तमिलनाडु में राज्यपाल की अगुवाई में कुलपतियों का सम्मेलन, फिर उठे सवाल

अगर तमिलनाडु सरकार राज्यपाल को पूरी तरह विश्वविद्यालयों के मामलों से दूर रखना चाहती है तो बाकी विश्वविद्यालयों के कानूनों में भी संशोधन जरूरी है और यह काम वर्तमान विधानसभा सत्र में ही कर लेना समझदारी होगी।;

Update: 2025-04-24 18:00 GMT
RN Ravi

तमिलनाडु के राज्यपाल कार्यालय ने घोषणा की है कि 25-26 अप्रैल को राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। इस सम्मेलन की अध्यक्षता राज्यपाल आरएन रवि करेंगे, जो अभी भी खुद को विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (Chancellor) मान रहे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह कह चुका है कि राज्यपाल का यह कदम कानून के बाहर है। लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल रवि अपने रुख पर कायम हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद से हटाने के लिए 10 विधेयक (Bills) पास किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इन सभी 10 विधेयकों को वैध करार दिया। इन विधेयकों में "कुलाधिपति" शब्द को बदलकर "सरकार" कर दिया गया था। यानी अब इन 10 विश्वविद्यालयों में राज्यपाल नहीं, बल्कि राज्य सरकार ही कुलाधिपति है। हालांकि, बाकी विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में अब तक संशोधन नहीं हुआ है। इसलिए वहां राज्यपाल अब भी कुलाधिपति माने जा रहे हैं।

राज्यपाल का सम्मेलन बुलाना नैतिक रूप से सही?

यह सवाल उठ रहा है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल के ऐसे कदमों की आलोचना की है तो क्या अब भी उन्हें कुलपतियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करनी चाहिए? सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह इस स्थिति को कानूनी रूप से कैसे सुलझाएगी।

क्या संविधान राज्यपाल को यह अधिकार देता है?

संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्यपाल को विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाता हो। यह जिम्मेदारी उन्हें राज्य सरकार द्वारा बनाए गए विश्वविद्यालय अधिनियमों के माध्यम से दी जाती है।

पुंछी आयोग की सिफारिशें

पुंछी आयोग (2007) ने सिफारिश की थी कि राज्यपालों को विश्वविद्यालयों में कोई प्रशासनिक भूमिका नहीं दी जानी चाहिए। राज्यपालों को विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाकर उन्हें अतिरिक्त शक्तियां देना आज के समय में प्रासंगिक नहीं है. आयोग ने यह भी कहा कि राज्यपालों को केवल संविधान के तहत निर्धारित भूमिकाएं ही निभानी चाहिए, उन्हें किसी भी अन्य कानून के तहत जिम्मेदारी देना टालना चाहिए।

केंद्र सरकार का रवैया

यह रिपोर्ट 2010 में केंद्र सरकार को सौंपी गई थी। लेकिन इसे आज तक पूरी तरह लागू नहीं किया गया। 2022 में संसद में पूछे गए सवाल पर बताया गया कि यह रिपोर्ट सभी राज्यों और मंत्रालयों को भेजी गई थी। लेकिन किसी ठोस कार्रवाई की जानकारी नहीं दी गई।

DMK की कोशिश

पुंछी आयोग की 273 सिफारिशों में कई राज्य सरकारों को मजबूत करने वाली थीं। लेकिन ज्यादातर विपक्षी दलों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सिर्फ DMK सरकार ने राज्यपाल को विश्वविद्यालयों से हटाने के लिए कानून में संशोधन किया। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उम्मीद है कि अन्य राज्य सरकारें भी यही रास्ता अपनाएंगी।

Tags:    

Similar News