युवा कलाकारों के लिए चुनौती, संकट में NSD का गौरव

66 साल पुराना NSD, कला और शिक्षा का प्रमुख संस्थान, मुंबई केंद्र में 6 लाख रुपये की फीस बढ़ोतरी से विवादों में घिरा। कलाकारों और पूर्व छात्रों ने इसे प्रतिभा पर संकट बताया।

Update: 2025-10-03 07:10 GMT

NSD Fee Issue: 66 साल पहले, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की स्थापना नई दिल्ली में हुई थी। इसे 1953 में स्थापित संगीत नाटक अकादमी के अधीन एक इकाई के रूप में स्थापित किया गया, जो देश में मंच कला का सर्वोच्च संस्थान है। NSD ने पिछले छह दशकों में न केवल कलाकार, निर्देशक, पटकथा लेखक, डिजाइनर, तकनीशियन और शिक्षक तैयार किए, बल्कि इनकी प्रतिभा ने टेलीविजन, फिल्म और थिएटर उद्योग में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा भी प्राप्त की।

1975 में NSD एक स्वतंत्र, स्वायत्त संगठन बन गया और इसे संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित किया जाने लगा। इसके बाद, NSD ने पूरे देश में क्षेत्रीय केंद्र खोले, जिनमें पहला केंद्र 1994 में बेंगलुरु में स्थापित हुआ। अन्य केंद्र सिक्किम, त्रिपुरा और वाराणसी में खोले गए।

हाल ही में, मुंबई में एक वर्षीय अभिनय पाठ्यक्रम के लिए ट्यूशन फीस की घोषणा ने विवाद को जन्म दिया। इस पाठ्यक्रम की कुल शुल्क राशि 6 लाख रुपये या प्रति सेमेस्टर 3 लाख रुपये रखी गई, जबकि दिल्ली और अन्य क्षेत्रीय केंद्रों में छात्र केवल 150 रुपये मासिक फीस अदा करते हैं, जो छात्रवृत्ति से कटती है।

पूर्व छात्रों और शिक्षकों का मानना है कि उच्च शुल्क के कारण कम संसाधन वाले प्रतिभाशाली छात्रों को NSD में पढ़ाई का मौका नहीं मिलेगा और यह संस्थान केवल धनी छात्रों के लिए सीमित हो जाएगा। 1981 बैच के NSD छात्र और कवि, लेखक व थिएटर विशेषज्ञ रघुनंदन ने इसे NSD के मूल उद्देश्य के खिलाफ बताया। उनका कहना है, “छात्र अब ग्राहक बन जाएंगे। यदि सरकारी संस्थान शिक्षा को व्यवसाय की दृष्टि से देखने लगें, तो यह चिंता का विषय है।”

NSD का मुंबई केंद्र अभी भी स्थायी परिसर प्राप्त नहीं कर पाया है और अंधेरी क्षेत्र में किराए की सुविधा में संचालित हो रहा है। संस्थान के अधिकारियों ने उच्च शुल्क के पीछे वित्तीय तंगी और मुंबई में उच्च किराए का हवाला दिया है। उनका कहना है कि यह शुल्क दिल्ली और अन्य केंद्रों को प्रभावित नहीं करेगा।

NSD के आलोचक मानते हैं कि यह शुल्क वृद्धि NSD के दृष्टिकोण में बड़े बदलाव की दिशा में संकेत हो सकती है। बेंगलुरु केंद्र के पूर्व निदेशक और थिएटर निर्देशक C. बसवलिंगैया ने कहा, “NSD का सुनहरा युग अब फीका पड़ गया है। वर्तमान प्रणाली ने सोचने की प्रक्रिया पर हमला किया है।”

संगीत और थिएटर के जानकार, लक्ष्या चौधरी ने लिखा कि कोविड के बाद थिएटर दर्शकों में बदलाव आया और लोगों की भागीदारी कम हुई। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य की नीतिगत कथाएँ कई प्रस्तुतियों में दिखाई दे रही हैं।

NSD का इतिहास इब्राहिम अलकाजी, बीवी करंथ, रतन थिएम, बीएम शाह, मोहन महार्षि और किरीति जैन जैसे दिग्गजों के दृष्टिकोण पर आधारित रहा है। अलकाजी ने संस्कृत नाटक, आधुनिक भारतीय नाटक और पारंपरिक भारतीय रूपों का व्यवस्थित अध्ययन और प्रायोगिक अनुभव पेश किया। करंथ ने संस्थान के कार्यों को लोकतांत्रिक बनाने और विकेंद्रीकृत करने का प्रयास किया। थिएम के कार्यकाल में छात्र ब्रेच्टियन क्लासिक से लेकर संस्कृत क्लासिक तक के प्रोडक्शन कर चुके थे। 1990 के दशक में थिएटर निर्देशकों ने वीडियो और नई मीडिया तकनीकों के साथ प्रयोग करना शुरू किया।

पूर्व NSD अध्यक्ष अमल अल्लाना के अनुसार, “छह दशक आत्मनिरीक्षण और समीक्षा का समय हैं। प्रारंभिक वर्षों का उत्साह, रचनात्मकता और नई तकनीकों तथा दर्शकों की प्रेरणा से संस्थान ने लगातार सुधार और विस्तार किया। थियेटर महोत्सव, पत्रिकाएँ, सेमिनार और बच्चों की कार्यशालाओं के माध्यम से NSD ने देश के व्यापक हित में काम किया।”

हालांकि, वर्तमान विवाद और मुंबई में उच्च शुल्क की घोषणा से यह डर पैदा हुआ है कि NSD का यह व्यापक पहुँच और कला के लोकतांत्रिक स्वरूप पर संकट आ सकता है।

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