एशिया में बढ़ रही भारत की ताकत, चीन-अमेरिका को मिल रही कड़ी टक्कर! रिपोर्ट में खुलासा

भारत को आने वाले समय में महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है और इसकी बानगी विभिन्न वैश्विक राजनीतिक मंचों पर दिखने भी लगी है.

Update: 2024-09-23 18:16 GMT

India superpower: एशियाई भू-राजनीति की बिसात पर महत्वपूर्ण बदलाव चल रहा है. भारत को आने वाले समय में महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है और इसकी बानगी विभिन्न वैश्विक राजनीतिक मंचों पर दिखने भी लगी है. इसको लेकर सिडनी स्थित लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई है.

रिपोर्ट में भारत की सैन्य क्षमता, कूटनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव और भविष्य के संसाधनों को शामिल करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के पीछे तीसरे स्थान पर रखा गया है. लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के लगातार आर्थिक और सैन्य विकास के बावजूद, इसकी शक्ति स्थिर हो रही है. इसकी मुख्य वजह धीमी आर्थिक वृद्धि और दीर्घकालिक संरचनात्मक चुनौतियां हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की शक्ति न तो बढ़ रही है और न ही गिर रही है, बल्कि स्थिर हो रही है. हालांकि, चीन अभी भी प्रभावशाली है.

रिपोर्ट में संयुक्त राज्य अमेरिका अग्रणी बना हुआ है. हालांकि, चीन ने सैन्य क्षमता में अंतर को कम कर दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग अब एशिया में अंतरराज्यीय संघर्ष की स्थिति में सैन्य बलों को तेजी से तैनात करने के लिए बेहतर स्थिति में है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 एशिया पावर इंडेक्स में भारत के भाग्य में बदलाव देखने को मिला है. यह जापान को पीछे छोड़कर अब एशिया में समग्र शक्ति के मामले में तीसरे स्थान पर है. भारत के कूटनीतिक प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट में इस सुधार के लिए पीएम मोदी के वैश्विक नेतृत्व और रणनीतिक महत्वाकांक्षा को श्रेय दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक नेतृत्व और रणनीतिक महत्वाकांक्षा को अधिक महत्व दिया है.

भारत ने 2023 में एशिया पावर इंडेक्स देशों के साथ छठी सबसे अधिक संख्या में राजनयिक संवादों में भाग लिया, जो दिखाता है कि इसकी गुटनिरपेक्ष रणनीति ने इसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति में मामूली लाभ अर्जित किया है. सूचकांक भारत के राजनयिक प्रभाव में वृद्धि को दर्शाता है, जिसका श्रेय आंशिक रूप से 2023 में देश की कूटनीतिक गतिविधि की बढ़ी हुई गति को दिया जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये दोनों परिणाम बताते हैं कि भारत की गुटनिरपेक्षता की रणनीति ने इसकी वैश्विक स्थिति को लाभ पहुंचाया है.

रिपोर्ट बताती है कि भारत की ताकत मुख्य रूप से इसके विशाल संसाधनों में है. खासकर बढ़ती हुई आबादी, विशाल भूभाग और एक अर्थव्यवस्था, जो अब क्रय शक्ति समता के मामले में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. देश का कोविड के बाद का आर्थिक पुनरुत्थान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है, जिसके आर्थिक क्षमता स्कोर में 4.2 अंकों की वृद्धि हुई है. दिलचस्प बात यह है कि भविष्य के संसाधनों में भारत के स्कोर में 8.2 अंकों की महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की युवा आबादी आने वाले दशकों में जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान कर सकती है. जबकि एशिया के कई अन्य देश, जिनमें प्रतिद्वंद्वी चीन भी शामिल है, तेजी से बूढ़े हो रहे हैं और जिनके कार्यबल सिकुड़ रहे हैं. सूचकांक भारत के कूटनीतिक प्रभाव में वृद्धि को दर्शाता है, जिसका श्रेय आंशिक रूप से 2023 में देश की कूटनीतिक गतिविधि की बढ़ी हुई गति को दिया जाता है. हालांकि, आर्थिक संबंध भारत की कमजोरी बने हुए हैं. इसमें देश पिछड़ रहा है और इंडोनेशिया उससे आगे निकल गया है. रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत का निम्न-स्तरीय आर्थिक एकीकरण तथा क्षेत्रीय आर्थिक ढांचे में कमजोर भागीदारी का अर्थ है कि यह प्रवृत्ति जारी रहेगी.

रक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति भी उतनी ही जटिल है. रक्षा नेटवर्क के लिए इसका स्कोर लगातार तीसरे साल गिरा है, जिससे देश 9वें स्थान पर खिसक गया है. रिपोर्ट में इसका श्रेय "भारत के गुटनिरपेक्ष रुख और अमेरिकी गठबंधन नेटवर्क के साथ सुरक्षा सहयोग को गहरा करने के बारे में सावधानी" को दिया गया है. इस स्थिति का उदाहरण 2024 में "स्क्वाड" के उभरने से मिलता है - एक सुरक्षा-केंद्रित समूह, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं- जिसमें भारत को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया है.

वैश्चिक स्तर र भारत की भूमिका तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है. लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, नई दिल्ली के पास मलक्का जलडमरूमध्य के पूर्व में शक्ति और प्रभाव डालने की अभी भी सीमित क्षमता है. हालांकि, यह तथ्य कि इसका प्रभाव इसके संसाधनों द्वारा दिए गए वादे के स्तर से काफी नीचे है, यह दर्शाता है कि इसमें अभी भी एक प्रमुख शक्ति के रूप में आगे बढ़ने की पर्याप्त क्षमता है. यह सवाल बना हुआ है कि क्या भारत अपने विशाल संसाधनों और बढ़ते कूटनीतिक प्रभाव को ठोस क्षेत्रीय प्रभाव में बदल सकता है? ऐसा लगता है कि इसका उत्तर न केवल भारत के भविष्य को बल्कि आने वाले दशकों में एशिया में शक्ति संतुलन को भी आकार देगा.

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