अजित पवार के साथ गठबंधन BJP की भूल थी? ऐसे समझिए

महाराष्ट्र में अजित पवार के साथ बीजेपी के गठबंधन का फैसला गलत कदम था. आरएसएस ने मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने लिखा है कि इससे उन कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ा जो इनके खिलाफ थे.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-14 04:45 GMT

Ajit Pawar-BJP Alliance: महाराष्ट्र की सियासत इस समय बेहद दिलचस्प हो चली है. 14 जून को अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार जोकि बारामती से लोकसभा का चुनाव हार चुकी हैं उन्होंने राज्यसभा के लिए पर्चा भरा. बताया जाता है कि इससे छगन भुजबल नाराज हुए हालांकि बाद में उन्होंने इसे पार्टी का फैसला करार दिया. लेकिन यहां हम बात करेंगे कि क्या अजित पवार के साथ बीजेपी का गठबंधन फायदे का सौदा नहीं साबित हुआ. अगर आप लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों को देखें तो बिना किसी तर्क के साथ आप कह सकते हैं कि कोई फायदा नहीं हुआ. दरअसल अजित पवार खेमे को सिर्फ एक ही सीट मिल सकी. लेकिन अजित पवार के साथ बीजेपी की जुगलबंदी को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में आलोचना की गई है.

आरएसएस के मुखपत्र में आलोचना
लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को 48 में से 30 सीट मिली है जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी दल सिर्फ 18 सीट ही जीत सके. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सर्वे करा रही है क्या वे अपने दम पर अकेला चुनाव में जा सकते हैं.अब बात करते हैं ऑर्गेनाइजर में लिखे लेख की. इसमें बताया गया है कि अजित पवार के साथ गठबंधन करने का फैसला जिसका भी था वो खामी से भरी हुई सलाह थी. इस तरह के फैसले की जरूरत क्या थी. हकीकत में इस फैसले की वजह से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर हुआ जो वर्षों से कांग्रेस और एनसीपी के विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. एक झटके में बीजेपी ने अपने ब्रैंड वैल्यू को कमजोर कर दिया.

'यह बीजेपी का नजरिया नहीं है'
आर्गेनाइजर में रतन शारदा जिक्र करते हैं कि अनावश्यक राजनीतिक जुगलबंदी का महाराष्ट्र बेहतरीन उदाहरण है. यहां जो गुणा गणित हो रही है उसे टाला भा जा सकता था. बड़ी बात है कि दूसरे दलों से आने वाले लोगों के लिए बेहतर लोगों को दरकिनार कर दिया गया. अब इस लेख पर एनसीपी अजित पवार गुट के कद्दावर नेता प्रफुल्ल पटेल कहते हैं इसे आप दो दलों के मतभेद के तौर पर मत लीजिए. ऑर्गेनाइजर में जो कुछ लिखा है वो बीजेपी का नजरिया नहीं है. लेकिन एनसीपी के कुछ नेताओं के मुताबिक बीजेपी जब अच्छा प्रदर्शन करती है तो आरएसएस के कठिन परिश्रम को क्रेडिट दी जाती है. लेकिन हार पर ठीकरा अजित पवार पर फोड़ा जा रहा है.हालांकि अब बीजेपी का भी कहना है कि आरएसएस हमारे लिए पिता की तरह है. लिहाजा आरएएस पर कमेंट करने से बचने की जरूरत है. बीजेपी की तरफ से कोई कमेंट नहीं किया गया है.

जमीनी स्तर पर नजर नहीं आया गठबंधन
महाराष्ट्र की सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं कि एनसीपी का मतलब शरद पवार ही हैं. आज भी महाराष्ट्र के किसी भी हिस्से में जाकर अजित पवार के बारे में पूछिए तो लोग उन्हें शरद पवार से ही जोड़ते हैं. देखिए अजित पवार का बीजेपी के साथ जाना या बीजेपी का अजित पवार से मेलमिलाप करना रणनीति का हिस्सा था. हालांकि जमीनी स्तर पर वो रणनीति काम नहीं आई. बीजेपी के समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं को निराशा हुई जब गठबंधन के तहत कुछ सीटें अजित खेमे को मिली. ऐसे में बीजेपी के कार्यकर्ता उदासीन हो गए. दूसरी तरफ अजित पवार खेमा अपने मतों को ट्रांसफर बीजेपी या शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट को ट्रांसफर कराने में नाकाम रहा था.

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