वो दिन जब रातों रात देश में लग गयी थी 'इमरजेंसी', आज भी कहलाता है काला दिन
आज 25 जून 2024 है. आज देश में इमरजेंसी लगे 49 साल पूरे हो गए हैं और 50वां साल लग गया है. एक बार उस दौर में चलते हैं और जानते हैं कि आखिर क्या हुआ था और क्यों हुआ था?
Emergency Anniversary: देश की 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के पहले ही दिन प्रधनमंत्री मोदी ने 50 साल पहले की एक ऐसी घटना का ज़िक्र छेड़ा, जिससे विपक्षी खासतौर से कांग्रेस पार्टी के तमाम नेता असहज हो गए. दरअसल प्रधानमंत्री ने 25 जून 1975 को देश में लागू की गयी इमरजेंसी को याद किया और कहा कि मंगलवार ( 25 जून ) को काला दिन है, जो कभी न भूलने वाला है. इस दिन देश के लोकतंत्र पर जो धब्बा लगा था, वो आज तक नहीं मिटा है. भारत की नई पीढ़ी ये कभी नहीं भूलेगी कि कैसे भारत के संविधान को पूरी तरह से नकार दिया गया था.
आज 25 जून 2024 है. आज देश में इमरजेंसी लगे 49 साल पूरे हो गए हैं और 50वां साल लग गया है. एक बार उस दौर में चलते हैं और जानते हैं कि आखिर क्या हुआ था और क्यों हुआ था. कैसे संविधान को नकारने की बात कही जा रही है.
25 जून 1975 की तारीख थी. आम लोगों के लिए एक आम ही दिन था लेकिन राजनितिक तौर पर देखें तो देश में उस समय अस्थिरता का माहौल था. देश में चल रही कांग्रेस की सरकार के खिलाफ जगह जगह आन्दोलन चल रहे थे, विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, ख़ास तौर से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के खिलाफ, जिनके खिलाफ कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला देते हुए उनकी जीत को धान्धलेबाजी करार दिया था. इसी फैसले ने देश भर में इंदिरा गाँधी के खिलाफ विरोध के स्वर इतने तेज कर दिए थे कि राजनितिक अस्थिरता ख़ास तौर से इंदिरा गाँधी के लिए पैदा हो गयी. इससे बचने के लिए इंदिरा गाँधी ने पूरे देश में ही अस्थिरता को घोषित करते हुए 25 जून को आधी रात के समय देश में इमरजेंसी लागू करवा दी.
सुबह लोगों ने रेडियो पर सुना तो जाना लग चुकी है इमरजेंसी
1975 का वो समय जब इन्टरनेट और स्मार्ट फोन तो दूर दूर तक नहीं थे. टीवी भी गिनती के ही होते थे. ऐसे समय में लोग जब 26 जून को जागे तो उनके रेडियो सेट पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की आवाज गूंजी. इंदिरा गाँधी ने देश वासियों को संबोधित करते हुए ये जानकारी दी कि देश में इमरजेंसी लग चुकी है. राजनितिक अस्थिरता को कारण बताया गया, देश व्यापी आन्दोलनों को भी इसकी एक वजह बताया गया.
संविधान की इस धारा के तहत लगायी गयी थी इमरजेंसी
उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे. उन्होंने इंदिरा गाँधी सरकार की सिफारिश मानते हुए देश में इमरजेंसी लगाने की सिफारिश को मंजूरी दे दी. ये मंजूरी संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत दी गयी. इस अनुच्छेद के अनुसार जब भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो, तब देश में आपातकाल लगाया जा सकता है.
12 जून 1975 का वो फैसला, जिसने रखी इमरजेंसी की नीव
इंदिरा गाँधी 1966 से देश की प्रधानमंत्री थी. उनके खिलाफ देश की राजनीती में एक माहौल बना हुआ था. इस बीच उन पर धांधली से चुनाव जीतने का आरोप लगा. वो प्रधनमंत्री के पद पर बैठी हुई थीं. उनके खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में मामला चला और 12 जून 1975 को अदालत ने इंदिरा गाँधी के खिलाफ फैसला देते हुए उन्हें धांधली से चुनाव जीतने का दोषी माना और उन्हें 6 साल के लिए किसी भी चुने हुए पद पर आसीन रहने से रोक दिया. मतलब साफ़ था कि अब वो देश की प्रधानमंत्री नहीं रह सकती. उधर देश की जगह जगह चल रहे विरोध प्रदर्शन को मानो हाई कोर्ट के फैसले से नयी उर्जा मिल गयी. तमाम राजनितिक दल राष्ट्रपति भवन पर भी धरने पर बैठ गए. राजनितिक जानकार और उस समय के वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि इस परिस्थिति को इंदिरा गाँधी ने देश की सुरक्षा के प्रति खतरा बताते हुए कहीं न कहीं अपने पक्ष में मोड़ने का मौका जाना और राष्ट्रपति के माध्यम से देश में इमरजेंसी लागू करवा दी. जिससे वे बिना किसी विधायी और न्यायिक हस्तक्षेप के सरकार चला सकें.
इमरजेंसी में लागू किया गया मीसा कानून, जिसके आधार पर की गयी नेताओं की गिरफ़्तारी
इंदिरा गाँधी के खिलाफ जगह जगह प्रदर्शन चल रहे थे. इंदिरा गाँधी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गयीं लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली, हाँ इतना जरुर रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री पद पर रहने की अनुमति जरुर दी लेकिन ये भी स्पष्ट किया कि उनके पास संसद में वोटिंग का अधिकार नहीं होगा. वहीँ लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने देश व्यापी आन्दोलन छेड़ा हुआ था. उन्होंने तमाम सरकारी विभाग सेना, पुलिस से ये अपील की कि वो इंदिरा गाँधी सरकार के फैसलों को न मानें. छात्रों से भी हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इंदिरा गाँधी सरकार के फैसलों को न मानने के लिए कहा गया. इस सब से विरोध प्रदर्शन काफी बढ़ चुके थे.
मेंटेनेंस ऑफ़ इंटरनल सिक्यूरिटी ( मीसा ) कानून के तहत की गयी तमाम नेताओं आन्दोलनकारियों की गिरफ्तारी
देश में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के खिलाफ जिस तरह का माहौल था, उससे निबटने के लिए उन्होंने मीसा कानून बनाया और उसके आधार पर हर उस नेता को गिरफ्तार किया, जो इंदिरा गाँधी के खिलाफ आन्दोलन चला रहे थे. इसी कानून के नाम पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपनी बड़ी बेटी का नाम मीसा रखा था. इस कानून का इस्तेमाल करते हुए तमाम नेताओं और आन्दोलन कारियों को जेल में डाला गया.
प्रेस की आजादी पर लगायी रोक
इमरजेंसी के नाम पर एक तरफ तो नेताओं की गिरफ्तारी चल रही थी. दूसरी प्रेस में सरकार के खिलाफ कुछ छपे नहीं, इसके लिए प्रेस सेंसरशिप लगा दी गयी. नागरिक स्वतंत्रता को भी सिमित कर दिया गया.
आरएसएस पर लगाया गया प्रतिबन्ध
इमरजेंसी के दौरान देश में आरएसएस समेत 24 संगठनों पर रोक लगा दी गयी थी.
जबरन नसबंदी करायी गयी
यही वो दौर था जब देश में जगह जगह लोगों की जबरन नसबंदी करवाई गयी. इसके अलावा स्लम क्लियरेन्स जैसे कठोर उपास्य भी अपनाए गए.
21 महीने चली इमरजेंसी
इमरजेंसी की बात करें तो ये दौर देश में 21 महीने तक चला. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश में एक तरफ़ा कानून चलता रहा. लेकिन इसका नतीजा भी इंदिरा गाँधी को भुगतना पड़ा.
आम चुनावों में झेलनी पड़ी हार
आपातकाल को लेकर देश में जगह जगह विरोध प्रदर्शन जारी थे. तमाम नेताओं ने विरोध प्रदर्शन जारी रखे थे. कई नेता जेल में थे. वहीँ जनता के मन में भी इंदिरा सरकार के खिलाफ भी गुस्सा बढ़ता जा रहा था, क्योंकि इंदिरा गाँधी सरकार ने इमरजेंसी के समय में जबरन नसबंदी आदि जैसे कई काम किये जिससे जनता सीधे तौर पर नाराज थी. 1977 में आपातकाल हटा कर देश में आम चुनाव कराये गए. लेकिन नतीजों ने इंदिरा गाँधी को पूरी तरह से झक्जोड़ दिया. इंदिरा गाँधी खुद रायबरेली से हार गयीं. देश में 30 साल बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.