धार्मिक परेड के लिए मना करने पर सेना अधिकारी की बर्खास्तगी उचित: दिल्ली HC

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों में विभिन्न धर्म, जाति, पंथ और क्षेत्रों से आने वाले सैनिक राष्ट्र की रक्षा के साझा उद्देश्य के लिए काम करते हैं। उनकी एकता का आधार धर्म नहीं, वर्दी होती है।;

Update: 2025-06-01 09:36 GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सैन्य अधिकारी कमलेसन का व्यवहार सेना के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और अनुशासनात्मक नियमों के विरुद्ध था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के अधिकारी सैमुअल कमलेसन की बर्खास्तगी को वैध करार देते हुए स्पष्ट किया है कि अनुशासन और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों से समझौता नहीं किया जा सकता। कमलेसन ने 2017 में अपनी रेजिमेंट की धार्मिक परेड में शामिल होने से इनकार कर दिया था, जिसके चलते उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

कमलेसन, जो ईसाई धर्म का पालन करते हैं, ने बर्खास्तगी के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि उन्हें पेंशन और ग्रेच्युटी के बिना सेवा से निकाला गया, जो असंवैधानिक है। उन्होंने पुनः नियुक्ति की मांग की थी।

30 मई को जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, “भारतीय सशस्त्र बलों में विभिन्न धर्म, जाति, पंथ और क्षेत्रों से आने वाले सैनिक एक साझा उद्देश्य के लिए काम करते हैं, राष्ट्र की रक्षा। उनकी एकता का आधार धर्म नहीं, वर्दी होती है।”

कोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी की कि कमलेसन का व्यवहार सेना के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और अनुशासनात्मक नियमों के विरुद्ध था। सेना में रेजिमेंटों के नाम भले धार्मिक या क्षेत्रीय हों, लेकिन संस्थागत मूल्यों में किसी प्रकार का धार्मिक पक्षपात नहीं होता। धार्मिक उद्घोष भी एकता और उत्साह बढ़ाने के उद्देश्य से होते हैं, न कि किसी धर्म-विशेष को बढ़ावा देने के लिए।

हुआ क्या था?

कमलेसन मार्च 2017 में सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर भर्ती हुए थे और उन्हें थर्ड कैवेलरी रेजिमेंट के B स्क्वाड्रन में तैनात किया गया, जहां अधिकांश सैनिक सिख समुदाय से थे। उन्होंने याचिका में कहा कि रेजिमेंट परिसर में मंदिर और गुरुद्वारा तो हैं, लेकिन न चर्च है और न ही ‘सर्व धर्म स्थल’, जो धार्मिक विविधता को दर्शाए।

कोर्ट ने इसे अनुचित तर्क मानते हुए कहा कि सेना धार्मिक भावनाओं का सम्मान तो करती है, लेकिन किसी भी सैनिक को अपने धर्म को सेवा नियमों से ऊपर रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

आखिरी फैसला

हाई कोर्ट ने कहा कि कमलेसन को कई बार समझाने की कोशिश की गई थी, लेकिन वे आदेश मानने को तैयार नहीं हुए। ऐसे में सेना द्वारा उनकी बर्खास्तगी सभी पहलुओं पर विचार के बाद लिया गया एक उचित और आवश्यक कदम था।

कोर्ट ने कहा, “आम नागरिक के लिए यह फैसला कठोर प्रतीत हो सकता है, लेकिन सेना में अनुशासन सर्वोपरि है। यदि इसका पालन न हो, तो पूरी व्यवस्था प्रभावित होती है।”

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