IAS में लेटरल एंट्री का विरोध, महज सियासत या डर के पीछे वाजिब वजह
आईएएस लेटरस एंट्री पर जिस तरह से विपक्ष ने विरोध की आवाज उठाई है क्या उसमें दम है या सिर्फ विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरक्षण खतरे का राग अलापा जा रहा है।
IAS Lateral Entry: दिल्ली के मुखर्जी नगर को आईएएस का मक्का मदीना है। यहां देश के अलग अलग हिस्सों से छात्र सबसे कठिन परीक्षा की तैयारी के लिए आते हैं जिसे यूपीएससी संपन्न कराती है। इस परीक्षा के क्रेज को आप सिर्फ ऐसे समझिए कि नतीजा हजारवें हिस्से में होता है यानी की सफलता से अधिक असफलता की दर बावजूद उसके छात्रसब कुछ समर्पित कर देते हैं। इन सबके बीच आप बिना एग्जाम दिए भी आईएएस बन सकते हैं जिसे लेटरल एंट्री कहा जाता है। लेटरल एंट्री की व्यवस्था साल 2019 में शुरू की गई थी।
2019 में कुल 8 संयुक्त सचिवों के पद पर लेटरल एंट्री के तहत नियुक्ति दी गई। 2022 में कुल 30 अधिकारी जिसमें 3 ज्वाइंट सेक्रेटरी और 27 डॉयरेक्टर बनाए गए। 2023 में 37 पदों के लिए सिफारिश की गई इसमें ज्वाइंट सेक्रेटरी, डॉयरेक्टर, डेप्यूटी सेक्रेटरी शामिल थे। पिछले पांच साल में 63 नियुक्तियां की गईं है और इस व्यवस्था के जरिए 57 अधिकारी अपनी सेवा दे रहे हैं।
अब बात अखिलेश यादव की। 2024 के चुनाव में समाजवादी पार्टी 37 सीट के साथ यूपी में नंबर 1 है। इसके साथ ही 10 विधानसभा के उप चुनाव होने जा रहे हैं। ये 10 विधानसभा अखिलेश यादव के लिए बेहद अहम है। पहले तो उन्हें अपनी पांच सीटों को दोबारा जीतने की चुनौती है. वहीं शेष पांच सीटों को जीतने का अवसर भी। अखिलेश यादव को यह पता है कि आरक्षण का मुद्दा उनके लिए ट्रंप कार्ड है. आपको याद होगा कि प्राइमरी टीचर की 69 हजार भर्ती पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोबारा से मेरिट लिस्ट बनाने का ऐलान किया तो उन्होंने कहा कि यह हम लोगों के संघर्षों का नतीजा है। अब जब नई लिस्ट बनेगी तो चौकन्ना रहेंगे। वो इस तरह के बयान के जरिए दलित, पिछड़ा समाज को यह संदेश दे रहे थे कि असली शुभचिंतक वही हैं। ऐसे में जब यूपीएससी की तरफ से लेटरल एंट्री का विज्ञापन निकाला गया तो वो भी बयान देने से पीछे नहीं हटे।
दरअसल राजनीति फुटबॉल मैच की तरह है जिसमें गेंद मुद्दा होता है। जैसे हर खिलाड़ी किसी तरह उस गेंद को गोलपोस्ट में डालकर जीत हासिल करना चाहते हैं ठीक वैसे ही राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह बात अलग है कि खेल के मैदान में खिलाड़ी नियमों का पालन करते हैं। लेकिन सियासत में नैतिकता और कानून को तोड़ने में कोई भी दल पीछे नहीं रहता।