IAS में लेटरल एंट्री का विरोध, महज सियासत या डर के पीछे वाजिब वजह

आईएएस लेटरस एंट्री पर जिस तरह से विपक्ष ने विरोध की आवाज उठाई है क्या उसमें दम है या सिर्फ विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरक्षण खतरे का राग अलापा जा रहा है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-20 01:35 GMT

IAS Lateral Entry:  दिल्ली के मुखर्जी नगर को आईएएस का मक्का मदीना है। यहां देश के अलग अलग हिस्सों से छात्र सबसे कठिन परीक्षा की तैयारी के लिए आते हैं जिसे यूपीएससी संपन्न कराती है। इस परीक्षा के क्रेज को आप सिर्फ ऐसे समझिए कि नतीजा हजारवें हिस्से में होता है यानी की सफलता से अधिक असफलता की दर बावजूद उसके छात्रसब कुछ समर्पित कर देते हैं। इन सबके बीच आप बिना एग्जाम दिए भी आईएएस बन सकते हैं जिसे लेटरल एंट्री कहा जाता है। लेटरल एंट्री की व्यवस्था साल 2019 में शुरू की गई थी।

बेहतर नीति और क्रियान्वयन मकसद
 इसका मकसद एक्सपर्ट लोगों को ज्वाइंट सेक्रेटरी, डॉयरेक्टर डिप्टी डायरेक्टर बनाना था। इसके जरिए बेहतर नीति निर्माण और उसका क्रियान्वयन भी था। हाल ही में जब यूपीएससी ने 45 पदों के लिए विज्ञापन निकाला तो राजनीति शुरू हो गई। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दोनों ने मोदी सरकार को आरक्षण विरोधी करार दिया। इन दोनों लोगों ने क्या कहा और उसके पीछे की क्या राजनीति है उसे बताने से पहले आप इन आंकड़ों पर नजर डालिए।

2019 में कुल 8 संयुक्त सचिवों के पद पर लेटरल एंट्री के तहत नियुक्ति दी गई। 2022 में कुल 30 अधिकारी जिसमें 3 ज्वाइंट सेक्रेटरी और 27 डॉयरेक्टर बनाए गए। 2023 में 37 पदों के लिए सिफारिश की गई इसमें ज्वाइंट सेक्रेटरी, डॉयरेक्टर, डेप्यूटी सेक्रेटरी शामिल थे। पिछले पांच साल में 63 नियुक्तियां की गईं है और इस व्यवस्था के जरिए 57 अधिकारी अपनी सेवा दे रहे हैं।

राहुल-अखिलेश ने निकाली भड़ास
राहुल गांधी ने ट्वीट के जरिए अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि यह आरक्षण पर हमला है। लेटरल एंट्री दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला है।बीजेपी का रामराज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करने और बहुजनों से आरक्षण छीनने का प्रयास करता है। अब उनके सहयोगी अखिलेश यादव भला कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाज़े से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साज़िश कर रही है, उसके ख़िलाफ़ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है। ये तरीक़ा आज के अधिकारियों के साथ, युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा। आम लोग बाबू व चपरासी तक ही सीमित हो जाएंगे।दरअसल सारी चाल पीडीए से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है।

सरकार ने कांग्रेस को दिलाया याद
विपक्ष के हमले के बाद सरकार की तरफ अश्विनी वैष्णव ने मोर्चा संभाला और कहा कि लगता है कि राहुल गांधी अपनी ही सरकार में लाए रिपोर्ट को भूल गये हैं। मोइली रिपोर्ट को एक बार फिर पढ़ने की उन्हें जरूरत है। कांग्रेस का पाखंड साफ तौर पर नजर आ रहा है। दरअसल, लेटरल एंट्री की अवधारणा को विकसित करने वाला यूपीए सरकार ही थी। दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग 2005 में मनोहन सिंह सरकार ने ही बनाया गया था।

विरोध की वजह क्या है
अब सवाल ये है कि राहुल गांधी-अखिलेश यादव के विरोध के पीछे की वजह क्या है। दरअसल हरियाणा, जम्मू-कश्नीर, महाराष्ट्र,झारखंड विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। आम चुनाव के नतीजों को देखा होगा कि किस तरह से संविधान और आरक्षण का राग अलाप कर कांग्रेस 99 सीट तक जा पहुंची। कांग्रेस को लगता है कि यह संजीवनी है जिसके जरिए वो वोटर्स के दिल में उतर सकते हैं। अगर झारखंड की बात करें तो कांग्रेस यहां हेमंत सोरेन के साथ सत्ता में है. वहीं महाराष्ट्र और हरियाणा में बेहतर प्रदर्शन किया है लिहाजा इस मुद्दे को गरमाना चाहते हैं। यूपीएससी ने जब 45 पदों के लिए लेटरल एंट्री के लिए विज्ञापन दिया तो राहुल गांधी तुरंत फ्रंट फुट पर आकर चौका लगाने का मौका नहीं छोड़े।

अब बात अखिलेश यादव की। 2024 के चुनाव में समाजवादी पार्टी 37 सीट के साथ यूपी में नंबर 1 है। इसके साथ ही 10 विधानसभा के उप चुनाव होने जा रहे हैं। ये 10 विधानसभा अखिलेश यादव के लिए बेहद अहम है। पहले तो उन्हें अपनी पांच सीटों को दोबारा जीतने की चुनौती है. वहीं शेष पांच सीटों को जीतने का अवसर भी। अखिलेश यादव को यह पता है कि आरक्षण का मुद्दा उनके लिए ट्रंप कार्ड है. आपको याद होगा कि प्राइमरी टीचर की 69 हजार भर्ती पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोबारा से मेरिट लिस्ट बनाने का ऐलान किया तो उन्होंने कहा कि यह हम लोगों के संघर्षों का नतीजा है। अब जब नई लिस्ट बनेगी तो चौकन्ना रहेंगे। वो इस तरह के बयान के जरिए दलित, पिछड़ा समाज को यह संदेश दे रहे थे कि असली शुभचिंतक वही हैं। ऐसे में जब यूपीएससी की तरफ से लेटरल एंट्री का विज्ञापन निकाला गया तो वो भी बयान देने से पीछे नहीं हटे।

दरअसल राजनीति फुटबॉल मैच की तरह है जिसमें गेंद मुद्दा होता है। जैसे हर खिलाड़ी किसी तरह उस गेंद को गोलपोस्ट में डालकर जीत हासिल करना चाहते हैं ठीक वैसे ही राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह बात अलग है कि खेल के मैदान में खिलाड़ी नियमों का पालन करते हैं। लेकिन सियासत में नैतिकता और कानून को तोड़ने में कोई भी दल पीछे नहीं रहता।

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