'हेट स्पीच' विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव को किसका 'संरक्षण'?
राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, जस्टिस यादव के खिलाफ जांच शुरू न की जाए; क्या जजों की कथित अनुशासनहीनता की जांच के लिए अलग-अलग मानदंड हैं?;
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में विवादास्पद बयान देने के छह महीने बाद भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि विपक्षी सांसदों द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भी लाया गया था। यह मामला न्यायिक आचरण पर कार्रवाई में दोहरे मापदंडों को उजागर करता है।
विवादास्पद बयान
8 दिसंबर 2024 को जस्टिस यादव ने वीएचपी द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में "भारत में बहुसंख्यकवाद की आवश्यकता" पर बोलते हुए कुछ ऐसे बयान दिए, जिन्हें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाला भाषण माना गया। यह कार्यक्रम इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में ही हुआ था, जिससे तत्काल आक्रोश फैल गया था।
पुनीत निकोलस यादव के विश्लेषण में कहा गया है, “यदि ऐसे बयान किसी और ने दिए होते, तो नफरत फैलाने का मामला दर्ज हो गया होता।” इसके बावजूद अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।
महाभियोग की प्रक्रिया ठप
दिसंबर में 55 राज्यसभा सांसदों ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था। मार्च में राज्यसभा सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर अपनी समानांतर जांच रोकने को कहा, यह कहते हुए कि यह मामला उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विचाराधीन है।
अब तक की स्थिति
छह महीने बीत गए, कोई जांच शुरू नहीं हुई
हस्ताक्षर सत्यापन प्रक्रिया अधूरी है
मानसून सत्र निकट, लेकिन स्थिति अस्पष्ट है
तुलना से उजागर होते दोहरे मापदंड
इस मामले की तुलना न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से की जा रही है, जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप है-
14 मार्च को नकद बरामद
3 मई तक सुप्रीम कोर्ट की जांच पूरी
8 मई को रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी गई
पुनीत यादव सवाल उठाते हैं, “राज्यसभा सभापति ने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट को जांच से क्यों रोका, जबकि वर्मा के मामले में ऐसी कोई बाधा नहीं डाली गई?”
राजनीतिक संरक्षण का आरोप
जस्टिस यादव अप्रैल 2025 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं या होने वाले हैं, इसलिए कार्रवाई के लिए समय कम है। आलोचकों का कहना है कि उनकी विचारधारा सत्तारूढ़ दल के अनुकूल है, इसीलिए प्रक्रिया में देरी हो रही है। विश्लेषण में पूछा गया, “क्या इसलिए कि जस्टिस यादव ने उस कार्यक्रम में भाग लिया जो VHP ने आयोजित किया था, और जो आज की सत्ताधारी पार्टी से जुड़ी मानी जाती है?”
न्यायिक जवाबदेही पर संकट
यह मामला कई मूलभूत सवाल खड़ा करता है, क्या जजों के लिए अलग-अलग मानदंड हैं? क्या राजनीतिक विचारधारा न्यायिक जवाबदेही को प्रभावित कर सकती है?
क्या सिस्टम जस्टिस यादव के सेवानिवृत्त होने से पहले कार्रवाई कर सकेगा?
जैसे-जैसे 21 जुलाई को संसद का मानसून सत्र नजदीक आ रहा है, सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या महाभियोग प्रस्ताव आगे बढ़ेगा या फिर विवादास्पद बयान यूँ ही अनदेखे रह जाएंगे।