कल के हथियारों से आज की जंग नहीं जीती जा सकती- CDS अनिल चौहान

CDS जनरल चौहान ने कहा कि भारत को स्वदेशी तकनीक पर आधारित हथियार विकसित करने होंगे, क्योंकि विदेशी सिस्टम से रक्षा तैयारियां कमजोर होती हैं।;

Update: 2025-07-16 07:46 GMT
सीडीएस जनरल अनिल चौहान बुधवार को दिल्ली में 'यूएवी और सी-यूएएस के क्षेत्र में विदेशी ओईएम से आयात किए जा रहे महत्वपूर्ण घटकों के स्वदेशीकरण' पर एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए। फोटो: पीटीआई

भारत को आने वाले युद्धों के लिए तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर होना होगा। यह स्पष्ट संदेश चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को दिल्ली में यूएवी (Unmanned Aerial Vehicles) और काउंटर-यूएएस (Counter-Unmanned Aerial Systems) के स्वदेशीकरण पर आयोजित एक वर्कशॉप के दौरान दिया।उन्होंने कहा हम आज की जंग को कल की तकनीक से नहीं जीत सकते। आधुनिक युद्ध, आधुनिक हथियारों की मांग करता है और हमें इसे गंभीरता से लेना होगा।

विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम करना समय की मांग

जनरल चौहान ने ज़ोर दिया कि भारत की रक्षा रणनीतियों और अभियानों की सफलता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि हम किस हद तक विदेशी रक्षा तकनीक पर अपनी निर्भरता को कम कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि विदेशी हथियार प्रणालियों की वजह से न सिर्फ उत्पादन क्षमता बाधित होती है, बल्कि आवश्यक स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता और रखरखाव में भी दिक्कतें आती हैं।

उनके मुताबिक जब हमारी रक्षा जरूरतें किसी और की तकनीक पर टिकी होती हैं, तो हमारी रणनीतिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है। दुश्मन उस तकनीक को जानता है और हमारी चालों का अनुमान लगा सकता है।

ऑपरेशन सिंदूर से मिले स्पष्ट संदेश

CDS चौहान ने पाकिस्तान के साथ हुए हालिया सैन्य संघर्ष ऑपरेशन सिंदूर का हवाला देते हुए बताया कि भारत ने उस दौरान स्वदेशी काउंटर-यूएएस तकनीकों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा इस ऑपरेशन ने यह साबित कर दिया कि भारत को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से डिज़ाइन की गई स्वदेशी प्रणालियों पर निवेश करना होगा। हम केवल विदेशी उपकरणों पर निर्भर रहकर सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते।

पाकिस्तानी ड्रोन नाकाम, भारतीय प्रतिक्रिया प्रभावी

उन्होंने खुलासा किया कि 10 मई को पाकिस्तान की ओर से भेजे गए अनआर्म्ड ड्रोन और 'लॉइटरिंग म्यूनिशन' भारत की सैन्य या नागरिक संरचनाओं को कोई क्षति नहीं पहुंचा सके। “इनमें से अधिकांश को हमारी सेना ने काइनेटिक (गोलीबारी/विस्फोटक) और नॉन-काइनेटिक (जैसे जामिंग) उपायों से निष्क्रिय कर दिया। कुछ ड्रोन तो लगभग सही-सलामत बरामद भी हुए,” उन्होंने बताया।

युद्ध का चेहरा बदलने वाली तकनीक

ड्रोन तकनीक की बात करते हुए जनरल चौहान ने कहा, इनकी विकास प्रक्रिया क्रमिक रही है, लेकिन इनका इस्तेमाल युद्ध में पूरी तरह से क्रांतिकारी साबित हुआ है। जैसे-जैसे इनकी क्षमता का एहसास हुआ, हमारी सेना ने इन्हें एक नए रणनीतिक हथियार के रूप में अपनाया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हाल के वर्षों में भारत द्वारा लड़े गए कई युद्धों में ड्रोन की भूमिका निर्णायक रही है।

जनरल चौहान की यह टिप्पणी सिर्फ सैन्य रणनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय नीति के लिए दिशा-निर्देश है। यह एक स्पष्ट चेतावनी है कि देश को तकनीकी संप्रभुता के बिना सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती।उनका संदेश साफ है कि भविष्य की जंग, भविष्य के हथियारों से ही जीती जा सकती है और वे हथियार हमें खुद बनाने होंगे।

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