पैसा देकर भी नीरव मोदी क्यों नहीं बन पाए थे वानुआतु के नागरिक?
भारत के भगोड़े ललित मोदी तो टापुओं के देश वानुआतु की नागरिकता पाने में फिर भी कामयाब हो गए थे लेकिन नीरव मोदी रह गए। आखिर उनकी अर्जी क्यों खारिज हुई थी?;
ललित मोदी और नीरव मोदी में कई बातें कॉमन हैं। पहली बात तो ये कि ये दोनों हिंदुस्तान के भगोड़े हैं और भारतीय एजेंसियों को अलग-अलग वजहों से इनकी तलाश है। लेकिन एक और बात दोनों में कॉमन है और वो ये कि दोनों ने नागरिकता के लिए टापुओं पर बसे एक छोटे से देश को चुना।
वह देश है वानुआतु, जोकि दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत में स्थित है और 13 प्रमुख द्वीपों और कई छोटे द्वीपों की एक श्रृंखला से बना है। भारतीय प्रीमियर लीग यानी IPL के संस्थापक अध्यक्ष ललित मोदी की नागरिकता रद्द करने के वानुआतु के प्रधानमंत्री ने आदेश दिए हैं, ये बात तो पूरी दुनिया को पता चल गई है।
लेकिन भारत के भगोड़े हीरा कारोबारी और पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के आरोपी नीरव मोदी ने भी वानुआतु में बसने की प्लानिंग बना ली थी, यह बात शायद बहुतों को नहीं पता होगी। नीरव मोदी ने 13,600 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक के फर्जीवाड़े के खुलासे से लगभग तीन महीने पहले वानुआतु की नागरिकता लेने की कोशिश की थी।
पैसा दो,नागरिकता लो
टापुओं के देश वानुआतु में नागरिकता हासिल करने के लिए यह सीधा फॉर्मूला है, पैसा दो और नागरिकता लो। वानुआतु में इस तरीके से नागरिकता देने के लिए बाकायका एक प्रोग्राम है जिसका नाम है सिटीजनशिप बाई इनवेस्टमेंट यानी CBI. जिसमें दिया जाने वाला चंदा या निवेश का पैसा वापस नहीं होता।
वानुआतु में भारतीय मुद्रा के हिसाब से लगभग 1.30 करोड़ रुपये में नागरिकता खरीदी जा सकती है। यह नागरिकता प्राप्त करने के सबसे किफायती विकल्पों में से एक है।
नीरव मोदी ने क्या किया?
रिपोर्ट्स के मुताबिक बैंक घोटाले के आरोपी नीरव मोदी ने वानुआतु की नागरिकता के लिए वहां की सरकारी एजेंसी को नवंबर 2017 में 1.70 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए।
लेकिन 'पैसा फेंको,तमाशा देखो' जैसे खुले ऑफर के बावजूद सारे अमीर लोग वानुआतु की नागरिकता हासिल नहीं कर पाते।
नीरव मोदी के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। वानुआतु की सरकारी वित्तीय खुफिया इकाई (FIU) ने जब नीरव मोदी की अर्जी की औपचारिक जांच की तो उसमें नीरव मोदी का रिकॉर्ड दागदार पाया गया।
इसलिए वानुआतु की सरकार ने उनकी नागरिकता के आवेदन पत्र पर विचार नहीं किया और इस तरह नीरव मोदी वानुआतु के नागरिक बनते-बनते रह गए।
पेच कहां फंसा?
दरअसल पिछले कुछ सालों से ये चिंता जताई जाती रही है कि पैसा लेकर नागरिकता देने की योजना गुनहगारों के लिए कवच का काम कर रही है। साथ ही अपने मूल देश में कानूनी प्रक्रिया का सामना करने से बचने में मदद कर रही है। पिछले साल दिसंबर महीने में, यूरोपीय यूनियन ने वानुआतु की इस नागरिकता योजना के कारण उसके साथ वीजा-मुक्त यात्रा समझौते को रद्द कर दिया था।
इसके बाद वानुआतु की सरकार के कान खड़े हो गए। ललित मोदी की नागरिकता रद्द करने के आदेश को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।