चुनाव का दबाव या भूल का अहसास, किसान कानून पर कंगना ने यू टर्न ले ही लिया
यह पहली बार नहीं है कि जब कंगना रनौत के बयान पर विवाद हुआ। इससे पहले किसान आंदोलन पर दिये गए बयान पर हंगामा मचा था। बीजेपी के बड़े नेताओं को सफाई देनी पड़ी थी।
Kangana Ranaut On Farm Laws: कंगना रनौत, अब इनकी दो पहचान है, एक तरफ कलाकार तो दूसरी तरफ नेता। फिल्मी स्क्रीन पर बोले जाने वाले डॉयलॉग का रिहर्सल होता है, लिहाजा अगर कोई खामी रह गई तो दुरुस्त हो जाए। लेकिन सियासत की पिच पर सियासी बोल की स्क्रिपटिंग दुरुस्त नहीं है तो नुकसान होना तय है। कंगना रनौत ने हाल ही में किसान आंदोलन पर बयान दिया, बवाल बढ़ा तो पार्टी ने किनारा कर लिया। अब एक बार फिर बयान दिया किसान कानून को लेकर। उन्होंने तीनों कानून को जायज बताया। जैसे ही बयान दिया बीजेपी की तरफ से सफाई आ गई कि वो इस विषय पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं। अब जब पार्टी ने उनके बयान से किनारा कर लिया तो उन्हें बैकफुट पर आना पड़ा और सफाई देनी पड़ी।
कंगना का यू टर्न
अब कंगना के यू टर्न या दबाव या भूल को यूं समझ सकते हैं। महज १२ घंटे पहले ही उन्होंने ट्वीट के जरिए यह कहा था कि किसान बिल पर उनका नजरिया व्यक्तिगत है, पार्टी से लेना देना नहीं हैं।
यहां अब सवाल उठता है कि अगर किसी विषय पर बोलने की आजादी है तो कंगना रनौत को यू टर्न लेने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या हरियाणा का चुनाव बड़ी वजह है। इस मामले में जानकार कहते हैं कि निश्चित तौर पर असर है। एक तरफ हरियाणा की सरकार किसानों को लुभाने के लिए 24 फसलों को एमएसपी में लाए जाने का बखान करती है। कृषि फसल बीमा योजना और कृषि सिंचाई योजना को और पुख्ता बनाने की बात कहती है वैसे में किसान कानून का राग अगर कोई भी नेता छेड़ता है तो उसके नुकसान से बचना बेहद कठिन होगा। आम चुनाव 2024 में कांग्रेस ने जिस तरह से 10 में से पांच सीटों पर कब्जा किया उससे हरियाणा के लोगों के मूड को समझा जा सकता है। किसान पूरी तरह से खिलाफ थे। उस असंतोष को ही नियंत्रित करने के लिए २४ फसलों वालों को एमएसपी पर खरीद की बात कही गई। अगर आप कांग्रेस के घोषणापत्र को देखें तो वहां कानूनी अमली जामा पहनाने की बात कही गई है।
हाल ही में एक रिपोर्ट आई कि जींद और उसके आसपास के जिलों में बीजेपी के उम्मीदवारों को किसान गांवों में घुसने नहीं दे रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोष किस स्तर पर है। प्रदेश स्तर के नेता उस रोष को थामने की कवायद में जुटे हैं, ऐसे में इस तरह का बयान उनकी कोशिशों पर पानी फेरने की तरह है। लिहाजा केंद्रीय नेतृत्व कंगना के बयान के बाद सफाई देने में देर नहीं कर रहा है। बात सिर्फ हरियाणा तक नहीं है। आने वाले समय में झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं। ये दोनों राज्य कृषि प्रधान राज्य हैं। झारखंड में बीजेपी की सरकार नहीं है लिहाजा उसके सामने सरकार में आने की चुनौती है। वहीं महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार में लिहाजा सरकार में बने रहने की चुनौती है। ऐसे में यदि कंगना भले ही बीजेपी की थिंक टैंक का हिस्सा भले ही ना हों वो बीजेपी की नेता और सांसद है। लिहाजा उनका बयान भले ही व्यक्तिगत हो विपक्ष के लिए मुद्दा तो है। यानी कि बीजेपी को विवश होकर बैकफुट पर जाना होगा। यदि बीजेपी को इस वजह से बैकफुट पर जाना पड़े तो आने वाले समय में उसके लिए मुश्किल में इजाफा होना तय है।