मजदूर पिता और सब्जी बेचने वाली मां के बेटे ने दो बार पास की UPSC की परीक्षा, बने IPS अधिकारी
महाराष्ट्र के सोलापुर के रहने वाले श्रवण कांबले ने आर्थिक संघर्षों के बावजूद आईपीएस अधिकारी बनने का सपना साकार किया.;
सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत जरूरी होती है और इसके लिए कोई बहाना या शिकायत नहीं चलती. चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों. सफलता पाने के लिए निरंतर प्रयास करना जरुरी है कभी हार नहीं माननी चाहिए. श्रवण कांबले की कहानी इसी सच्चाई को दर्शाती है, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपने माता-पिता का नाम रोशन किया.
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के रहने वाले श्रवण कांबले राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. उनके माता-पिता मजदूरी और सब्जी बेचने का काम करते थे, जिससे परिवार का गुजारा चलता था. कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा में कोई कमी नहीं आने दी. 30 सितंबर 1993 को सोलापुर जिले के बारसी तहसील के ताडवले गांव में जन्मे श्रवण कांबले ने दसवीं तक गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की थी. 11वीं और 12वीं की पढ़ाई के लिए उन्हें 12 किलोमीटर दूर एक किसी और गांव में जाना पड़ता था. बाद में उन्होंने सांगली के वॉलचंद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बीटेक किया और फिर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया.
नौकरी ठुकरा कर करी UPSC की तैयारी
IISc से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद श्रवण कांबले को 20 लाख रुपये सालाना पैकेज वाली नौकरी का ऑफर मिला, लेकिन देश की सेवा करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने इसे ठुकरा दिया. उनके पिता गोपीनाथ भी चाहते थे कि उनका बेटा सिविल सेवा में जाए. इसके बाद श्रवण दिल्ली चले गए और यूपीएससी की तैयारी शुरू की.
स्कॉलरशि से मिली मदद
यूपीएससी की तैयारी के दौरान उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. महाराष्ट्र सरकार की स्कॉलरशिप योजना के तहत उन्हें आठ महीने तक हर महीने 12,000 रुपये मिले, जिससे उनकी पढ़ाई जारी रखने में मदद मिली.
UPSC परीक्षा में शानदार सफलता
श्रवण कांबले की मेहनत रंग लाई, जब उन्होंने साल 2019 में UPSC CAPF परीक्षा में ऑल इंडिया 8वीं रैंक हासिल की. इसके बाद 2020 में UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास की और ऑल इंडिया 542वीं रैंक के साथ आईपीएस बने. साल 2021 में उन्होंने 127वीं रैंक प्राप्त की, जिससे उन्हें भारतीय विदेश सेवा (IFS) मिल सकती थी, लेकिन उन्होंने अपने पहले के निर्णय पर कायम रहते हुए आईपीएस बने रहने का फैसला किया.