25 करोड़ अब गरीब नहीं फिर भी इतनों को अनाज, भरमाता है मोदी सरकार का दावा
एक तरफ नरेंद्र मोदी सरकार का दावा है कि 25 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर निकल चुके हैं. लेकिन 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज भी दिया जा रहा है.
Poverty in India: प्रधानमंत्री मोदी और तमाम मंत्री लगातार गरीबी हटाने के दावे करते हैं, इन दावों के अनुसार दिसम्बर 2023 तक 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ चुके थे, इससे सम्बंधित “धन्यवाद मोदी जी” वाले होर्डिंग्स डीएवीपी ने तमाम जगह लगाए थे| जनवरी 2024 से अचानक 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए और इससे सम्बंधित “मोदी की गारंटी” वाले होर्डिंग्स लटका दिए गए| प्रधानमंत्री मोदी भी लगातार 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की बात करते रहे हैं| पर, इस नए संसद सत्र में उन्होंने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाने के साथ ही “आजाद भारत में यह पहली बार हुआ है” भी जोड़ गए| दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश में गरीबी कम करने के दावों के बाद भी मुफ्त अनाज के लाभार्थियों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होता है|
2021 से 81 करोड़ को मुफ्त अनाज
वर्ष 2021 से 81 करोड़ से भी अधिक आबादी को हरेक महीने मुफ्त अनाज दिया जा रहा है और वर्ष 2028 तक यह सिलसिला चलता रहेगा| इन आंकड़ों से तो यही स्पष्ट होता है कि गरीबों की संख्या कम करने के दावों से सत्ता स्वयं आश्वस्त नहीं है| प्रधानमंत्री ने जनवरी 2024 में लोकसभा में वक्तव्य दिया था कि 25 करोड़ लोग पिछले 9 वर्षों में गरीबी रेखा से बाहर आकर मध्यम वर्ग में पहुँच गए हैं, पर उन्हें पहले जैसा ही सरकार द्वारा मुफ्त अनाज मिलता रहेगा| इससे इतना तो स्पष्ट है कि माध्यम वर्ग भी गरीब है और उसे भी हरेक महीने 5 किलो मुफ्त अनाज देकर जिन्दा रखने की जरूरत है|
हरेक सरकारी या बीजेपी द्वारा लगाए गए पोस्टरों में मुफ्त अनाज के 80 करोड़ लाभार्थियों, जिसमें 25 करोड़ लोगों के मध्यम वर्गीय होने का दावा है, को गरीब बताया जा रहा है| एक नए अध्ययन के अनुसार गरीबी में गुजारा करने से अधिक कठिन है लगातार गरीबी का एहसास करना, गरीबी के कलंक को झेलना, यानि अपने मष्तिष्क में बैठा लेना कि आप इंसान नहीं बल्कि गरीब हैं| इस अध्ययन को यूनाइटेड किंगडम की एक सामाजिक संस्था, जोसफ राउनट्री फाउंडेशन ने लंकास्टर यूनिवर्सिटी के साथ सम्मिलित तौर पर किया है और इसे जोसफ राउनट्री फाउंडेशन ने प्रकाशित किया है| इसके अनुसार गरीबी का धब्बा एक जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्या है| यह धब्बा या कलंक गरीबी से नहीं उपजता जैसा कि हमें बताया जाता है बल्कि समाज और राजनीति के कारण पनपता है|
गरीबी का ठीकरा गरीबों पर
जोसफ राउनट्री फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार गरीबी के कलंक का कारण गरीबी नहीं बल्कि इसकी उत्पत्ति सामाजिक और राजनैतिक है| इस कलंक को थोपने में सत्ता, समाज का अमीर तबका और मीडिया – सभी एक-दूसरे की सहायता करते हैं| इन सबसे गरीबी के बारे में लोगों की सोच बदल जाती है – सत्ता की गलत नीतियों के कारण पनपी गरीबी का सारा दोष गरीबों पर ही थोप दिया जाता है – यह धारणा केवल गरीबों में ही नहीं बल्कि पूरे समाज में भी पनपने लगती है| जब गरीबी के लिए केवल गरीबों को ही दोषी ठहराया जाता है तब समाज में उनका प्रतिनिधित्व प्रभावित होता है और गरीबों की गरीबी के बारे में सोच बदलने लगती है| गरीबी के लिए गरीबों को जिम्मेदार बताने वाली सोच सत्ता तंत्र और उनके कल्याण की योजनाओं का हिस्सा बन जाती है, इससे गरीबी और भी अधिक बढ़ती है| गरीबी कम करने के नाम पर सत्ता और पूंजीपति गरीबों के हिस्से के संसाधनों पर अपना अधिकार जमा लेते हैं| गरीबी की यह सोच रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा हो जाती है, जिसके गंभीर मानसिक परिणाम होते हैं| अंत में गरीबी से अधिक नुकसान गरीबों का गरीबी के कलंक के कारण होता है|
हैरान करते हैं ये आंकड़े
हमारे देश का भविष्य भले ही खरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला हो पर कितना कुपोषित होगा इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है| सरकार 80 करोड़ आबादी को हरेक महीने 5 किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल दे रही है| इस हिसाब से हरेक व्यक्ति के हिस्से एक दिन में लगभग 170 ग्राम गेहूं या चावल और लगभग 35 ग्राम दाल आयेगी| हरेक ग्राम गेहूं के आंटे का कैलोरी मान 3.6 कैलोरी, एक ग्राम चावल में 1.3 कैलोरी और एक ग्राम दाल में लगभग 1 कैलोरी उर्जा होती है| इसका मतलब है कि हरेक दिन रोटी और दाल खाने वाले को औसतन 650 कैलोरी और चावल और दाल खाने वाले को महज 255 कैलोरी उर्जा मिलेगी| वैज्ञानिकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति को पर्याप्त पोषण के लिए हरेक दिन कम से कम 2000 कैलोरी की आवश्यकता होती है| मोदी सरकार ने नवम्बर 2023 में ऐलान किया है कि वर्ष 2028 तक इन 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलता रहेगा| जाहिर है, सरकार स्वीकार करती है कि इन 80 करोड़ लोगों में से एक भी आदमी अगले 5 वर्षों के दौरान अत्यधिक गरीबी से बाहर नहीं आएगा, और यह आबादी कम से कम अगले 5 वर्षों तक कुपोषित ही रहेगी| इसके बावजूद मोदी सरकार के लिए भारत विश्वगुरु, विकसित और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन रहा है|
मोदी जी द्वारा 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर करने का आधार जनवरी 2024 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट है| इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में देश की 55.34 प्रतिशत आबादी गरीब थी, पर वर्ष 2013-14 तक यह संख्या 29.17 प्रतिशत ही रह गयी| इस पूरे दौर में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार रही और इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 से 2014 के बीच 26.17 प्रतिशत आबादी गरीबी से बाहर आ गयी| इसके बाद 2022-23 में गरीबों की आबादी 11.28 प्रतिशत ही रह गयी| जाहिर है वर्ष 2014 से 2023 के बीच महज 17.89 प्रतिशत आबादी, यानि 24.82 करोड़ आबादी, ही गरीबी रेखा को लांघ पाई| यह पूरा दौर नरेंद्र मोदी का रहा, जिसमें आजाद भारत के किसी भी दौर से अधिक तेजी से गरीबी कम करने के लगातार दावे किये जाते रहे| पर, नीति आयोग की ही रिपोर्ट इस दावे को झूठा करार देती है|
मोदी सरकार में तथ्यों और वास्तविक आंकड़ों को जान पाना कठिन है क्योंकि कोई भी विभाग या मंत्रालय विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं करता| नीति आयोग जैसी संस्थाएं कुछ रिपोर्ट प्रकाशित भी करती हैं, तो सत्ता इसके आकड़ों को अपने तरीके से प्रस्तुत करती है| मोदी सरकार में जनता से जुडी आंकड़ें प्रधानमंत्री और दूसरे बड़बोले मंत्री समय और परिस्थिति के अनुसार गढ़ते हैं, इसीलिए हरेक भाषण में एक ही विषय पर आंकड़े अलग-अलग रहते हैं| सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और तथ्यों को परखने की जिम्मेदारी मीडिया की होती है, पर हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया ही सत्ता भक्ति में लीन होकर झूठ और जुमलों के प्रचार की फैक्ट्री बन चुका है|
(महेंद्र पाण्डेय एक स्वतंत्र पत्रकार, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)