पेपर लीक समेत छह कारणों को ठहराया बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन का ज़िम्मेदार

लोकसभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन को लेकर यूपी बीजेपी ने 15 पन्नों की रिपोर्ट केन्द्रीय पार्टी को सौंपी. जिसमें प्रशासनिक मनमानी, पेपर लीक, पार्टी पदाधिकारियों में असंतोष, संविदा कर्मियों की नियुक्ति आदि कारणों का हवाला दिया गया है

Update: 2024-07-18 11:25 GMT

UP BJP Feedback Report: लोकसभा चुनाव के बाद बेशक तीसरी बार नरेन्द्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं और केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार का गठन हो चुका है, लेकिन बीजेपी का अपने प्रदर्शन को लेकर मंथन चालू है. इसी क्रम में बीजेपी की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई ने 15 पन्नों की एक रिपोर्ट केन्द्रीय दल को सौंपी है, जिसमें लोकसभा चुनाव में पार्टी के खरब प्रदर्शन को लेकर 6 कारण स्पष्ट किये गए हैं, इन कारणों में पेपर लीक से लेकर ओबीसी और दलित वोटरों का पार्टी से छिटकना बताया गया है. साथ ही इस बात पर की जोर दिया गया है कि पार्टी के कार्यकर्त्ता और पदाधिकारियों के सम्मान पर भी ध्यान देने की जरुरत है, जो कथित प्रशासनिक मनमानी में अनदेखी का शिकार बन रही है.

40 हजार लोगों से लिया गया फीडबैक

बीजेपी की उत्तर प्रदेश इकाई ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए जमीनी स्तर पर लोगों, पार्टी के कार्यकर्ताओं से संपर्क कर उनसे फीडबैक लिया है. साथ ही अमेठी, अयोध्या और फैजाबाद जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में हुई हार का आकलन करने के लिए भी पूरी तरह से कार्यकर्ताओं के बीच पहुँच कर उनकी प्रातक्रिया जानी है. पार्टी सूत्रों के अनुसार 40,000 लोगों से फीडबैक एकत्र किया गया था, जिसके आधार पर 15 पन्नो की ये फीडबैक रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय पार्टी को सौंपी गयी है.

रिपोर्ट में ये छह प्रमुख कारण बताए गए

रिपोर्ट में बीजेपी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए छह प्रमुख कारणों की पहचान करने का दावा किया गया है. रिपोर्ट में जिन कारणों पर जोर दिया गया है, उनमें कथित प्रशासनिक मनमानी, पेपर लीक, पार्टी पदाधिकारियों में असंतोष, सरकारी पदों पर संविदा कर्मियों की नियुक्ति, चुनावी समर्थन में बदलाव और दलित वोटों में कमी शामिल है.

बीजेपी की उत्तर प्रदेश इकाई के एक पार्टी नेता ने कथित तौर पर बताया कि पिछले तीन सालों में राज्य में कम से कम 15 पेपर लीक हुए हैं. दूसरे ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि सरकारी नौकरियां संविदा कर्मियों द्वारा ली जा रही हैं, जिससे विपक्ष के इस कथन को बल मिला कि सरकार आरक्षण के खिलाफ है. आरक्षण नीतियों के खिलाफ पार्टी नेताओं के बयानों ने स्थिति को और खराब कर दिया.

प्रशासन और कार्यकर्ताओं के बीच अहं का टकराव?

एक अन्य नेता ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारी विधायकों से ज़्यादा शक्ति का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पार्टी कार्यकर्ता अपमानित महसूस करते हैं. पार्टी आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा वर्षों से बनाए गए मज़बूत संबंधों को खो रही है. रिपोर्ट में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है.

वृद्ध और युवा दोनों के मुद्दों पर दिया जाए ध्यान

राज्य इकाई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विपक्ष ने लोकसभा चुनाव में प्रभावी ढंग से ऐसे मुद्दे उठाए जो जमीनी स्तर पर लोगों को प्रभावित कर रहे थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि "पुरानी पेंशन योजना जैसे मुद्दे वरिष्ठ नागरिकों को प्रभावित कर रहे थे, जबकि अग्निवीर और पेपर लीक जैसी चिंताएं युवाओं को प्रभावित कर रही थीं." यही वजह रही कि दोनों ही वर्गों के वोट पार्टी से छिटकें हैं.

वोट बैंक में बदलाव

राज्य इकाई द्वारा तैयार की गयी 15 पन्नों की रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि इस चुनाव में पार्टी का जो जातीय समीकरण या कहें कि हिदुत्व को बांधे रखने का जो मूल मन्त्र था, उस पर ही चोट पहुंची है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ठाकुर और यादव वोट बैंकों में भारी कमी आने के साथ साथ कुर्मी और मौर्य समुदायों का समर्थन भी कमजोर पड़ा, इसके अलावा मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वोट शेयर में भी कमी आई. इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा.

8 प्रतिशत गिरा वोट शेयर

रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि पूरे राज्य में बीजेपी का वोट शेयर 8 प्रतिशत गिरा है. इस रिपोर्ट के माध्यम से पार्टी नेतृत्व को ये सन्देश दिया गया है कि वो भविष्य के चुनावों को " अगाड़ा बनाम पिछड़ा " (सुविधा प्राप्त बनाम वंचित) के बीच मुकाबले में बदलने से रोकने के लिए कदम उठाए.

वापसी करती समाजवादी पार्टी

लोकसभा चुनावों में, विपक्षी इंडिया गठबंधन की समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 43 सीटें हासिल कीं, जबकि एनडीए को 36 सीटें ही मिलीं. 2019 में एनडीए को 64 सीटें मिली थीं. इस बार अकेले सपा ने 37 सीटें हासिल कीं, जो 2019 में पांच से काफी ज्यादा थीं. बीजेपी 2019 में 62 सीटों से घटकर 33 सीटों पर आ गई.

योगी को हार के लिए ज़िम्मेदार मानने से समर्थकों का इंकार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थक इस बात को मानने से इनकार करते हैं कि इस हार के लिए वे जिम्मेदार हैं. उनके अनुसार, प्रशासन पर उनकी पकड़ और सख्त कानून-व्यवस्था और अनुशासन पर ध्यान देने से बीजेपी को राज्य पर अपनी पकड़ बनाए रखने में मदद मिली है. उनका कहना है कि मुख्य मुद्दा अलोकप्रिय उम्मीदवारों को टिकट देना थी, जिसमें आदित्यनाथ की कोई भूमिका नहीं थी.

अंतर कलह?

ये रिपोर्ट 14 जुलाई को लखनऊ में आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में हुई चर्चा के आधार पर तैयार की गई है, जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि “बीजेपी को अपने अति-आत्मविश्वास की कीमत चुकानी पड़ी”, जबकि उनके डिप्टी केशव मौर्य ने कहा कि “संगठन सरकार से बड़ा है.”

मौर्य ने सीएम पर कटाक्ष करते हुए कहा, " बीजेपी की योजना में संगठन को हमेशा सरकार से ऊपर रखा जाता है. इसलिए सभी मंत्रियों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों को पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए. मैं पहले पार्टी का कार्यकर्ता हूं और फिर डिप्टी सीएम."

उपचुनावों पर नजर

चूंकि इन टिप्पणियों से राज्य के पार्टी नेताओं के बीच आंतरिक कलह की बू आ रही है, इसलिए कथित तौर पर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को यह बात बताई गई है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को तुरंत सुलझा लेना चाहिए और इस भावना को “उच्च जाति बनाम पिछड़ी जाति” संघर्ष में बदलने से रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू करना चाहिए.

पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने कथित तौर पर राज्य के नेताओं को अपने मतभेदों को सुलझाने और 10 विधानसभा सीटों के लिए आगामी उपचुनावों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है.

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