मोदी 3.0 सरकार के लिए संसद में बिल पास करना नहीं होगा आसान

बदले समीकरण ने बदली संसद की राजनीति. 18वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में विपक्ष ने अपने तेवर दिखाए तो वहीँ प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार बनाने के लिए बहुमत की जरुरत होती है और चलने के लिए सहमति जरुरी होती है

Update: 2024-06-24 13:43 GMT

Loksabha Bill Politics: आज 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू हो गया. प्रधानमंत्री मोदी ने बतौर सांसद भी शपथ ले ली. लेकिन इस बार की ये लोकसभा पिछली दो लोकसभा के मुकाबले बदली बदली सी दिखीं. कारण साफ़ है बीजेपी का पूर्ण बहुमत में न होना. बीजेपी के पास 240 सांसद हैं, यानी बहुमत के आंकड़े से 32 कम. वहीँ एनडीए के कुल सांसदों की संख्या 293 है. अगर विपक्ष की तस्वीर देखें तो वो पिछली दो बार के मुकाबले काफी बड़ी है. इंडिया गठबंधन के सभी दलों की बात करें तो उनके सांसदों की संख्या 234 है. इसके अलावा इस बार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी रहेगा. संकेत साफ़ है कि इस बार की मोदी सरकार को कई जगहों पर समझौता करना होगा.

शायद यही वजह भी रही कि आज संसद भवन पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मीडिया के सामने कहा कि सरकार बनाने के लिए बहुमत जरुरी है और सरकार चलाने के लिए सहमति जरुरी है.

प्रधानमंत्री के इस कथन से ये भी साफ़ संकेत मिलते हैं कि इस बार मोदी 3.0 सरकार को कई जगहों पर कई महतवपूर्ण बिल पास कराने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे, तब भी ये जरुरी नहीं की उनकी कोशिश सफ़ल ही रहे. इसमी कुछ ऐसे बिल भी शामिल हैं, जो मोदी 3.0 सरकार के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. हम आज इसी विषय पर बात कर रहे हैं कि आखिर किस तरह से मोदी 3.0 सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

पहले बात करते हैं देश की संसद की और इनके काम की

हमारे देश की संसद में दो सदन हैं, ये सबको पता है. राज्यसभा और लोकसभा. दोनों ही सदनों का प्रमुख काम कानून या विधान बनाना होता है. सबसे पहले सदन में बिल जिसे विधेयक कहते हैं, उसे सदन में पेश करना होता है. फिर इस पर चर्चा होती है, जिसके बाद इसके पक्ष और विपक्ष में वोटिंग होती है. अगर बिल बहुमत से पास हो जाता है तो फिर इसे कानून बनने के लिए राष्ट्रपति से मंजूरी की आवश्यकता होती है.मंजूरी मिलते ही, बिल कानून बन जाता है.

ये बिल भी कई प्रकार के होते हैं, कुछ बिल ऐसे होते हैं, जिसमें राज्यसभा की जरुरत नहीं होती. इसके अलावा कुछ बिल ऐसे होते हैं, जिसमें दोनों ही सदनों पर चर्चा और वोटिंग जरुरी होती है और उस बिल का दोनों ही सदनों में पारित होना भी जरुरी होता है. बात करते हैं अलग अलग प्रकार के इन बिलों की.


1. ऑर्डनरी बिलः साधारण बहुमत की जरूरत

आर्डिनरी बिल जैसा की नाम से ही साफ़ है कि साधारण बिल. ये बिल ऐसे होते हैं, जिनक संविधान में विशेष रूप से कोई ज़िक्र नहीं किया गया है. इस बिल को सांसद और मंत्री पेश करते हैं. बिल को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है. जो बिल सदन में बिल पेश करता है और उसके विषय और उद्देश्यों के बारे में बताता है. सदन में मौजूद सभी सांसद अपनी अपनी राय रखते हैं, चर्चा होती है. जिसके बाद वोटिंग की जाती है. सदन में मौजूद सांसदों की संख्या में से आधे से ज्यादा सांसद अगर पक्ष में वोट करते हैं तो बिल पास हो जाता है.

2. मनी बिलः मनी बिल भी साधारण बिल की तरह ही होता है, जो साधारण बहुमत से ही पास हो जाते हैं. ये बिल सिर्फ रेवन्यू, टैक्स संबधित, सरकारी उधारी और सरकार के फाइनेंशियल मामलों से संबंधित होते हैं. ये बिल सिर्फ लोकसभा में पेश किये जाते हैं. राज्यसभा इस विषय पर केवल अपनी सिफारिशें कर सकती हैं, जिन्हें मानना लोकसभा के लिए जरुरी नहीं है. ये बिल लोकसभा में पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है. सबसे जरुरी बात ये है कि अनुच्छेद 110(3) के तहत किसी भी विधेयक को धन विधयेक/मनी बिल मानने या न मानने का अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष के होता है. अध्यक्ष के फैलसे को चुनौती नहीं दी जा सकती.

3. फाइनेंस बिलः/ वित्त विधेयक : ये बिल भी साधारण बहुमत से पास हो जाता है. ये बिल राजकोष से संबंधित होते हैं. ये बिल मनी बिल की श्रेणी में नहीं आते. इस बिल को भी धन विधेयक की तरह ही लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है. राज्यसभा में भेजे जाने के बाद, इसे सामान्य विधेयक की तरह ही प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.

4. संविधान संशोधन विधेयकः जैसा की नाम से ही स्पष्ट है ये बिल संविधान में संशोधन के लिए होता है. यानी संविधान की भी धारा या प्रावधान में कोई बदलाव करने के लिए. इस बिल को पास कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. इस बिल की ख़ास बात ये है कि ये दोनों सदनों में पारित होना चाहिए. इस बिल में कुछ ऐसे भी विधान हैं जैसे संघवाद, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि में संशोधन. जिनमें सिर्फ लोकसभा या राज्यसभा से ही बिल पारित होने से काम नहीं चलता बल्कि देश के तमाम राज्यों की विधानसभाओं में से कम से कम 50 प्रतिशत में ये बिल पास होना अनिवार्य है. इसके बाद बिल राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज दिया जाता है

5. प्राइवेट बिलः ये बिल भी साधारण बहुमत से पास हो जाता है. इसे संसद के किसी भी सदन में कोई भी सदस्य पेश कर सकता है, जो मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं हो. सदन में इसे पेश करने के लिए 1 महीने का नोटिस देने की आवश्यकता होती है. इस बिल की खासियत ये है कि ये सिर्फ शुक्रवार को ही पेश किया जा सकता है और इस दिन इस पर चर्चा भी हो सकती है. अगर मंत्री इस बिल को वापस लेने की गुजारिश करे तो बिल पेश करंने वाला सदस्य इसे वापस भी ले सकता है.


बहुमत के आंकड़े से दूर रहने पर मोदी 3.0 सरकार की मज़बूरी भी दिखेगी

जैसा की साफ़ है ये सरकार जिसे हम मोदी 3.0 सरकार कह रहे हैं, ये सही मायने में एनडीए की सरकार है, जो अलग अलग दलों से मिले समर्थन के बाद बनी है. यानी ये साफ़ है कि अब मोदी सरकार को सदन में बिल पारित करवाने के लिए सिर्फ अपने ही सांसदों की नहीं बल्कि सहयोगियों की भी उतनी ही जरुरत पड़ेगी.

मजबूत विपक्ष - अगर बात करें तो पिछली दो सरकारों में विपक्ष बिलकुल कमजोर था और मोदी सरकार पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा ताकतवर सरकार. यही वजह भी रही कि मोइद सरकार के अधिकांश बिल चाहे धारा 370 का हटाना, पास हो गए. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. विपक्ष पहले की अपेक्षा बेहद मजबूत है. इसलिए विपक्ष इस बार कोई भी बिल आसानी से पारित नहीं होने देगा, ख़ास तौर से जिन बिलों को पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरुरत है, वो बिल मुश्किल ही पारित हो पायेंगे.

वहीं राज्यसभा में भी बिल पास कराना बीजेपी और एनडीए दोनों के लिए आसान नहीं होगा. क्योंकि राज्यसभा में बीजेपी और एनडीए दोनों को ही मिलाकर पर्याप्त संख्या नहीं है.


वो महत्वपूर्ण बिल जो अटक सकते हैं

1. बीमा सुधार कानून: इस बिल में बिमा क्षेत्र में विदेश निवेश ( FDI ) को 49% से बढ़ा कर 74% करना है. ताकि बिमा क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके. साथ ही बिमा नियामक और विकास प्राधिकरण( IRDAI ) को पहले के मुकाबले ज्यादा सशक्त करना, ताकि वे अधिक कुशलता से बीमा कंपनियों की निगरानी कर सकें और ग्राहकों के अधिकारों का ध्यान रख सकें. वहीं कुछ राजनितिक दलों का ऐसा मानना है कि विदेशी निवेश बढ़ने से देसी बिमा कंपनियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इसके अलावा विदेशी कंपनी भारतीय ग्राहकों की अनदेखी कर सकती हैं.

2. डिजिटल इंडिया एक्ट - मोदी सरकार के लिए एक अतिमहत्वपूर्ण बिल है. मोदी सरकार ने ही भारत को डिजिटल इंडिया मुहीम से जोड़ा और डिजिटलाइजेशन की तरफ कदम बढ़ाया. इस दौरान डिजिटल की दुनिया में अपराध जैसे साइबर फ्रॉड भी काफी बढ़े. इन पर अंकुश लगाने के मकसद से डिजिटल इंडिया एक्ट को लाने की तैयारी की गयी. पूर्व आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इसका खूब प्रचार भी किया था. उन्होंने मीडिया के सामने इसके फायदे भी गिनवाये थे. दरअसल इस कानून के माध्यम से मोदी सरकार 23 साल पुराने आईटी एक्ट को बदलने की तैयारी में है. सरकार का कहना है कि IT एक्ट में इंटरनेट शब्द नहीं है. नए कानून में साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, गोपनीयता और अन्य जरूरी क्षेत्रों पर ध्यान देने की बात की गई है. डिजिटल इंडिया एक्ट में 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है, अहि वजह है कि विपक्ष कहीं न कहीं चिंतित भी है. विपक्ष का मानना है कि इस कानून की आड़ में सरकार उन लोगों को दबाएगी जो इंटरनेट पर उसकी आलोचना करते हैं.

3. बीज विधेयकः इस बिल में ख़राब गुणवत्ता के बीज बेचता है तो उसके खिलाफ जुरमाना 5 हजार से बढ़ाकर कर 5 लाख रूपये करने का प्रावधान है. ये विधेयक किसान बिल का भी हिस्सा था, जिसका किसानों ने विरोध किया था. सरकार इसे बीज बिल 1966 की जगह लाना चाहती है. सरकार का मानना है कि इससे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज मिलेंगे. जबकि विपक्ष और किसान संगठनों का कहना है कि छोटा किसान महंगा बीज कैसे खरीदेगा. वहीँ छोटी कंपनियां सरकार के मानक पर खरी नहीं उतरेंगी. ऐसे में छोटा किसान और छोटा व्यापारी दोनों ही प्रभावित होंगे.

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