अमित शाह का अंबेडकर वाला भाषण बड़ी भूल, विपक्षी नेताओं को बना दिया हथियार

Amit Shah comment: केंद्र में भाजपा सरकार के पिछले 10 वर्षों में यह पहली बार है कि किसी महत्वपूर्ण मंत्री को न केवल हटाने की मांग की गई है, बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व में इसके समर्थकों द्वारा आक्रामक तरीके से इसे आगे बढ़ाया भी जा रहा है.;

By :  Abid Shah
Update: 2024-12-20 17:10 GMT

Amit Shah comments about BR Ambedkar: संसद में भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के बारे में की गई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की बेबाक टिप्पणियों ने विपक्ष के नेताओं को हथियार बना दिया है. हालांकि, उन्होंने भारत के बुनियादी कानूनी ढांचे के मुख्य निर्माता के खिलाफ किसी भी तरह की दुर्भावना या अवमानना दिखाने से इनकार किया है. फिर भी, यह रहस्य ही है कि शाह (Amit Shah) सत्ता पक्ष के 'चाणक्य' होने की सच्ची प्रतिष्ठा के बावजूद इस तरह कैसे गलत साबित हो गए. यह रहस्य इसलिए भी है, क्योंकि उनके हाथ में एक कागज़ था, जिस पर से वे कुछ लोगों (यानि विपक्ष) की अंबेडकर का नाम इतना ज़्यादा रटने की आदत को उजागर करने के लिए कुछ पढ़ रहे थे या फिर उनका हवाला दे रहे थे कि अगर वे भगवान का नाम इतना ही लेते तो वे सात पीढ़ियों तक स्वर्ग में अपनी जगह सुनिश्चित कर सकते थे.

विपक्ष में उबाल

इन टिप्पणियों के कारण संसद के ऊपरी सदन और बाहर 24 घंटे के भीतर ही भारी हंगामा शुरू हो गया. लेकिन पता चला कि अमित शाह के सामने 34 पृष्ठों का एक मसौदा था. जो संविधान पर दो दिनों तक चली चर्चा का जवाब देते समय आया था. यह चर्चा संविधान सभा के सदस्यों और अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा इसके प्रथम मसौदे पर हस्ताक्षर किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित की गई थी.

इससे भी ज़्यादा दिलचस्प बात यह है कि शाह के भाषण से पैदा हुए तूफ़ान के आखिरी दिन, नई दिल्ली में शाह (Amit Shah) अकेले ही मोर्चा संभाले हुए थे. क्योंकि जिस दिन उन्होंने भाषण दिया, उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो अन्य केंद्रीय मंत्रियों के साथ राजस्थान के दौरे पर थे और निचले सदन में, दो प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों नितिन गडकरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित 20 से ज़्यादा भाजपा सांसदों ने सदन में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' बिल का समर्थन करने के लिए सभी लोकसभा सदस्यों की उपस्थिति के लिए जारी पार्टी के आदेश की अवहेलना करते हुए सदन में भाग नहीं लिया.

ऐसा लगता है कि या तो अनुपस्थित सदस्यों ने विधेयक पेश किए जाने के दिन प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में सदन से दूर रहने का संकेत लिया या फिर उन्हें अमित शाह (Amit Shah) के भाषण से मचने वाले बवाल का अंदाजा था. पार्टी ने सदस्यों की अनुपस्थिति को इतनी गंभीरता से लिया है कि यह पता लगाने के लिए जांच शुरू कर दी है कि ऐसा कैसे हो सकता है. लेकिन किसी भी मामले में मंगलवार से न केवल सरकार और भाजपा के लिए चीजें गड़बड़ा गई हैं, बल्कि इसने विपक्ष को इतना उत्तेजित कर दिया है कि उसने अमित शाह (Amit Shah) को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग कर दी है. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने इसे खारिज कर दिया है.

निशाने पर अमित शाह

बहरहाल, केंद्र में भाजपा सरकार के पिछले 10 वर्षों में यह पहली बार है कि किसी महत्वपूर्ण मंत्री को न केवल हटाने की मांग की गई है, बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व में उसके समर्थकों द्वारा आक्रामक तरीके से इस मांग को आगे बढ़ाया जा रहा है, तथा भाजपा और उसके नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ बड़े विपक्ष का गठन करने वाले अधिकांश अन्य इंडिया ब्लॉक दलों द्वारा इसका समर्थन किया जा रहा है. शाह (Amit Shah) के इस्तीफे की मांग इतनी तेज है कि इससे संसद परिसर के अंदर हाथापाई हो गई और कई राज्यों की राजधानियों में विरोध प्रदर्शन हुए, जहां पुलिस को लाठियां बरसाने और आंसू गैस के गोले छोड़ने जैसे बल का प्रयोग करना पड़ा.

मंगलवार को अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर दिल्ली पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड को कांग्रेसियों ने तोड़ दिया और अमित शाह (Amit Shah) के पुतले जलाए. गुरुवार, 19 दिसंबर को उत्तर प्रदेश से भी ऐसी ही खबरें आईं, जब समाजवादी पार्टी ने लखनऊ में विरोध मार्च निकाला. इन पार्टियों के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में भी विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे, ताकि सरकार को कोई राहत न मिले और वह विपक्ष की मांग पर ध्यान देने के लिए मजबूर हो जाए.

शाह को समर्थन

दूसरी ओर, भाजपा अमित शाह (Amit Shah) का समर्थन करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. मोदी ने बुधवार को सोशल मीडिया पर कांग्रेस और अमित शाह (Amit Shah) को बर्खास्त करने की मांग पर निशाना साधा. अगली सुबह, भाजपा सांसदों ने संसद में कांग्रेस सांसदों के साथ हाथापाई की. दो भाजपा सांसदों को चोटें आईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में, दोनों पक्षों ने दिल्ली में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि प्रतिद्वंद्वियों ने उन पर हमला किया और उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया. तो, सवाल यह है कि दोनों पक्षों के बीच ऐसी तीखी झड़प क्यों हो रही है. जहां मारपीट हो रही है और एक-दूसरे पर तीखी टिप्पणियां की जा रही हैं.

जाहिर है, राजनीतिक और चुनावी दोनों स्तरों पर दांव इतने ऊंचे हैं कि कोई भी पक्ष उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता. अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अंबेडकर को एक तरह से मसीहा मानते हैं. जो भारत की कुल आबादी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा हैं. जबकि अन्य पिछड़ी जातियों के एक तिहाई से अधिक लोग उन्हें कम से कम कुछ सम्मान देते हैं. इस घटना के बाद विपक्ष ने नाराजगी जाहिर की है और शाह (Amit Shah) के बर्खास्त की मांग की है. वहीं दूसरी ओर, ऐसा लगता है कि भाजपा ने विपक्ष का पूरी ताकत से मुकाबला करने का फैसला कर लिया है.

टकराव कम होने का कोई संकेत नहीं

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने गुरुवार (19 दिसंबर) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. इसमें आरोप लगाया गया कि भाजपा सांसदों ने खड़गे को धक्का दिया और प्रियंका गांधी सहित महिला सांसदों को संसद भवन के मुख्य द्वार पर अभूतपूर्व “बाहुबल” का उपयोग करके डरा दिया. कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने टिप्पणी की कि खड़गे को डराने-धमकाने के लिए भाजपा के उच्च अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार (रोकथाम) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए. क्योंकि खड़गे दलित समुदाय से आते हैं. मुद्दा यह है कि अंबेडकर के खिलाफ शाह (Amit Shah) की टिप्पणी से शुरू हुआ टकराव अभी तक कम होने का कोई संकेत नहीं दिखा है.

ऐसा लगता है कि अमित शाह (Amit Shah) समय रहते या अंततः मोदी की कमान संभालने से वंचित हो गए. जैसा कि नई दिल्ली के राजनीतिक हलकों में पहले से ही अपेक्षित था और अटकलें लगाई जा रही थीं. अब ऐसा लगता है कि वे पद पर बने रहने की कोशिश कर रहे हैं और इसलिए उनकी शिकायत यह है कि अंबेडकर की प्रशंसा करने वाले उनके लंबे भाषण से कुछ शब्द कैसे निकाले जा सकते हैं, ताकि उन पर जानबूझकर हमला किया जा सके. उन्होंने 19 दिसंबर को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और एक अन्य केंद्रीय मंत्री के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही.

लेकिन शाह (Amit Shah) मोदी के पहले और आखिरी सलाहकार और विश्वासपात्र रहे हैं. इसलिए, अंबेडकर के बारे में उनकी टिप्पणी से शुरू हुआ विवाद सिर्फ़ उनके भविष्य को लेकर नहीं है. इससे पैदा हुई अनिश्चितता देश के राजनीतिक परिदृश्य और प्रशासनिक रूपरेखा को आकार दे सकती है या फिर उसे नया आकार दे सकती है. क्योंकि इसने एक ऐसा बवंडर खड़ा कर दिया है, जिसका जल्द ही रुकना मुश्किल है.

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