संसद के शीत सत्र में गर्मी बढा सकता है वन नेशन वन इलेक्शन, हो सकता है पेश !

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सूत्रों का दावा है कि सरकार संसद के शीत सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पेश कर सकती है, जिसे बाद में JPC में भेजा जा सकता है. अगर ये बिल पेश होता है तो संसद में हंगामा तय है.;

Update: 2024-12-09 14:52 GMT

One Nation One Election : भारत सरकार "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (One Nation, One Election) की महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने के लिए तैयार हो रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार आगामी संसदीय सत्र में इस योजना से संबंधित विधेयक पेश करने की संभावना है। इस पहल का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को समेकित करके समय, धन और प्रयास की बचत करना है।


रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को मिली कैबिनेट की मंजूरी
सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट को कैबिनेट में स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस रिपोर्ट में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की व्यवहार्यता और इसे लागू करने के लिए आवश्यक कदमों पर विस्तृत सुझाव दिए गए हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इस पहल को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए द्विपक्षीय समर्थन और राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाना आवश्यक होगा।

विधेयक पर आम सहमति और संयुक्त संसदीय समिति की भूमिका
सरकार अब विधेयक पर व्यापक सहमति बनाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए योजना है कि विधेयक को विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) या किसी अन्य संयुक्त समिति में भेजा जाए। JPC में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार किया जा सके। इसके अलावा, अन्य हितधारकों जैसे राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष और देशभर के बुद्धिजीवियों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है। सरकार का उद्देश्य प्रारंभ में जनता की राय लेना है और बाद में इस पहल को लागू करने के तरीकों पर चर्चा करना है।

संवैधानिक संशोधन की आवश्यकताएं और चुनौती
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" योजना को लागू करने के लिए संविधान में कम से कम छह संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना अनिवार्य है। वर्तमान में, NDA के पास राज्यसभा में 112 सीटें और लोकसभा में 292 सीटें हैं। राज्यसभा में कुल 245 सीटों में से दो-तिहाई बहुमत के लिए 164 वोटों की जरूरत है, जबकि लोकसभा में 545 में से 364 वोटों की आवश्यकता होगी। हालांकि NDA के पास सामान्य बहुमत है, दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर विपक्षी दलों की संगठित विपक्ष के कारण।

सरकार का तर्क और विपक्ष की आपत्तियां
सरकार का तर्क है कि वर्तमान चुनाव प्रणाली समय, धन और संसाधनों की बर्बादी है। एक साथ चुनाव कराने से न केवल चुनाव खर्च में कमी आएगी, बल्कि विकास कार्यों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने यह भी कहा है कि मौजूदा चुनावी आचार संहिता में विकास कार्यों पर अवरोध उत्पन्न हो रहा है, जिसे सुधारा जाना चाहिए।
विपक्ष ने इस पहल को अव्यावहारिक और असंवैधानिक बताया है। उन्होंने चुनाव आयोग के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कहा है कि राज्य चुनाव कई चरणों में होते हैं, जिससे एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव मुश्किल है। विपक्ष का मानना है कि यह पहल लोकतंत्र की बुनियादी संरचना के खिलाफ है और इसे लागू करना संभव नहीं है।

रामनाथ कोविंद रिपोर्ट के मुख्य सुझाव
रामनाथ कोविंद की समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार को द्विपक्षीय समर्थन प्राप्त करना चाहिए और राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा नैरेटिव तैयार करना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" योजना को 2029 के बाद ही लागू किया जा सकता है, ताकि सभी आवश्यक तैयारियाँ पूरी हो सकें और एक स्थिर राजनीतिक वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।

आसन नहीं है राह
सरकार की "एक राष्ट्र, एक चुनाव" योजना भारत के चुनावी परिदृश्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए व्यापक संवैधानिक संशोधन और राजनीतिक सहमति आवश्यक है। यदि सरकार इस दिशा में सफल होती है, तो यह चुनाव प्रक्रिया को अधिक सुगम, पारदर्शी और कुशल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वहीं, विपक्ष की आपत्तियों और संवैधानिक चुनौतियों के मद्देनजर, इस पहल के सफल होने के लिए कूटनीतिक कौशल और व्यापक सहयोग की आवश्यकता होगी।
इस महत्वपूर्ण पहल की सफलता या असफलता दोनों ही मामलों में, यह भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवैधानिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालेगा।


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