‘अंतिम प्रमाण’ नहीं है आधार कार्ड, बिहार SIR में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की दलील मानी
सुप्रीम कोर्ट इन दिनों बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ताओं ने मतदाता स्थिति में गड़बड़ियों जैसी कई शिकायतें की हैं।;
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान आधार को निवास का अंतिम (Conclusive) प्रमाण नहीं माना जा सकता।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि लोगों के पास आधार, राशन और ईपीआईसी (EPIC) कार्ड होने के बावजूद अधिकारी इन्हें किसी भी बात का प्रमाण मानने से इनकार कर रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 'ऐसे दस्तावेज ईमानदारी से दिखा सकते हैं कि आप उस क्षेत्र के निवासी हैं।'
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं। सिब्बल राजद नेता मनोज झा की ओर से पेश हुए और आरोप लगाया कि मतदाता सूची में कई गड़बड़ियां हैं, जैसे मृत घोषित व्यक्ति जीवित पाए गए और इसके उलट भी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण में गतिरोध की बड़ी वजह चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच का भरोसे का संकट है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह बहुत व्यापक दलील है कि बिहार में किसी के पास मान्य दस्तावेज नहीं हैं। उन्होंने माना कि आधार और राशन कार्ड मौजूद हैं लेकिन इन्हें अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस तरह की प्रक्रिया में कुछ खामियां आना स्वाभाविक है, लेकिन इन्हें अंतिम सूची प्रकाशित होने से पहले सुधारा जा सकता है। अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।
विपक्षी नेताओं और सिविल सोसायटी समूहों ने चुनाव आयोग के 24 जून के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यदि बड़े पैमाने पर मतदाताओं का नाम काटा गया तो वह तुरंत दखल देगा। 1 अगस्त को मसौदा सूची प्रकाशित हुई, जबकि अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होनी है। विपक्ष का कहना है कि इस प्रक्रिया से करोड़ों पात्र मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
इन याचिकाओं को राजद, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), भाकपा, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), झामुमो, भाकपा (माले), साथ ही पीयूसीएल, एडीआर और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने संयुक्त रूप से दायर किया है। इन सभी ने 24 जून के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी है।