अब सिर्फ भूत नहीं, सोच भी डराती है कहानी, बदलता दिख रहा है बॉलीवुड हॉरर
रामसे ब्रदर्स की डरावनी फिल्मों से लेकर ‘स्त्री’, ‘भेड़िया’ और ‘मुनज्या’ जैसी हॉरर कॉमेडी तक जानिए कैसे बदल गया बॉलीवुड का हॉरर सिनेमा.
जरा सोचिए आधी रात का समय, टूटी हवेली की दीवारें, हवा में झूलता परदा और सफेद साड़ी में एक औरत हाथ में मोमबत्ती लिए गुनगुना रही है गुमनाम है कोई… ये क्लासिक डर का दौर था जब बॉलीवुड हॉरर फिल्मों में रहस्य, संगीत और अंधेरा मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते थे कि दर्शक सीट से उठ न पाएं. अब सोचिए दूसरी तरफ एक लाल साड़ी वाली चुड़ैल, जो सिर्फ अकेले मर्दों का शिकार करती है और लोग दीवारों पर खून से लिखते हैं आज मत आना. यही है आधुनिक बॉलीवुड हॉरर, जहां डर के साथ कहानी, व्यंग्य और संदेश भी शामिल हैं. हॉरर फिल्मों का ये सफर 1940 के दशक की ‘महल’ से लेकर 2020 की ‘स्त्री’ और ‘मुनज्या’ तक, भारतीय सिनेमा के विकास की दिलचस्प कहानी है.
रामसे ब्रदर्स सस्ते डर का सुनहरा दौर
1949 में अशोक कुमार और मधुबाला की ‘महल’ ने भारतीय हॉरर की नींव रखी थी. इसके बाद ‘मधुमती’ (1958) और ‘वो कौन थी?’ (1964) जैसी फिल्मों ने रहस्य और रोमांस को डर के साथ जोड़ा, लेकिन 1970–80 के दशक में जब रामसे ब्रदर्स ने एंट्री मारी, तो हॉरर फिल्मों को एक नई पहचान मिली. कम बजट में बनी उनकी फिल्में ‘पुराना मंदिर’ (1984), ‘पुरानी हवेली’ (1989) और ‘दो गज जमीन के नीचे’ (1972) लोगों के लिए सस्ते लेकिन जोरदार डर का जरिया बन गईं.
उनकी फिल्मों की खासियत क्या थी?
डर और भूत के साथ हल्की-फुल्की कामुकता, डरावना संगीत और गूंजती हवेलियां और बिना VFX के साउंड और मेकअप का जादू. शाम रामसे की बेटी साशा श्याम रामसे ने बताया था कि पापा ने ‘वीराना’ में चुड़ैल का हेयरस्टाइल एक पिघली हुई ई-क्लेयर देखकर बनाया था और गर्म तवे की आवाज से साउंड इफेक्ट तैयार किया था. रामसे परिवार ने बाद में टीवी पर भी डर का जादू चलाया थी. जैसे कि ‘जी हॉरर शो’ (1993–2001) जो आज भी लोगों की यादों में है.
राम गोपाल वर्मा और विक्रम भट्ट- हॉरर को मिला मॉडर्न ट्विस्ट
1990 के दशक में रामसे ब्रदर्स पीछे हटे, तो बॉलीवुड हॉरर की जिम्मेदारी उठाई राम गोपाल वर्मा, विक्रम भट्ट और एकता कपूर ने. उनकी फिल्मों ‘रात’ (1992), ‘राज’ (2002), ‘भूत’ (2003), ‘1920’ (2008) और ‘रागिनी MMS’ (2011) ने डर को शहरी अंदाज में पेश किया. ये फिल्में तकनीकी रूप से मजबूत थीं, पर बाद की सीक्वल्स ने दर्शकों को उतना आकर्षित नहीं किया. फिर भी, इन निर्देशकों ने दिखा दिया कि भारतीय हॉरर सिर्फ हवेलियों तक सीमित नहीं, बल्कि मॉडर्न अपार्टमेंट्स और मेट्रो सिटीज़ तक फैल चुका है.
भूल भुलैया से मिली नई दिशा- डर में हंसी का तड़का
साल 2007 में प्रियदर्शन की ‘भूल भुलैया’ ने खेल बदल दिया. अक्षय कुमार के कॉमिक टाइमिंग और विद्या बालन के दमदार अभिनय ने दिखाया कि डर और हंसी साथ-साथ चल सकते हैं. इसके बाद ‘गो गोआ गॉन’ (2013), ‘परी’ (2018) और ‘बुलबुल’ (2020) ने साबित किया कि हॉरर को अलग-अलग रूपों में पेश किया जा सकता है. कभी जोम्बी कॉमेडी, तो कभी फेमिनिस्ट फैंटेसी.
तुम्बाड और स्त्री- डर को मिली गहराई और समाज का आईना
साल 2018 बॉलीवुड हॉरर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. राही अनिल बर्वे की ‘तुम्बाड’ ने दिखाया कि असली डर भूतों में नहीं, बल्कि मानव लालच में छिपा है. सोहम शाह के मुताबिक, ये वही कहानियां हैं जो हमारी दादियां सुनाया करती थीं, लेकिन अब बड़े पर्दे पर. इसी साल अमर कौशिक की ‘स्त्री’ आई. एक ऐसी चुड़ैल की कहानी जो सिर्फ पुरुषों का शिकार करती है, लेकिन साथ ही समाज को एक व्यंग्यात्मक आईना भी दिखाती है. ‘स्त्री’ की सफलता के बाद ‘भेड़िया’, ‘मुनज्या’ और ‘स्त्री 2’ जैसे फिल्मों ने हॉरर यूनिवर्स की शुरुआत की, जो आज भी दर्शकों को रोमांचित कर रहा है.
छोटे कस्बों में लौटता डर
इन नई फिल्मों ने हॉरर को हवेलियों से निकालकर छोटे शहरों और गांवों में पहुंचा दिया. ‘स्त्री’ की कहानी मध्य प्रदेश के चंदेरी में, ‘मुनज्या’ की कहानी कोकण की चेतुकवाड़ी में और ‘भेड़िया’ की कहानी अरुणाचल प्रदेश के जंगलों में बसी है.
हॉरर-कॉमेडी- डर और मजाक का परफेक्ट मिक्स
डर के साथ कॉमेडी का ये ट्रेंड इतना लोकप्रिय हुआ कि अब हर दूसरी फिल्म में ये तड़का नजर आता है।. निर्देशक आदित्य सरपोतदार (थम्मा, 2025) कहते हैं, शायद आने वाले वक्त में लोग कहें कि अब बहुत हो गया, हर फिल्म हॉरर कॉमेडी क्यों है? लेकिन अभिनेता सोहम शाह मानते हैं कि असली हॉरर की शुरुआत तो अभी बाकी है. अभी जो बन रही हैं, वो हॉरर कॉमेडी हैं. असली डराने वाली फिल्में, जैसे द कंज्यूरिंग टाइप, बनना तो अभी शुरू ही नहीं हुआ है.
डर बदला है, खत्म नहीं हुआ
बॉलीवुड का हॉरर अब सिर्फ भूत-प्रेत की कहानियां नहीं रह गया है. ये अब भावनाओं, लालच, समाज और हास्य का मिश्रण बन चुका है. रामसे ब्रदर्स की डरावनी हवेलियों से लेकर स्त्री और मुनज्या के छोटे कस्बों तक हॉरर सिनेमा ने अपने आप को लगातार नया रूप दिया है और जैसा कि सोहम शाह ने कहा, अब ही तो शुरु हुआ है. डर का नया दौर अभी बाकी है.