आमिर के साथ काम करने का एक्सपीरियंस, प्रसन्ना ने बताया- ‘सितारे जमीन पर’ ने उन्हें बदल दिया
‘सितारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि एक अनुभव है। यह उन आवाज़ों को मंच देता है जो अक्सर दबा दी जाती हैं और बताती है कि असल सितारे वो हैं, जो हमें जीवन को नए नजरिए से देखना सिखाते हैं।;
जीवन की आपाधापी में हम अक्सर अपनी अंतरआत्मा की आवाज को नज़रअंदाज़ कर देते हैं — वो मूक संकेत जो जोर से नहीं चिल्लाता, बस धीरे से फुसफुसाता है। लेकिन लेखक-निर्देशक आरएस प्रसन्ना ने उस फुसफुसाहट को सुना और एक ऐसे सपने की ओर कदम बढ़ाया जिसे वो कभी "अकल्पनीय" मानते थे। आज जब वे आमिर खान अभिनीत अपनी अगली फ़िल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ की रिलीज़ (20 जून) का इंतज़ार कर रहे हैं, वो अपने अब तक के सफ़र को याद करते हैं।
प्रसन्ना ने The Federal से बातचीत में कहा कि तमिल सिनेमा से अपने करियर की शुरुआत करने के समय यह सोचना भी पागलपन होता कि मैं कभी आमिर खान के साथ काम करूंगा। लेकिन मैंने हमेशा अपने गुरू स्टीवन स्पीलबर्ग की बात मानी — अंतर्ज्ञान की सुनो और वही हुआ।
एक थैरेप्यूटिक अनुभव
2013 की तमिल कॉमेडी कल्याण समयाल साधम से डेब्यू करने वाले प्रसन्ना ने हिंदी फ़िल्म शुभ मंगल सावधान (2017) में भी संवेदनशील विषय (नपुंसकता) को Vicky Donor की तरह सहजता से संभाला था। इसी फिल्म के बाद आमिर खान की टीम ने उनसे संपर्क किया और पूछा कि क्या उनके पास आमिर के लिए कोई स्क्रिप्ट है। प्रसन्ना को एक मजबूत स्क्रिप्ट मिली — 2018 की स्पेनिश फिल्म Champions का हिंदी रूपांतरण — जिसमें एक बास्केटबॉल कोच को स्पेशली एबल्ड खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देना सज़ा के तौर पर मिलता है। धीरे-धीरे वह सज़ा एक आत्मिक अनुभव में बदल जाती है। प्रसन्ना बताते हैं कि मुझे लगा आमिर इस भूमिका के लिए सही व्यक्ति हैं, उनमें एक मानवीयता है।
‘आध्यात्मिक अगली कड़ी’?
ट्रेलर और सीमित स्क्रीनिंग्स के बाद लोगों ने इसे ‘धारणा बदलने वाली फ़िल्म’ बताया है। फ़िल्म ‘तारे ज़मीन पर’ की तरह दिल को छू लेने वाली और बातचीत की शुरुआत करने वाली साबित हो रही है। प्रसन्ना कहते हैं कि कुछ फ़िल्में इलाज जैसी होती हैं और ‘सितारे ज़मीन पर’ भी ऐसी ही है।
स्पेशली एबल्ड एक्टर्स के साथ निर्देशन
प्रसन्ना ने बताया कि इस फ़िल्म के लिए उन्होंने 10 महीने में 2,500 ऑडिशन किए। 10 मुख्य स्पेशली एबल्ड कलाकारों और 80 सहयोगी कलाकारों को ट्रेनिंग दी गई। उम्र 18 से 42 के बीच रही। हमेशा उनके आराम, खानपान, कपड़ों और भावनात्मक सुरक्षा का ध्यान रखा गया। NGO, थेरेपिस्ट और विशेषज्ञों ने सहयोग किया। ये कलाकार आसानी से संवाद याद कर लेते थे। ये भारत की स्पेशल एजुकेशन व्यवस्था की सफलता की मिसाल हैं।
प्रेरणा बनी तमिल फ़िल्म
प्रसन्ना को हमेशा "अलग तरह की बुद्धिमत्ता" का आकर्षण रहा है। उन्हें सिनेमा में लाने वाली फिल्म थी कमल हासन की *गुणा* (1991)। उसमें हासन एक न्यूरो-डायवर्जेंट किरदार निभाते हैं, जो खुद को भगवान शिव मानता है। प्रसन्ना सवाल उठाते हैं कि लोग मेरी हासन जैसी हरकतों पर हंसते थे, लेकिन कौन तय करता है कि सामान्य क्या है?
आमिर के साथ काम करना
प्रसन्ना बताते हैं कि आमिर के साथ काम करना ताजगी से भरपूर था। कोई बच्चा भी अगर बोले कि सीन काम नहीं कर रहा तो आमिर ध्यान से सुनते हैं। वे कहते हैं कि आमिर का फोकस सिर्फ स्क्रिप्ट को बेहतर बनाना होता है, न कि अपने क्लोजअप्स या डायलॉग्स पर।
सिनेमाघरों की अहमियत पर आमिर का ज़ोर
प्रसन्ना ने गंभीरता से कहा कि मैं खुश हूं कि ये फ़िल्म केवल थिएटर में रिलीज़ हो रही है। आमिर हमेशा 100-दिन की थिएटर विंडो के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने OTT को तुरंत रिलीज़ का विकल्प मानने से मना किया है। अगर लोग जान लें कि फिल्म जल्दी ही OTT पर आने वाली है तो थिएटर में कौन जाएगा?
फ़िल्म से मिली सीख
प्रसन्ना मानते हैं कि ये फ़िल्म उन्हें बदल गई। इन कलाकारों के भीतर मस्ती और प्यार भरा है। जब भी मैं थकता था, वो मुझे गले लगाते और कहते, ‘डोंट वरी प्रसन्ना, सब ठीक हो जाएगा।’ मैं हमेशा लोगों को गले लगाना पसंद करता था, लेकिन इन सितारों ने मुझे सिखाया कि असली संवेदना क्या होती है।