सरकार वही लेकिन अब तेवर नरम, 4 हफ्ते में 3 फैसलों पर मोदी सरकार का U-Turn

नरेंद्र मोदी तीसरी दफा सरकार में हैं। लेकिन इस रिजीम में कुछ ऐसे फैसले किए जिससे वो पीछे हटते नजर आए।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-21 03:00 GMT

Narendra Modi:  मोदी सरकार ने एक और फैसले से अपने पैर खींच लिए हैं। मामला लैटरल एंट्री का है। जिसके जरिए वह सीनियर आईएएस अधिकारियों का काम प्राइवेट एक्सपर्ट से कराना चाहती थी। लेकिन विपक्ष के विरोध और आरक्षण का मामला बनता देख अब सरकार ने इस फैसले पर फिलहाल रोक लगाने का फैसला किया है। खास बात यह है कि जब सरकार ने यह फैसला बदला तो साफ तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेकर यह बताने की कोशिश की गई कि मोदी आरक्षण पर किसी तरह का कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं।

सख्त फैसलों के लिए मोदी का नाम
सुनने में यह बात भले ही सामान्य लगे, लेकिन इतनी छोटी नहीं है। यह प्रधानमंत्री मोदी का बदला रूप है। क्योंकि वह इतनी जल्दी अपने फैसलों से पीछे हटने के लिए नहीं जाने जाते हैं। याद करिए तीन कृषि कानून, जिसका पूरे देश में विरोध था और किसान सड़क पर एक साल से बैठे हुए थे। इतने विरोधके बावजूद, उसे वापस लेने में मोदी को एक साल लग गए थे। लेकिन तीसरे कार्यकाल के पहले 2 महीने में मोदी सरकार ने जिस तरह अपने फैसलों पर रवैया बदला है, उससे साफ है कि मोदी सरकार अब सहिष्णु हो गई है। और उस पर अब विपक्ष और सहयोगियों का दबाव भारी पड़ रहा है।

वक्फ, एससी एसटी कोटा और अब लेटरल एंट्री
यकीन नहीं है तो इन फैसलों को देखिए, पहले वक्फ संशोधन विधेयक की बात करते हैं। सरकार ने शुरू में जब इस विधेयक को संसद में पेश किया था तो यह किसी को अंदाजा नहीं था कि इस मामले पर सरकार झुकेगी। लेकिन सहयोगियों के आग्रह या यू कहें कि दबाव पर, विधेयक को संसद की संयुक्त समिति में भेज दिया गया।

दूसरा कदम अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण में उप श्रेणी और क्रीमी लेयर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दिखा । जब सरकार ने मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पारित करके, फैसले पर असहमति जताई। यह कदम भी गठबंधन सरकार की विवशताओं का ही संकेत है। इसके बाद अब लैटरल एंट्री । इन दोनों मुद्दों पर मोदी के सहयोगी चिराग पासवान, अनुप्रिया पटेल तक के सवाल खड़े किए थे। ऐसे में फैसले से हाथ खींचने का मतलब है कि सरकार पर सहयोगी दलों का दबाव काम कर रहा है। जबकि पिछले दस सालों में सहयोगी दल पूरी तरह भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की दया पर निर्भर थे।

इसी तरह हाल ही में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पर एनडीए गठबंधन की बैठक हुई। जिसमें भाजपा के सभी सहयोगी दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया। इस बैठक ने अटल बिहारी वाजपेयी युग के एनडीए की याद दिला दी , जब ऐसी बैठकें अक्सर हुआ करती थीं। जबकि 2024 के नतीजे आने से पहले, पिछले दस सालों में इस तरह की कोई बैठक नहीं हुई। यहां तक कि अनौपचारिक चायपान के लिए भी एनडीए की कोई बैठक हुई हो, ऐसा याद नहीं आता है।

सरकार का रुख क्यों बदला
सरकार का रुख कैसे बदल गया है उसे आप प्रधानमंत्री मोदी के तेवर से भी देख सकते हैं। वह जून में नतीजे आने के पहले कई मीटिंग और सभाओं में साफ तौर पर कहते थे, कि हम नतीजों का इंतजार नहीं करेंगे। अभी से 100 डेज का एजेंडा तैयार है। आरबीआई के एक कार्यक्रम में उन्होंने यहां तक कहा था कि आप को ज्यादा दिन चैन से नहीं बैठने देंगे। शपथ के बाद झमाझम काम आने वाला है।लेकिन दो महीने बीतने के बाद भ इस समय सत्ता के गलियारों में 100 डेज एजेंडे की कोई चर्चा नहीं है। और न ही सरकार ने अभी तक कोई चौंकाने वाला फैसला लिया है। जबकि मोदी सरकार नोटबंदी, धारा 370, कृषि कानून से लेकर कई ऐसे फैसले ले चुकी है। जिससे पूरा देश चौंक गया था।

साफ है कि मोदी 3.0 का तेवर बदला हुआ है। और सरकार को अब विरोध और उसके चुनावी परिणाम की ज्यादा चिंता हो रही है। खास तौर से जब हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हो। ऐसे में मोदी सरकार किसी भी हालत में बड़ा चुनावी झटका नहीं खाना चाहती है। क्योंकि अगर ऐसा होगा तो फिर विपक्ष का जोश बहुत हाई हो चुका होगा, जो गठबंधन की सरकार की सेहत लिए कहीं से सही नहीं होगा।

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