प्रियंका चोपड़ा की इस फिल्म से पिंघला रोहित का दिल, बच गई प्रथम की जान

पिग्गी चोप्स की एक फिल्म देख इंस्पायर हुआ एक फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट कंसल्टेंट, उत्साह और उत्सुकता में बचा ली एक बच्चे की जान। जानें भावुक कर देने वाली घटना...;

Update: 2025-05-08 16:28 GMT
प्रथम अपने डोनर रोहित के संग। साथ में डॉक्टर ईशा कौल, डॉक्टर विक्रम मैथ्यूज और डीकेएमएस के अध्यक्ष पैट्रिक पॉल।

Thalassemia Survivor True Story: यंग-स्टनिंग और गॉर्जस प्रियंका चोपड़ा ने फिल्म 'द स्काई इज पिंक' में एक ऐसी बच्ची की मां का किरदार निभाया था, जो थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित थी। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें पेशेंट बच्ची को समय रहते डोनर नहीं मिल पाता और वो इस बीमारी के कारण दुनिया से चली जाती है। घटना दुखद है और उन पैरेंट्स के डेली लाइफ से जुड़े भावनात्मक संघर्ष को भी बताती है, जो किसी थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चे के माता-पिता हैं। इसी से मिलती-जुलती और सच्ची घटना है 12 साल के प्रथम की। इनकी कहानी की अच्छी बात ये है कि इन्हें समय रहते सचमुच एक सुपर हीरो मिला और इनकी लाइफ पूरी तरह सामान्य हो गई।

सुपर हीरो ने प्रथम को थैलेसीमिया से बचाया

आज के दौर में ज्यादातर बच्चे सुपर हीरो'ज की कहानियां फिल्मों और कार्टून में देखकर बड़े होते हैं। ये सभी बच्चे लंबे समय तक इस हसरत को पाले रहते हैं कि काश इनका सुपर हीरो असल जीवन में आकर इनसे मिल ले। प्रथम की भी ऐसी ही इच्छा थी, कहानी में ट्विस्ट ये है कि प्रथम की यह इच्छा उस समय पूरी हो गई, जब इनके सुपर हीरो रोहित असल लाइफ में इनसे मिले। दसअसल, रोहित एक फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट कंसल्टेंट हैं और प्रथम जन्म से ही थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित हैं। साल 2020 में कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन में रोहित ने प्रियंका चोपड़ा की फिल्म देखी 'द स्काई इज पिंक', इससे उन्हें थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे और उसके परिवार के दर्द के बारे में पता चला। फिल्म के अंत में दिखाए जाने वाले टाइटल्स में DKMS संस्था का नाम देखकर रोहित ने इसे गूगल किया और इसकी डिटेल्स जानीं।

क्या करती है DKMS ऑर्गेनाइजेशन?

थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए सही डोनर ढूंढने में मदद करती है DKMS संस्था। केवल थैलेसीमिया नहीं बल्कि ब्लड कैंसर और ब्लड से जुड़ी दूसरी बीमारियों के निदान में भी मरीजों की यथासंभव मदद और गाइडेंस करती है। इसके बारे में जानकर रोहित ने DKMS की वेबसाइट पर दिया फॉर्म भरा और खुद को डोनर के रूप में रजिस्टर किया और ऑनलाइन स्वैब किट मंगवाई। इसके 8 महीने बाद DKMS की मदद से इनकी पहचान प्रथम के लिए सुटेबल डोनर के रूप में की गई और आज प्रथम थैलेसीमिया मेजर के प्रकोप से ठीक हो पाया है। वह रोज स्कूल जाता है, अपना पसंदीदा गेम क्रिकेट खेलता है और अपने सुपर हीरो रोहित को ढेर सारा थैंक्यू भी बोलता है!

डोनर और रिसिपिऐंट की भावुक मुलाकात

DKMS संस्था ने एक मानवता भरा कदम और बढ़ाते हुए इस थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर रोहित और प्रथम की मुलाकात कराई। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश और भावुक हुए। रोहित ने कहा 'जब मेरा ब्लड लिया गया तो इतना आइडिया तो मुझे हो गया था कि पेशेंट कोई बच्चा है। लेकिन वो कौन है, कहां है, इस बारे बारे में मुझे कुछ पता नहीं था। लेकिन अब प्रथम से मिलने के बाद बेहद खुशी भी हो रही है और खुद पर गर्व भी हो रहा है।' जब फेडरल संवाददाता ने रोहित से पूछा गया कि आप डोनर के रूप में दूसरे लोगों से क्या कहना चाहते हैं तो रोहित ने कहा 'हम सभी अगर डोनर बनकर किसी की जान बचा सकें तो इसमें हमारा कुछ नहीं जाएगा। क्योंकि जो ब्लड हमारे शरीर से निकाला जाता है, वो तो दोबारा बन जाता है। लेकिन किसी की लाइफ बचाने की जो खुशी होती है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।'


क्या कहते हैं डॉक्टर्स?

हाल ही दिल्ली में एक इवेंट के दौरान राजस्थान के शहर बीकानेर के रहने वाले प्रथम और उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के रहने वाले रोहित की मुलाकात संस्था द्वारा कराई गई। इस दौरान संस्था की भारतीय इकाई के अध्यक्ष पैट्रिक पॉल, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली की हेमेटो-ऑन्कॉलजी, बीएमटी की डायरेक्टर डॉक्टर ईशा कौल और प्रथम का इलाज करने वाले क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर में सीएमसी हेमेटोलजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर विक्रम मैथ्यूज भी उपस्थित रहे। डॉक्टर्स का कहना है कि ये जरूरी नहीं है कि पेशेंट को डोनर फैमिली या रिश्तेदारी में ही मिले। कोई अनजान व्यक्ति भी एक परफेक्ट डोनर हो सकता है। प्रथम के केस में भी यही हुआ। यह केस इस बात का उदाहरण है कि बीमारी के बारे में समय रहते पता चल जाए और परफेक्ट मैच डोनर मिल जाए तो थैलेसीमिया जैसे जानलेवा रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।


डिसक्लेमर- प्रेस मीट के दौरान हुई बातचीत और इवेंट में दी गई जानकारी पर आधारित। 

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