साल पुराना समय संकेत
प्राचीन समय में वैज्ञानिकों के पास घड़ी नहीं थी, लेकिन आज के पुराजैवविज्ञानी (palaeontologists) ने कोरल जीवाश्मों से पता लगाया है कि करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी कितनी तेज़ घूमती थी। कोरल प्रतिदिन और प्रतिवर्ष अपने शरीर पर परतें बनाते हैं। इन परतों की गिनती से पता चलता है कि एक वर्ष में कितने दिन होते थे।
उदाहरण के लिए, मिड-डेवोनियन युग (लगभग 38.5 करोड़ साल पहले) के कोरल में सालाना 400 परतें पाई गईं। यानी तब पृथ्वी एक वर्ष में 400 बार घूमती थी। इसका मतलब एक दिन सिर्फ 22 घंटे का होता था। इसी प्रकार डायनासोर युग में यह बढ़कर 23 घंटे हो गया। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले 20 करोड़ वर्षों में एक दिन 25 घंटे का हो सकता है।
ऐतिहासिक ग्रंथों में छुपे समय के संकेत
इतिहासकार भी इस गुत्थी में शामिल हैं। प्राचीन ग्रहणों का रिकॉर्ड जैसे 15 अप्रैल 136 ईसा पूर्व का पूर्ण सूर्यग्रहण, जो बेबीलोन में देखा गया। वैज्ञानिकों को पृथ्वी की पुरानी गति को जानने में मदद करता है। कंप्यूटर सिमुलेशन से यह पता चला कि यदि पृथ्वी की घूर्णन गति थोड़ी तेज़ या धीमी होती, तो वह ग्रहण बेबीलोन से नहीं दिखता। ऐसे रिकॉर्ड बताते हैं कि पृथ्वी की घूर्णन धीरे-धीरे धीमी हो रही है अनुमानतः हर सदी में 1.74 से 1.8 मिलीसेकंड तक।
पृथ्वी की अनियमित गति और ‘लीप सेकंड’
1960 के दशक में परमाणु घड़ियों के आगमन के बाद वैज्ञानिकों को पता चला कि पृथ्वी बिल्कुल स्थिर गति से नहीं घूमती। ये छोटे बदलाव जब सालों तक जुड़ते हैं, तो हमें Leap Second जोड़ने की जरूरत होती है ठीक वैसे जैसे हम हर चार साल में Leap Year जोड़ते हैं।
1972 में पहली बार Leap Second जोड़ी गई। अब तक 27 बार ऐसा हुआ है आखिरी बार 2016 में। ये सभी सकारात्मक Leap Seconds थे यानी पृथ्वी धीरे घूम रही थी। लेकिन अब, पहली बार वैज्ञानिकों को नकारात्मक Leap Second जोड़नी पड़ सकती है क्योंकि पृथ्वी तेज़ घूमने लगी है।
अचानक तेज़ घूम क्यों रही पृथ्वी?
इस सवाल का जवाब वैज्ञानिकों को अभी भी पूरी तरह नहीं मिला है। एक अनुमान यह है कि पृथ्वी के अंदर मौजूद पिघले हुए लोहे-निकेल के कोर में बदलाव से द्रव्यमान का पुनर्वितरण हो रहा है, जिससे पृथ्वी तेज़ घूम रही है। इसके अलावा, चंद्रमा का असमान गुरुत्वाकर्षण, बड़े भूकंप (जैसे 2004 का सुमात्रा भूकंप), महासागर की धाराएं, मौसमी हवाएं (जैसे एल नीनो), सब पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित करते हैं।
9 जुलाई, 2025 को लूनर स्टैंडस्टिल के कारण चंद्रमा ने पृथ्वी के घूमने में एक अतिरिक्त झटका दिया। पृथ्वी एक स्पिनिंग चेयर की तरह है जब आप हाथ अंदर करते हैं तो गति बढ़ती है। कुछ ऐसा ही पृथ्वी के साथ होता है जब उसका द्रव्यमान अंदर या बाहर खिसकता है।
क्यों मायने रखते हैं मिलीसेकंड?
हमारे लिए एक मिलीसेकंड कुछ नहीं आंख झपकने में लगभग 100 मिलीसेकंड लगते हैं। लेकिन आधुनिक तकनीक में इसका मतलब बहुत है। सिर्फ 1 मिलीसेकंड की देरी से GPS में सैकड़ों मीटर की गड़बड़ी आ सकती है। मिसाइल सिस्टम, स्पेस डॉक्सिंग, डिजिटल बैंकिंग और क्लाउड नेटवर्किंग सब कुछ मिलीसेकंड पर टिका है।
समय पर नियंत्रण की होड़
भारत दशकों तक विदेशी GPS और टाइम सिस्टम (अमेरिका, रूस) पर निर्भर रहा। कारगिल युद्ध के समय अमेरिका ने भारत की पहुंच रोक दी थी। इसके बाद भारत ने अपना नेविगेशन सिस्टम NavIC (IRNSS) विकसित किया। शुरुआत में ISRO को पश्चिमी देशों से Atomic Clocks मंगवानी पड़ीं, जो बाद में फेल हो गईं। कुछ वैज्ञानिकों ने इसे साजिश माना। लेकिन 2023 में भारत ने अपनी स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी तैयार की और उसे NavIC सैटेलाइट में स्थापित किया। अब भारत अपने टाइम सिंक्रोनाइज़ेशन के लिए भी आत्मनिर्भर बन रहा है।
पृथ्वी की घूर्णन गति का यह रहस्य एक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और तकनीकी रोमांच से कम नहीं। जहां एक ओर यह ब्रह्मांड की विशालता का अहसास कराता है, वहीं यह बताता है कि हर मिलीसेकंड मायने रखता है। चाहे वह स्पेस मिशन हो या आपके फोन का टाइम।पृथ्वी का अचानक तेज़ घूमना एक पहेली है, जिसका उत्तर शायद अभी भविष्य के वैज्ञानिक ही देंगे। लेकिन तब तक, हमारी घड़ियों को भी इसकी रफ्तार से कदम मिलाकर चलना होगा।