असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार की बढ़ी मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने दिए फेक एनकाउंटर के जांच के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ज़रूरी है कि इस प्रकार के मामलों की जांच एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था द्वारा हो। अदालत ने इसके लिए असम राज्य मानवाधिकार आयोग को जांच की जिम्मेदारी सौंपी है।;
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने असम में हुए कथित फेक एनकाउंटर के आरोपों के जांच के आदेश दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने असम के मानव अधिकार आयोग को इस पूरे फेक एनकाउंटर्स के जांच के आदेश दिए हैं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.के. सिंह असम में कथित ‘फर्जी एनकाउंटर’ मामले में आज फैसला सुनाया है।
सु्प्रीम कोर्ट ने असम में कथित फेक एनकाउंटर के आरोपों के जांच के आदेश अधिवक्ता आरिफ जवद्दर की याचिका पर दिया गया है, जिन्होंने दावा किया था कि मई 2021 में भारतीय जनता पार्टी के नेता हिमंत बिस्वा सरमा के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में 80 से अधिक फर्जी मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस बेंच ने कहा, केवल मामलों की एक सूची के आधार पर व्यापक न्यायिक आदेश नहीं दिए जा सकते, लेकिन फर्जी मुठभेड़ों के आरोप गंभीर हैं। अदालत ने कहा कि यदि ये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो यह जीवन के अधिकार का गंभीर उल्लंघन होगा।
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि PUCL केस में तय गाइडलाइनों जैसे FIR दर्ज करना, मजिस्ट्रेट जांच कराना, पीड़ित के परिजनों को सूचित करना आदि का उद्देश्य "कानून के शासन की प्रधानता" बनाए रखना है। कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं है। अदालत ने याचिकाकर्ता की मंशा और उनकी पहल की सराहना की, यह कहते हुए कि राज्य के शक्ति दुरुपयोग जैसे मामलों में पीड़ितों की आवाज अदालत तक लाना महत्वपूर्ण है। हालांकि, केवल मामलों की सूची देने से सभी आरोपों पर आम आदेश नहीं दिए जा सकते।
अदालत ने माना कि कुछ मामलों में PUCL गाइडलाइनों के उल्लंघन के आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत हो सकते हैं। अधिकांश मामलों में यह कहना मुश्किल है कि नियमों का उल्लंघन हुआ है, हालांकि कुछ मामलों में और जांच की आवश्यकता हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ज़रूरी है कि इस प्रकार के मामलों की जांच एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था द्वारा हो। अदालत ने इसके लिए असम राज्य मानवाधिकार आयोग (Assam Human Rights Commission) को जांच की जिम्मेदारी सौंपी है।
अदालत ने कहा कि मानवाधिकार आयोग की भूमिका बेहद अहम है। अदालत को विश्वास है कि आयोग के वर्तमान अध्यक्ष के नेतृत्व में यह कार्य संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ किया जाएगा। अदालत ने आयोग को निर्देश दिया कि वह पीड़ितों की पहचान की गोपनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए। साथ ही,आयोग को पूरी छूट दी गई है कि वह यदि उचित समझे तो आगे की जांच भी शुरू कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को निर्देश दिया कि वह आयोग के साथ पूरा सहयोग करे और किसी भी संस्थागत बाधा को दूर करे।