भारत के लिए खतरे की घंटी? पाक जनरल को ट्रंप का ‘रेड कारपेट’ स्वागत

इस व्हाइट हाउस फैसले से साफ हो गया है कि पाकिस्तान में फौज अब इतना मजबूत हो चुकी है कि उसे लोकतंत्र के ऊपर अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल रहा है। इसे भारत समेत सभी पड़ोसी देशों को बहुत गंभीरता से लेना होगा।;

Update: 2025-06-21 16:53 GMT

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख और असल में देश के गैर-निर्वाचित नियंत्रक जनरल असिम मुनीर को व्हाइट हाउस में विशेष रूप से आमंत्रित करना एक गंभीर राजनीतिक इशारा माना जा रहा है। इस कदम ने न सिर्फ पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था को ठेस पहुंचाई, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति में भी हलचल ला दी है।

लोकतंत्र को झटका

ट्रंप द्वारा मुनीर को राजकीय सम्मान देकर बुलाया गया। यही जनरल जिन्होंने पिछली आम चुनावों में कथित रूप से बड़े पैमाने पर हेरफेर किया और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जेल में डाले रखा। यह कदम पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ताक़तों के लिए एक तीव्र आघात बताया जा रहा है, मानो अमेरिका ने सीधे तौर पर फौज के नियंत्रण को मान्यता दे दी हो।

ड्रामे का हिस्सा?

संवाद साधकों का दावा है कि व्हाइट हाउस में ट्रंप-मुनीर बैठक की वजह ईरान-इजरायल तनाव के बीच पाकिस्तान में हवाई ठिकानों की अहमियत थी। हालांकि, यह बहस है कि राजनीतिक फैसलों में फौज की क्या अधिक भूमिका है और क्या व्हाइट हाउस भी ऐसा मानने लगा है।

पाकिस्तान में भी नाराजगी

यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी पाकिस्तानी फौजी प्रमुख की मुलाक़ात बिना किसी चुने हुए शासक के साथ की हो। इससे देश के अंदर लोकतांत्रिक और नागरिक समाज में भारी नाराजगी उठी है। पूर्व सैन्य तानाशाह अयूब खान, ज़िया उल हक़ और परवेज़ मुशर्रफ जैसे नेताओं ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाक़ात की थी। लेकिन सभी यह पता होने के बावजूद वे पहले सत्ता में चुने गए थे।

मोदी के लिए झटका

भारत के लिए यह अचानक कदम चौंकाने वाला संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह उम्मीद थी कि ट्रंप उनके प्रति स्थिर रहेंगे। लेकिन मुनीर को सम्मानित करके ट्रंप ने दिशा संकेत बदल दिए। भारतीय पक्ष में अब सावधानी की लहर दौड़ गई है कि अगर अमेरिका खुलकर फौज का पक्ष ले सकती है तो देश-विरोधी एजेंडों का क्या होगा?

नया राजनीतिक समीकरण

इस घटना के तमाम पहलुओं से पाकिस्तान में फौज को अब अंतर्राष्ट्रीय दर्जा मिला। लोकतांत्रिक संस्थाएं और नागरिक सरकारें कमजोरी की लकीरों पर चलने लगी। वेंडनुअल सियासत में फौज का प्रभाव इतना बढ़ गया कि व्हाइट हाउस ने सीधा फ्लैश अनुमोदन कर दिया।

आगे क्या होगा?

क्या ट्रंप-कहानी सिर्फ तस्वीर खिंचने वाला कार्ड थी, ताकि भारत का संतुलन न बिगड़े? या इसमें एक रणनीतिक समझौता छिपा है; मसलन भारत की नजर में कहीं पाकिस्तान रणनीतिक साझेदार बनकर उभर तो नहीं रहा? क्या मोदी सरकार इस स्थिति में कूटनीति, सैन्य और आर्थिक स्तर पर जवाब दे पाएगी— यही अगली बड़ी चुनौती है।

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।)

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