मछली बेचने वाले का बेटा बना इंजीनियर, बिना कोचिंग पास की IIT
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के दिव्येंदु चौधरी ने बिना कोचिंग IIT JAM क्रैक कर IIT खड़गपुर में एडमिशन लिया। जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी।;
यह सच है कि “जिस इंसान के इरादे बुलंद होते हैं, उसके आगे आसमान भी झुक जाता है.” इस कहावत को पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव के दिव्येंदु चौधरी ने अपनी मेहनत और हौसले से सही साबित कर दिखाया है. बेहद सीमित संसाधनों और मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद दिव्येंदु ने IIT जैसी कठिन परीक्षा को बिना किसी कोचिंग के पास किया और अब वे IIT खड़गपुर में पढ़ाई कर रहे हैं.
गांव से शुरू हुआ सफर
दिव्येंदु का जन्म पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के सत्तरी गांव में हुआ. उनका बचपन सुविधाओं से कोसों दूर बीता. उनके पिता मछली बेचकर परिवार का खर्च चलाते थे, जबकि उनकी मां एक साधारण गृहिणी थीं. पढ़ाई के लिए न अच्छी किताबें थीं, न सही माहौल, और न ही कोचिंग जैसी सुविधा. लेकिन दिव्येंदु की लगन और मेहनत ने इन सभी मुश्किलों को मात दे दी.
सरकारी स्कूल से IIT तक का सफर
दिव्येंदु ने शुरुआती पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से की और फिर मालदा टाउन हाई स्कूल से 12वीं कक्षा पास की. इसके बाद उन्होंने कोलकाता के बिधाननगर गवर्नमेंट कॉलेज में फिजिक्स ऑनर्स में एडमिशन लिया। यहीं से उन्होंने IIT JAM (Joint Admission Test for MSc) की तैयारी शुरू की.
बिना कोचिंग IIT खड़गपुर तक
जहां ज्यादातर छात्र IIT JAM की तैयारी के लिए महंगी कोचिंग का सहारा लेते हैं, वहीं दिव्येंदु ने खुद से पढ़ाई करने का फैसला किया. उन्होंने पहली ही कोशिश में JAM जैसी कठिन परीक्षा को पास किया और आज वे IIT खड़गपुर से अर्थ साइंस में MSc कर रहे हैं.
दूसरी तरफ टॉप इंस्टीट्यूट्स में लापरवाही
दिव्येंदु जैसे छात्र IIT को अपनी मंजिल मानते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि देश के कई टॉप इंस्टीट्यूट्स ही नियमों के पालन में पीछे हैं. हाल ही में यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने खुलासा किया है कि देश के 89 हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस को एंटी-रैगिंग नियमों का पालन न करने पर डिफॉल्टर घोषित किया गया है.