ठंड में इन कारणों से बढ़ता है अस्थमा, दिल्ली-NCR वाले रखें खास ध्यान

ठंडी हवा का 5 मिनट तक लगातार संपर्क भी अस्थमा रोगियों में एयरवे ऑब्स्ट्रक्शन 25–38% तक बढ़ा देता है। यही कारण है कि सुबह-शाम की ठंड में स्थिति और बिगड़ जाती है

Update: 2025-12-06 12:22 GMT
ठंड के मौसम में क्यों बढ़ जाता है अस्थमा का खतरा, जानें बचाव
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सर्दी में अस्थमा से पीड़ित लोगों की समस्या दोगुनी हो जाती है। साथ ही जिन लोगों के फेफड़े अर्थात लंग्स बहुत संवेदनशील हैं, उनके लिए भी ठंडी हवाएं बहुत अधिक परेशान करनेवाली होती हैं। असल में सर्द मौसम में हवा में मौजूद प्रदूषक कण जमीन के पास जमने लगते हैं और हवा घनी हो जाती है, जिससे श्वसन यानी रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए सांस लेना मुश्किल बन जाता है।

Delhi-NCR में यह समस्या और गंभीर हो जाती है क्योंकि यहां सर्दियों में स्मॉग (धुआं + कोहरा) एक जहरीली चादर की तरह शहर को ढक लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि ठंड के महीनों में अस्थमा के 70% से अधिक अटैक सीधे प्रदूषण और तापमान गिरने से जुड़े होते हैं...


दिल्ली-एनसीआर में क्यों बढ़ जाती है समस्या?

सर्दी का मौसम आते ही दिल्ली-एनसीआर में खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न और रात में सांस लेने में समस्या होने की दिक्कत बढ़ जाती है। इससे अस्थमा के मरीज तो परेशानी में आते ही हैं। लेकिन जो लोग पहले पूरी तरह ठीक थे, उन्हें भी कई बार सांस और फेफड़ों से जुड़ी दिक्कतें महसूस होने लगती हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सिर्फ ठंड इसकी वजह है? तो इसका उत्तर है नहीं।


ठंड में अस्थमा बढ़ने का कारण

सर्दी में हवा ठंडी और सूखी हो जाती है। जब यह सूखी हवा सांस के साथ फेफड़ों तक पहुंचती है तो वायुमार्ग सिकुड़ने लगते हैं। इस कारण अस्थमा के मरीजों में ब्रॉन्कोस्पाज्म यानी हवा की नलियों का संकुचन बढ़ जाता है। इस विषय में American Thoracic Society के शोध में बताया गया कि ठंडी हवा का 5 मिनट तक लगातार संपर्क भी अस्थमा रोगियों में एयरवे ऑब्स्ट्रक्शन 25–38% तक बढ़ा देता है। यही कारण है कि सुबह-शाम की ठंड में स्थिति और बिगड़ जाती है।



दिल्ली-एनसीआर में अस्थमा

ठंडी हवा में जब दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण जुड़ जाता है, तब असली खतरा बनता है। ठंड के मौसम में हवा जमीन के पास कैद हो जाती है और ऊपर नहीं उठती। धूल, धुआं, वाहनों के धुएं में मौजूद PM2.5 और PM10 कण हवा में ठहर जाते हैं और लगातार सांस के साथ शरीर में जाते रहते हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी के 2023 डेटा के अनुसार, दिल्ली की सर्दी में PM2.5 का स्तर WHO की सुरक्षित सीमा से 8–12 गुना अधिक पाया गया। ये महीन कण फेफड़ों की नलियों में सूजन बढ़ाते हैं और अस्थमा अटैक की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।




सर्दी में वायरस भी है बड़ा खतरा

इसके साथ ही सर्दी में अस्थमा बढ़ने की एक और छिपी समस्या है वायरस। सर्दियों में फ्लू और वायरल इंफेक्शन अधिक होते हैं और अस्थमा के मरीजों में 85% अटैक श्वसन वायरस से ट्रिगर होते हैं। इस विषय में Journal of Allergy and Clinical Immunology-2022 में यह डेटा सामने आया। इसलिए खांसी-जुकाम, हल्का बुखार या गले में संक्रमण अस्थमा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।

दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लोगों के लिए ये स्थिति इसलिए और कठिन हो जाती है क्योंकि प्रदूषण सिर्फ बाहर नहीं, घर के भीतर भी होता है। कमरे बंद रखना, हीटर चलाना, धूल और घुटन हवा की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। आपको बता दें कि AIIMS की वर्ष 2021 स्टडी में पाया गया कि सर्दियों में घर के भीतर PM2.5 लेवल 42% तक बढ़ जाता है। इसलिए घर बंद रखना सुरक्षित नहीं माना जाता।


सर्दी में वातावरण को कैसे अनुकूल बनाएं?

- सर्दी में वातावरण को सेहत के अनुकूल बनाना इतना कठिन नहीं है, बस इसे समझने की आवश्यकता है। सुबह सवेरे या देर रात की ठंड में वॉक और व्यायाम बंद करें। क्योंकि इन दोनों समय प्रदूषण और ठंड सबसे ज्यादा होते हैं।

- एंटी-पॉल्यूशन मास्क (N95/KN95) सिर्फ बाहर नहीं बल्कि धूल की सफाई या कुकिंग करते समय, धुआं होने पर भी लगाएं।

- घर और कमरों को दिन में कम से कम 30 मिनट वेंटिलेट करें ताकि घुटी हवा बाहर निकल सके।

- रात को सोने से पहले भाप लेने से नींद में सांस से जुड़ी समस्या कम होती है और नींद अच्छी आती है।



अस्थमा बढ़ने से रोकने के लिए क्या करें?

दवाइयां और इन्हेलर इस मौसम में ना छोड़ें। अस्थमा एक “सीज़नल” बीमारी नहीं है, लेकिन इसकी ट्रिगरिंग सीज़नल हो सकती है। इस विषय में Global Initiative for Asthma (GINA) दिशानिर्देश स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सर्दियों में इन्हेलर रोक देना अस्थमा अटैक की संभावना 4 गुना बढ़ा देता है।

दिल्ली-एनसीआर की ठंड और प्रदूषण मिलकर फेफड़ों पर बहुत बड़ा दबाव डालते हैं। समय पर उपचार, मास्क, साफ हवा और नमी बनाए रखना, ये मिलकर सांस की सुरक्षा का कवच बनाते हैं।



सर्दी में अस्थमा से बचाव के लिए क्या करें?

- अगर अस्थमा वाला व्यक्ति सुबह-सुबह तेज ठंडी हवा में बाहर निकले तो नाक और श्वसन नलिकाएं अचानक सिकुड़ जाती हैं। इससे सांस लेने में दिक्कत बढ़ जाती है और यही ब्रॉन्कोस्पाज़्म अस्थमा अटैक की ओर धकेल देता है।

- फेफड़ों को ठंडी हवा के सीधे संपर्क से बचाना आवश्यक है। मफलर से नाक और मुंह ढकें, क्योंकि इससे हवा शरीर में प्रवेश करते समय गर्म और फिल्टर होती है।

- अमेरिकी जर्नल Chest में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि ठंडी हवा फेफड़ों की आंतरिक लाइनिंग में मौजूद म्यूकस को गाढ़ा करती है, जिससे कफ जमने लगता है और ऑक्सीजन का आदान-प्रदान रुक जाता है। यूं समझिए कि सर्दियों में फेफड़ों की पाइपलाइन जाम होने लगती है और Delhi-NCR की जहरीली हवा इस जाम को और भी बढ़ा देती है।



घर में रहने वालों को क्यों सताता है अस्थमा?

सर्दियों में लोग घरों को बंद रखकर हीटर चलाते हैं, जिससे वेंटिलेशन कम हो जाता है और घर के अंदर मौजूद डस्ट-माइट्स, फफूंदी और पेट डैंडर की मात्रा बढ़ जाती है। हैरानी की बात यह है कि कई मरीजों को बाहरी हवा से ज्यादा नुकसान घर की हवा पहुंचा देती है। इस विषय में National Institute of Environmental Health Sciences के अनुसार, जो लोग सर्दियों में ज्यादा समय बंद कमरे में बिताते हैं, उनमें अस्थमा का खतरा 40% तक बढ़ जाता है। यह तभी समझ में आता है जब सुबह उठते ही सीने में कसाव, भारीपन, खांसी और घरघराहट बढ़ जाए।



तीन गुना तक बढ़ जाते हैं अस्थमा के रोगी?

दिल्ली-एनसीआर में समस्या सिर्फ मौसम की नहीं है, पर्यावरण की भी है। ठंड पड़ते ही हवा में PM2.5 और PM10 कण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाते हैं और यह कण सीधे फेफड़ों के सबसे गहरे हिस्से तक घुसकर सूजन पैदा करते हैं। भारत सरकार के SAFAR डेटा के अनुसार, इसी समय अस्थमा मरीजों का अस्पताल में भर्ती होना 3 गुना बढ़ जाता है। यही वजह है कि शहर में रहने वाले संवेदनशील लोगों खासतौर पर बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सर्दियों में अस्थमा के डर के कारण सहमे रहते हैं।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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