प्रोक्रास्टिनेशन: आलस नहीं! ये है दिमाग की वैज्ञानिक चाल, जानें कैसे
प्रोक्रास्टिनेशन केवल प्रोडक्टिविटी ही नहीं घटाता बल्कि यह स्ट्रेस, एंग्जाइटी और यहां तक कि हार्ट प्रॉब्लम्स तक बढ़ा सकता है...
क्या आप भी किसी जरूरी काम को बार-बार टालते रहते हैं? जैसे, बचपन में हम करते हैं कि कल से पढ़ाई शुरू करेंगे, इस हफ्ते डाइटिंग करेंगे, प्रोजेक्ट अगले रविवार तक कर लूंगा... और फिर वही काम दिनों, हफ्तों और महीनों तक खिंचता चला जाता है। यही है प्रोक्रास्टिनेशन यानी काम को टालने की आदत। लेकिन सवाल है, क्या यह मात्र आलस है? रिसर्च कहती है- नहीं! यह हमारे मस्तिष्क और भावनाओं की गहरी साइंटिफिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
मस्तिष्क और प्रोक्रास्टिनेशन का रिश्ता
हमारा मस्तिष्क एक साथ कई हिस्सों में काम करता है। प्रोकास्टिनेशन में खास तौर पर दो हिस्से अहम हैं...
अमिग्डाला (Amygdala): डर और चिंता का केंद्र
जब हमें कोई मुश्किल या चुनौतीपूर्ण काम दिखता है तो अमिग्डाला अलार्म बजाता है- “ये काम कठिन है, तनाव देगा।” नतीजा, हम उससे बचने की कोशिश करते हैं।
प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स(Prefrontal Cortex): निर्णय लेने का केंद्र
यह हिस्सा हमारी लॉजिक, प्लानिंग और स्वनियंत्रण (सेल्फ कंट्रोल) के लिए उत्तरदायी है। लेकिन समस्या यह है कि यह अमिग्डाला जितना सशक्त नहीं होता। यानी डर और चिंता अगर ज़्यादा हावी हो जाएँ तो मस्तिष्क लॉजिक्स को साइडलाइन कर देता है और हम काम टाल देते हैं।
डोपामिन और 'तुरंत सुख' की चाह
क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जब आप किसी आवश्यक कार्य के स्थान पर सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म या गेम को चुनते हैं तो तुरंत अच्छा लगता है? इसका कारण है डोपामिन(dopamine)। आप इसे मस्तिष्क का रिवार्ड क्रिमिनल (reward chemical) कह सकते हैं। क्योंकि आसान और मज़ेदार काम करने पर मस्तिष्क को तुरंत डोपामिन मिलता है। लेकिन पढ़ाई, रिसर्च या प्रोजेक्ट का फल देर से मिलता है।
इस स्थिति में मस्तिष्क शीघ्र मिलने वाले सुख (short-term reward) को चुनता है और लंबे समय में प्राप्त होने वाली सफलता (long-term success) को टाल देता है। प्रोकास्टिनेशन का यही वास्तविक कारण है।
रिसर्च क्या कहती है?
सायकोलॉजिकल साइंस जर्नल(2014) में बताया गया कि प्रोक्रास्टिनेशन असल में स्व-नियमन विफलता (self-regulation failure) है। यानी लोग जानते हैं कि क्या करना है। लेकिन अपनी इच्छाओं और डर को कंट्रोल नहीं कर पाते।
जर्मनी स्थित कोलोन विश्वविद्यालय (University of Cologne(2019)प्रोकास्टिनेशन पर की गई स्टडी में पाया गया कि प्रोकास्टिनेशन करने वाले लोगों के amygdala का आकार बड़ा और ज्यादा एक्टिव होता है। यानी उनके दिमाग में डर और चिंता अधिक हावी रहती है।
जर्नल ऑफ बिहेवियरल मेडिसिन (Journal of Behavioral Medicine-2020) लंबे समय तक प्रोकास्टिनेशन केवल प्रोडक्टिविटी ही नहीं घटाता बल्कि यह स्ट्रेस, एंग्जाइटी और यहां तक कि हार्ट प्रॉब्लम्स तक बढ़ा सकता है।
फ्रंटियर्स इन सायकोलॉजी (Frontiers in Psychology (2021) रिसर्च के अनुसार, प्रोक्रास्टिनेशन करने वाले लोग अक्सर भावनात्मक नियंत्रण यानी “emotion regulation” में कमजोर पाए जाते हैं। यानी वे मुश्किल काम से बचकर तुरंत सुकून देने वाली गतिविधि चुन लेते हैं।
क्या यह सिर्फ़ आलस है?
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रोक्रास्टिनेशन केवल आसल है? तो इसका उत्तर है बिल्कुल नहीं। इस बारे में सायकोलॉजिस्ट डोना सिंह कहती हैं कि आलसी लोगों और प्रोक्रास्टिनेशन करने वाले लोगों में अंतर होता है। आलसी लोग काम करना ही नहीं चाहते, जबकि प्रोक्रास्टिनेशन करने वाले लोग काम करना चाहते हैं। लेकिन मस्तिष्क में गहरे बैठे किसी डर, चिंता और reward system के कारण उसे टालते रहते हैं।
प्रोक्रास्टिनेशन से बचने के उपाय
1. साल 1999 में जर्मन मनोवैज्ञानिक पीटर गोल्विट्ज़र (Peter Gollwitzer) ने Implementation Intention नाम की एक बहुत प्रभावशाली थ्योरी दी। यह एक goal-setting strategy है, जिसमें इंसान केवल "क्या करना है" (goal intention) तय नहीं करता। बल्कि "कैसे और कब करना है" (implementation intention) की भी पहले से ही साफ-साफ योजना बना लेता है।
इसे ऐसे समझ सकते हैं...
लक्ष्य का उद्देश्य (Goal Intention) : "मुझे रोज़ एक्सरसाइज़ करनी है।"
कार्यान्वयन का इरादा (Implementation Intention): "अगर सुबह 7 बजे होंगी और मैं बिस्तर से उठूँगा, तो मैं 30 मिनट योगा करूंगा।"
यानी इसमें If-Then Plan (अगर-तो की योजना) बनती है।
रिसर्च में क्या पाया गया?
गोल्विट्ज़र ने पाया कि लोग केवल लक्ष्य (goal) तय करके ज्यादा सफल नहीं होते क्योंकि अक्सर हम टालमटोल (procrastination) करते हैं या भूल जाते हैं।
लेकिन जब इंसान कार्यान्वयन का इरादा (implementation intention) बनाता है। यानी अगर यह स्थिति आएगी तो मैं यह काम करूंगा तो उसका दिमाग उस ट्रिगर (situation) को देखते ही खुद-ब-खुद एक्शन लेने लगता है।
इसे स्वचालितता प्रभाव (automaticity effect) कहा गया। यानी इसमें सोचने-समझने की जरूरत कम पड़ती है और काम तुरंत हो जाता है।
रिसर्च के नतीजे (1999 और बाद के अध्ययन)
जिन लोगों ने कार्यान्वयन का इरादा बनाए थे, वे अपने लक्ष्यों को पाने में कहीं अधिक सफल हुए।
यह स्ट्रेटेजी प्रोक्रास्टिनेशन, स्वनियंत्रण, स्वास्थ्य लक्ष्य (जैसे diet और exercise), अकेडमिनक परफॉर्मेंस, टाइम मैनेजमेंट – हर जगह कारगर निकली।
उदाहरण के साथ इसे ऐसे समझ सकते हैं...
अगर किसी ने लिखा "अगर मुझे शाम को भूख लगेगी तो मैं चिप्स की बजाय फल खाऊंगा" तो ऐसे लोग स्वस्थ खाने में अधिक सफल पाए गए।
जब छात्रों ने लिखा "अगर मुझे शाम को 6 बजे फ्री टाइम मिलेगा तो मैं पढ़ाई करूंगा"। ऐसे में उनकी पढ़ाई की नियमितता बढ़ी।
क्यों काम करता है यह तरीका?
सिचुएशन को ट्रिगर बना देता है – दिमाग को सोचना नहीं पड़ता, बस सिचुएशन आते ही एक्शन हो जाता है।
इच्छाशक्ति की बचत – बार-बार फैसला लेने की आवश्यकता नहीं रहती।
प्रोक्रास्टिनेशन कम होता है – क्योंकि तयशुदा नियम (if-then) एक्टिवेशन आसान बना देता है।
2. Pomodoro Technique (Francesco Cirillo, 1980s)
इसमें काम को छोटे-छोटे 25 मिनट के ब्लॉक्स में बांटा जाता है।
25 मिनट काम - फिर 5 मिनट ब्रेक।
4 बार दोहराने के बाद बड़ा ब्रेक लो।
मस्तिष्क को लगता है कि काम “छोटा और आसान” है। इसलिए शुरुआत करना आसान हो जाता है।
3. Temporal Motivation Theory (Piers Steel, 2007)
इस थ्योरी के अनुसार इंसान टास्क को इसलिए टालता है क्योंकि उसका “रिवॉर्ड” बहुत दूर है।
उपाय: खुद को इमीडिएट रिवॉर्ड दो।
उदाहरण: “अगर मैं आज 2 घंटे पढ़ाई करूंगा तो खुद को 20 मिनट का नेटफ्लिक्स दूंगा।”
4. Self-Compassion Approach (Fuschia Sirois, 2014)
यह रिसर्च बताती है कि प्रोक्रास्टिनेशन अधिकांश मामलों में गिल्ट और डर से जुड़ा होता है।
अगर आप खुद को डांटने की बजाय सेल्फ-कम्पैशन दिखाओ (जैसे – “ठीक है, गलती हो गई, अब आगे बेहतर करूंगा”) तो काम शुरू करना आसान होता है।
5. 5-Minute Rule (Behavioral Activation Strategy)
जब मस्तिष्क किसी काम से बहुत डरता है तो खुद से कहो: “बस 5 मिनट करूंगा।”
ज्यादातर बार इंसान काम शुरू कर देता है और फिर फ्लो में काम पूरा कर लेता है।
यह ट्रिक एक्शन बायस को एक्टिवेट करती है।
बोनस टिप – Environment Design
रिसर्च बताती है कि डिस्ट्रैक्शन-फ्री एनवायरनमेंट प्रोक्रास्टिनेशन को बहुत घटाता है।
जैसे – पढ़ाई के दौरान मोबाइल दूसरे कमरे में रखना, या सिर्फ काम के लिए एक जगह तय करना।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले एक्सपर्ट्स से सलाह करें।