रहेंगे या जाएंगे जज यशवंत वर्मा? संसद में तय होगा भविष्य

जली हुई नकदी मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-05-28 07:08 GMT

केंद्र सरकार न्यायपालिका में एक बड़े विवाद पर निर्णायक कदम उठाने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। यह कदम उस समय से चर्चा में है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक जांच समिति ने उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से जली हुई बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उन्हें दोषी ठहराया।

पूर्व CJI संजीव खन्ना ने की थी सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने इस घटनाक्रम के बाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की थी। यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई थी, हालांकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। इस समिति में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधवाळिया, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।

राष्ट्रपति ने भेजी संसद को सिफारिश

माना जा रहा है कि राष्ट्रपति ने अब यह सिफारिश लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को भेज दी है। सूत्रों के अनुसार, पूर्व CJI खन्ना ने वर्मा को इस्तीफा देने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

अभी तक नहीं हुई औपचारिक प्रक्रिया शुरू

हालांकि एक सरकारी सूत्र ने स्पष्ट किया कि जज वर्मा के खिलाफ अभी तक कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। जस्टिस वर्मा ने खुद को निर्दोष बताया है और दावा किया है कि उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद जो नकदी मिली, उसका उनसे कोई संबंध नहीं है।

विपक्ष को भरोसे में लेने की तैयारी

सरकारी सूत्रों ने कहा है कि प्रस्ताव लाने से पहले वे विपक्षी दलों को विश्वास में लेंगे। सूत्रों के अनुसार, “यह बहुत ही बड़ा और दृश्य घोटाला है, इसलिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। अंतिम निर्णय जल्द लिया जाएगा।”

महाभियोग की प्रक्रिया क्या है?

भारतीय संविधान के अनुसार, किसी संवैधानिक न्यायाधीश को केवल दो आधारों पर हटाया जा सकता है – "अयोग्यता" या "सिद्ध दुराचार"। इसकी प्रक्रिया न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 में स्पष्ट की गई है।

महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।

राज्यसभा में कम से कम 50 और लोकसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी हैं।

प्रस्ताव पर दो-तिहाई बहुमत से मतदान होना चाहिए।

इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति सुप्रीम कोर्ट के एक जज और किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जांच समिति के लिए नामित करते हैं।

केंद्र सरकार की ओर से एक “प्रख्यात विधिवेत्ता” को भी समिति में शामिल किया जाता है।

यदि समिति आरोपों को सही मानती है और रिपोर्ट संबंधित सदन में प्रस्तुत होती है, तो बहस और मतदान के बाद यदि दोनों सदनों में आवश्यक बहुमत से प्रस्ताव पास हो जाता है, तो राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा सकते हैं।

सर्वसम्मति की कोशिश में सरकार

सरकार इस मुद्दे पर राजनीतिक सर्वसम्मति चाहती है और प्रस्ताव का मसौदा साझा करने से पहले सभी दलों से सलाह लेगी। यह प्रस्ताव उस तीन-सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर आधारित होगा, जिसने दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत रहते हुए जस्टिस वर्मा के सरकारी निवास से जली हुई नकदी की बरामदगी की जांच की थी। इस घटना के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया था।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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