पाकिस्तान को मदद देने से पहले IMF जरूर विचार करे, विदेश सचिव की खास अपील
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि पिछले तीन दशकों में पाकिस्तान के लिए आईएमएफ द्वारा कई बेलआउट कार्यक्रम मंजूर किए गए, लेकिन सही मकसद के लिए उपयोग नहीं हुआ।;
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से साफ शब्दों में कहा है कि वह पाकिस्तान को राहत पैकेज देने से पहले “अपने भीतर गहराई से झाँक कर” विचार करे। यह अपील ऐसे समय पर आई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर है और IMF की एक अहम बैठक वाशिंगटन में होने जा रही है।
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने गुरुवार को यह सार्वजनिक अपील की, जो IMF बोर्ड की बैठक से एक दिन पहले सामने आई। उन्होंने कहा,“मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भारत की स्थिति वहां स्पष्ट रूप से रखेंगे।”
“पाकिस्तान के मामले में तथ्य खुद बोलते हैं”मिस्री ने कहा कि IMF के बोर्ड के निर्णय अपनी प्रक्रिया के अनुसार होते हैं, लेकिन पाकिस्तान के मामले में “तथ्य इतने स्पष्ट हैं कि उन्हें उन लोगों को खुद समझ में आ जाने चाहिए जो उदारता से इस देश को बार-बार bailout देते हैं।”“पिछले तीन दशकों में पाकिस्तान को कई बार IMF से राहत पैकेज मिल चुके हैं, लेकिन उनमें से कितने सफलतापूर्वक पूरे हुए हैं—इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि IMF बोर्ड के सदस्य जब इस फैसले पर विचार करें, तो उन्हें "अपने भीतर झांककर और तथ्यों पर ध्यान देकर" ही कोई निर्णय लेना चाहिए।IMF के आँकड़ों के अनुसार, 31 मार्च 2025 तक पाकिस्तान पर IMF के 6.23 बिलियन स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDRs) की बकाया राशि थी। वर्तमान में IMF पाकिस्तान को $7 बिलियन का सहायता पैकेज प्रदान कर रहा है, जिसे पिछले साल सितंबर में स्वीकृति मिली थी।
भारत की यह अपील ऐसे समय पर आई है जब 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी, जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव की स्थिति बनी हुई है। दोनों देशों ने एक-दूसरे की सीमाओं में जवाबी हमले किए हैं।
जहाँ अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत-पाक युद्ध तनाव को “हमारा मामला नहीं” कहकर किनारा किया है, वहीं भारत ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से अपेक्षा की है कि वे राजनीतिक और रणनीतिक सच्चाइयों को भी अपने आर्थिक निर्णयों में शामिल करें।मिस्री का यह वक्तव्य न केवल IMF को सशक्त संकेत है, बल्कि यह वैश्विक समुदाय को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आतंकवाद को पालने वाले देशों को बार-बार आर्थिक राहत देना नैतिक रूप से उचित है?
भारत की यह अपील केवल आर्थिक नहीं बल्कि नैतिक आधार पर भी महत्वपूर्ण है। IMF जैसे वैश्विक संस्थानों को यह देखना होगा कि उनके राहत पैकेज किसके हाथों में जा रहे हैं—आम जनता की मदद के लिए या फिर आतंकवाद के परोक्ष पोषण के लिए।