यूपी में निवेश का महत्वाकांक्षी सपना दलाली के अड्डे में कैसे बदला?
यूपी सरकार निवेश को प्रोत्साहित कर रही है और उसी के बड़े अफसर उस पर पलीता लगा रहे हैं। इन्वेस्ट यूपी प्रोग्राम के CEO अभिषेक प्रकाश के निलंबन की इनसाइड स्टोरी;
Invest UP, यानी यूपी में निवेश करिए। यूपी में पैसा लगाइए। इस प्रोग्राम के नाम से ही झलक रहा है कि ये यूपी की योगी सरकार का कितना बड़ा ड्रीम है। जाहिर है, इसमें उद्योगों और निवेशकों को सहूलियतें देने का ध्यान रखा गया है।
लेकिन जो सरकार का इतना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। जिसमें उत्तर प्रदेश की आर्थिक तस्वीर बदलने का सपना छिपा हुआ है वहां मुख्यमंत्री की नाक के नीचे कब दलाली का अड्डा बन गया, पता ही नहीं चला। हैरानी की बात है कि जहां निवेशकों को सहूलियतें दी जानी थीं, वहां निवेश के बदले भारी-भरकम घूस की डिमांड की जा रही है।
और ये बात कोई हम नहीं कह रहे हैं। इसकी शिकायत बाकायदा एक निवेशक ने यूपी सरकार से की, तब जाकर पता चला कि जिस आईएएस अफसर को इनवेस्ट यूपी प्रोग्राम का सर्वेसर्वा बनाया गया था, दलाली के छींटे तो उसके दामन तक हैं।
इनवेस्ट यूपी के CEO कैसे नपे?
इस मामले में दो अहम घटनाक्रम को समझना जरूरी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक उद्यमी की शिकायत पर इनवेस्ट यूपी के CEO और IAS अधिकारी अभिषेक प्रकाश को सस्पेंड कर दिया।
उन पर यूपी में प्रस्तावित सौर ऊर्जा परियोजना की मूल्यांकन प्रक्रिया में अनियमितताओं के आरोप हैं। पुलिस ने इस सिलसिले में FIR भी दर्ज की है। 2006 बैच के IAS अफसर अभिषेक प्रकाश लखनऊ, लखीमपुर खीरी, बरेली और हमीरपुर खीरी के डीएम भी रह चुके हैं।
CEO और दलाली का नेक्सस
दूसरा घटनाक्रम ये हुआ कि बिचौलिये निकांत जैन को पुलिस ने धर दबोचा है। उसकी गिरफ्तारी भी उसी मामले में हुई है, जिस मामले में इनवेस्ट यूपी के CEO अभिषेक प्रकाश को मुख्यमंत्री ने सस्पेंड किया है।
अब ये समझते हैं कि आखिर इनवेस्ट यूपी के CEO अभिषेक प्रकाश और गिरफ्तार दलाल निकांत जैन का आपसी कनेक्शन क्या है? इन दोनों इनवेस्ट यूपी में गंभीर भ्रष्टाचार के मामले मे कैसे लपेटे में आए?
एक चिट्ठी जिसने मचाई खलबली
इसके पीछे है एक चिट्ठी जोकि एक प्राइवेट कंपनी से जुड़े किसी विश्वजीत दत्ता नाम के व्यक्ति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखी। उस कंपनी का नाम है S.A.E.L SOLAR P6 प्राइवेट लिमिटेड कंपनी। विश्वजीत दत्ता ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र में लिखा कि उनकी कंपनी उत्तर प्रदेश में सौर ऊर्जा के उपकरणों से जुड़ी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाना चाहती है।
उन्होंने इसके लिए इनवेस्ट यूपी और ऑनलाइन दोनों तरीकों से आवेदन किया। लेकिन मूल्यांकन समिति के सामने आवेदन पेश किए जाने से पहले इन्वेस्ट यूपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें निकांत जैन नाम के एक आदमी का नंबर दिया और कहा कि अगर जैन उनके प्रोजेक्ट की सिफारिश करते हैं, तो मूल्यांकन पैनल और यूपी कैबिनेट से इसे तुरंत मंजूरी मिल जाएगी।
कमीशन दो, मंजूरी लो
शिकायत में लिखा गया है कि इसके बाद उन्होंने निकांत जैन से संपर्क किया। तो जैन ने उनसे प्रोजेक्ट की लागत का 5% कमीशन के रूप में मांगा और एडवांस कैश की डिमांड रखी लेकिन दत्ता ने उसकी मांग को खारिज कर दिया और मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया। जांच में ये आरोप सही पाए गए जिसके बाद ही यह ताबड़तोड़ एक्शन हुआ है।
प्रोजेक्ट का क्या हुआ?
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक हालांकि सोलर उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े इस प्रोजेक्ट को मूल्यांकन समिति से मंजूरी मिल गई थी, लेकिन इसे अंतिम रूप से मंजूरी नहीं मिली। कंपनी से जुड़े विश्वजीत दत्ता ने मुख्यमंत्री को लिखी अपनी शिकायत में ये भी कहा कि जैन ने फिर से उनसे कहा कि केवल वही इस परियोजना को मंजूरी दिलाने में मदद कर सकते हैं वरना काम नहीं होगा।
दलाली का अड्डा
तो ये है उत्तर प्रदेश में निवेश के सपने को अमली जामा पहनाने वालों के हाल। जिसे अफसरों ने दलाली का अड्डा बना दिया।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य में निवेश को बढ़ावा देने और उद्योगों के लिए अनुमति की राह आसान करने के लिए 5 साल पहले इ्न्वेस्ट यूपी का गठन किया था। इसमें अनुमति की प्रक्रिया को इसलिए ऑनलाइन किया गया था ताकि पारदर्शिता बनी रहे और मानवीय हस्तक्षेप कम से कम हो, लेकिन इस मामले में ऑनलाइन आवेदन आते ही इनवेस्ट यूपी जैसे हाईप्रोफाइल प्रोग्राम में दलाल सक्रिय हो गए और आज नतीजा सामने है।
इस मामले में तुरंत एक्शन लेने पर योगी सरकार की वाहवाही हो रही है, लेकिन सवाल तो ये भी है कि मुख्यमंत्री की नाक के नीचे से सब चल रहा था। अगर वो उद्यमी मुख्यमंत्री तक शिकायत नहीं पहुंचाता तो इनवेस्ट यूपी के भीतर पनपे दलाली के इस अड्डे के बारे में तो भनक ही नहीं लगती।