जेएनयू छात्रसंघ में लेफ्ट का परचम, एबीवीपी की वापसी

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में AISA-DSF गठबंधन ने तीन शीर्ष पदों पर जीत दर्ज की, ABVP ने 9 साल बाद जॉइंट सेक्रेटरी पद पर कब्जा जमाया।;

Update: 2025-04-29 10:19 GMT
नवनिर्वाचित जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष नितीश कुमार, महासचिव मुन्तहा फातिमा और उपाध्यक्ष मनीषा प्रेस वार्ता में।

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्रसंघ चुनाव के नतीजे रविवार देर रात घोषित हुए, जिसमें वामपंथी गठबंधन ने तीन प्रमुख पदों — अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव — पर जीत दर्ज की। AISA और DSF के गठबंधन ने RSS समर्थित ABVP को हराया, हालांकि संयुक्त सचिव पद पर ABVP ने नौ साल का सूखा खत्म करते हुए वापसी की।

AISA से जुड़े नितीश कुमार ने अध्यक्ष पद के लिए 1,702 वोट हासिल कर ABVP की शिखा स्वराज (1,430 वोट) को हराया, जबकि SFI की तय्यबा अहमद तीसरे स्थान पर रहीं (918 वोट)। DSF ने पहली बार दो केंद्रीय पैनल पद जीते — मनीषा उपाध्यक्ष बनीं (1,150 वोट) और मुंतहा फातिमा महासचिव (1,520 वोट) चुनी गईं।

संयुक्त सचिव पद पर ABVP के वैभव मीणा ने 1,518 वोट पाकर AISA उम्मीदवार को 85 वोटों से हराया, जो संगठन की 2015 के बाद पहली केंद्रीय पैनल जीत है।

वामपंथी एकता में क्यों आई दरार?

पिछले चुनावों की तुलना में इस बार वामपंथी दल एकजुट नहीं थे। AISA ने DSF से गठबंधन किया, जबकि SFI ने AISF, BAPSA और PSA के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। गठबंधन में दरार का कारण सिर्फ वैचारिक मतभेद नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर की रणनीतियाँ और नेतृत्व के बीच की खींचतान थी।

सूत्रों के मुताबिक, CPI(M) और CPI(ML) लिबरेशन की राज्य स्तरीय नेतृत्व कोशिश कर रहे थे कि छात्र संगठन एक साथ लड़ें, लेकिन उम्मीदवार चयन को लेकर सहमति नहीं बन पाई। अध्यक्ष पद पर दोनों ही दलों ने अपना दावा ठोका और कोई झुकने को तैयार नहीं था।

छात्रों की पसंद: क्यों चुना AISA-DSF को?

JNU में हमेशा से वामपंथ का प्रभाव रहा है, और जब एकता संभव नहीं हो पाई, तब छात्रों ने सबसे प्रभावशाली गठबंधन को समर्थन देना बेहतर समझा। कई छात्रों के अनुसार, AISA-DSF गठबंधन ज़्यादा स्वाभाविक और संगठित दिखा, जबकि SFI-BAPSA गठबंधन को लेकर भ्रम था।

BAPSA ने हमेशा वाम और दाहिने दोनों ही ताकतों का विरोध किया है। जब उनके उम्मीदवार रामनिवास गुर्जर ने SFI के साथ महासचिव पद के लिए चुनाव लड़ा, तो संगठन ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इसका असर नतीजों में भी दिखा, जहां छात्र इस गठबंधन से प्रभावित नहीं दिखे।

ABVP की प्रगति: एक सीट जीती, बाकी में दूसरे स्थान पर

हालांकि ABVP केवल एक पद जीत सकी, लेकिन उसने सभी अन्य प्रमुख पदों पर दूसरा स्थान हासिल किया और 20 से ज़्यादा काउंसलर सीटों पर कब्ज़ा किया — जिनमें से दो सीटें स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ में थीं, जहां वे 25 साल बाद जीते।

फिर भी जीत नहीं मिलने का कारण JNU की गहरी राजनीतिक पृष्ठभूमि है। छात्र भले ही वामपंथ में बंटे थे, लेकिन ABVP को रोकने के लिए वे एकजुट थे। JNUSU अध्यक्ष नितीश ने कहा, “छात्रों ने साफ तौर पर तय किया कि ABVP को नहीं जीतने देना है।”

ABVP के संयुक्त सचिव बने वैभव मीणा ने इसे “ऐतिहासिक जीत” बताया, लेकिन यह भी माना कि अगर ज़्यादा मेहनत होती तो और सीटें जीत सकते थे। उन्होंने यह भी कहा कि “राष्ट्रीयता और छात्र सेवा” के बीच कोई अंतर नहीं है।

वामपंथी दलों के बीच दरार के बावजूद सभी यह मानते हैं कि ABVP जैसी ताकतों से लड़ने के लिए एकता ज़रूरी है। उपाध्यक्ष मनीषा ने कहा, “अगर हमें इस परिसर को फासीवादी ताकतों से बचाना है, तो सभी वाम और प्रगतिशील संगठनों को एक होना पड़ेगा।”

पूर्व अध्यक्ष गीताश्री (AISA) ने चुनाव परिणामों पर टिप्पणी करते हुए फेसबुक पोस्ट में लिखा, “लॉकडाउन के बाद से वाम संगठनों की छात्रों के साथ संवादहीनता शुरू हुई, जिससे छात्र खुद को इससे जोड़ नहीं पाए। अब ज़रूरत है आत्ममंथन की, न कि दोषारोपण की।”

पूर्व महासचिव सतरूपा चक्रवर्ती (SFI) ने AISA को बधाई दी, लेकिन चेताया कि ABVP की गतिविधियों पर नज़र रखना ज़रूरी है। उन्होंने लिखा, “पूरे वाम दलों को इस नतीजे का विश्लेषण करना चाहिए और केवल एक संगठन को दोष नहीं देना चाहिए।”

अध्यक्ष नितीश ने यह भी कहा, “हम सभी एकजुट होकर काम करेंगे। इस परिसर को वामपंथ ने बनाया है, और हम इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे।”

जेएनयू छात्र राजनीति एक बार फिर बदलाव के मुहाने पर है। जहां एक ओर ABVP ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, वहीं वामपंथ के लिए यह वक्त है आत्मचिंतन और एकजुटता का। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या छात्रसंघ मिलकर छात्रों की समस्याओं का समाधान करेगा या फिर अंतर्कलह राजनीति पर भारी पड़ जाएगी।

Tags:    

Similar News