आखिर क्यों अमित शाह अब सार्वजनिक कम आते हैं नजर? बिहार दौरे से भी रहे दूर

Amit Shah: संसद में अंबेडकर पर टिप्पणी के बाद आलोचना झेल रहे शाह कम चर्चा में हैं. उनके इस सुझाव से कि बिहार में भाजपा उम्मीदवार एनडीए का सीएम चेहरा हो सकता है, खलबली मच गई है.;

By :  Abid Shah
Update: 2025-01-08 15:12 GMT

Amit Shah absence: संसद के शीतकालीन सत्र में अपनी बड़ी गलती के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शांत दिखाई दे रहे हैं. डॉ. बीआर अंबेडकर पर उनकी बेबाक टिप्पणियों ने काफी बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया था. लेकिन क्या शाह की ओर से लोगों की नज़रों से ओझल होना एक रणनीतिक कदम है? इस हद तक कि वे बिहार जैसे सहयोगी शासित राज्यों में महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्रमों से चूक रहे हैं? ऐसे में 5 जनवरी को पटना में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए निर्धारित उनके दौरे से उनकी अनुपस्थिति दिल्ली और बिहार दोनों के राजनीतिक हलकों में भौंहें तन गई हैं.

डेमेज कंट्रोल

हिंदी पट्टी और उससे आगे के इलाकों में गरीब लोगों के बीच डॉ. अंबेडकर का बहुत सम्मान है. संसद में डॉ. अंबेडकर के प्रति सम्मान और उनकी पूजा को भगवान के साथ जोड़ने के शाह के कदम को भारतीय संविधान के निर्माता का उपहास करने के समान माना जाता है. भाजपा इस विवाद को कम करने की पूरी कोशिश कर रही है. अपनी ओर से, शाह हाल के हफ्तों में सार्वजनिक कार्यक्रमों से स्पष्ट रूप से अनुपस्थित रहे हैं. शाह हमेशा से ही भाजपा के लिए एक संपत्ति रहे हैं. लेकिन, संसद में अपनी गलतियों के कारण, वे अपनी पार्टी के लिए सामाजिक-राजनीतिक दायित्व बनने के जोखिम का सामना कर रहे हैं. पिछले वीकेंड उनका बिहार से दूर रहना इसी बात का उदाहरण है.

पटना दौरा रद्द

शाह को बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिवंगत सुशील मोदी की जयंती के लिए वीकेंड में पटना जाना था. मई 2024 में उनकी मौत के बाद यह सुशील मोदी की पहली जयंती थी. शाह का इस यात्रा में शामिल न होना, बिहार में उनके पार्टी सहयोगियों के लिए निराशाजनक हो सकता है. यह और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है. क्योंकि शाह की बिहार यात्रा के रद्द होने, स्थगित होने या पुनर्निर्धारित होने के बारे में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. आखिरकार, बिहार में इस साल के अंत में नई विधानसभा के लिए मतदान होना है.

एनडीए गठबंधन के सहयोगी के रूप में सत्तारूढ़ भाजपा और जेडी(यू) को सीट बंटवारे और अगले मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा जैसे मुद्दों पर काम करना होगा. बिहार के मुख्यमंत्री और जेडी(यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ घुलमिल गए हैं. दरअसल, नीतीश हाल ही में दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिजनों से मिलने और अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए दिल्ली गए थे. वे अमित शाह सहित भाजपा के किसी भी बड़े नेता से मिले बिना ही पटना लौट आए.

बिहार में महाराष्ट्र?

नीतीश ने मतदाताओं से संवाद करने के लिए एक यात्रा शुरू की है. जिसे मनमोहन सिंह की मृत्यु पर राजकीय शोक के कारण एक सप्ताह के ब्रेक के बाद फिर से शुरू किया गया था. इस प्रकार, पटना में प्रस्तावित अमित शाह की यात्रा के दौरान उनके साथ किसी मंच पर मिलने या साझा करने की उनकी कोई पूर्व योजना नहीं थी. अब जबकि शाह इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए हैं तो ध्यान पिछले महीने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में बिहार के अगले सीएम चेहरे के बारे में उनकी टिप्पणी पर चला गया है.

बिहार के भावी नेतृत्व के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में शाह ने चुटकी लेते हुए कहा कि यह पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा तय किया जाता है. जाहिर है कि नीतीश ने इस प्रतिक्रिया को पसंद नहीं किया है. हाल ही में महाराष्ट्र में हुए चुनावों के बाद भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने और शिवसेना के एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद पर बिठाने से नीतीश की बेचैनी और बढ़ गई होगी.

रस्साकस्सी

इस प्रकार, बिहार में भाजपा और जेडी(यू) के बीच रस्साकशी अपरिहार्य होती जा रही है. लेकिन बिहार कोई महाराष्ट्र नहीं है. दोनों राज्यों के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में बहुत अंतर है. भाजपा को इस बात पर खुशी होनी चाहिए कि महाराष्ट्र में चुनाव अमित शाह के अंबेडकर वाले बयान से काफी पहले हुए. विपक्षी दलों ने जो गलत कहा, उसके विपरीत, केंद्र और राज्यों में भाजपा के एनडीए सहयोगी ज्यादातर चुप रहे हैं. जेडी(यू) भी इसका अपवाद नहीं है. लेकिन बिहार स्थित पार्टी और खासकर इसके सुप्रीमो नीतीश कुमार को इस मुद्दे पर संदेह हो सकता है. इस कारण भाजपा को शाह को बिहार आने से रोकना पड़ा.

Tags:    

Similar News