वोटर लिस्ट कटौती पर विपक्ष का वार, बिहार में चुनावी संग्राम तेज
बिहार में SIR के तहत 65 लाख वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने EC से जवाब मांगा, तेजस्वी के नाम कटने पर BJP-तेजस्वी में तीखा टकराव।;
दो अहम मुद्दे इस समय बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं। पहला — 65 लाख लोगों का नाम चुनाव आयोग (EC) द्वारा राज्य की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाया जाना, और दूसरा मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार तेजस्वी यादव की संभावित स्थिति। दोनों मामलों में संवैधानिक संस्थाएं अहम भूमिका निभा रही हैं, जो राजनीतिक दलों और नेताओं के भविष्य का फैसला कर सकती हैं। इस बार चुनावी माहौल में महंगाई और बेरोजगारी जैसे पारंपरिक मुद्दे पीछे छूटते दिख रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, EC पर दबाव
6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने EC से यह स्पष्ट करने को कहा कि आखिर 65 लाख वोटरों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से क्यों हटाए गए। 1 अगस्त को यह ड्राफ्ट लिस्ट जारी हुई थी।9 अगस्त को EC ने कोर्ट में कहा कि बिहार में किसी भी पात्र वोटर का नाम बिना नोटिस, सुनवाई और लिखित आदेश के नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने दावा किया कि SIR (Special Intensive Revision) के दौरान गलत तरीके से नाम हटाने से रोकने के लिए सख्त निर्देश जारी किए गए हैं।
इस बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर ‘वोट चोरी’ के आरोप दोहराए और EC पर हमला बोला कि वह उनसे शपथपत्र की मांग कर रहा है। वहीं, EC ने तेजस्वी यादव से सबूत मांगा कि उनका नाम वास्तव में वोटर लिस्ट से हटा है। तेजस्वी ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उनका नाम हटा दिया गया है, लेकिन कुछ घंटे बाद EC ने इसे खारिज करते हुए कहा कि उनका नाम ड्राफ्ट लिस्ट में मौजूद है।
नाम हटाने की वजहें अस्पष्ट
NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की याचिका में कहा गया कि नाम हटाने की वजहें मृत्यु, स्थायी रूप से राज्य से बाहर जाना, नामों की डुप्लिकेशन और वोटर का न मिलना जैसी थीं, लेकिन ड्राफ्ट लिस्ट में प्रत्येक नाम हटाने का कारण स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया।चौंकाने वाली बात यह है कि बिहार में 2024 में ही स्पेशल समरी रिविजन किया गया था, जिसका फाइनल डेटा जनवरी 2025 में अपलोड हुआ था।
BJP-तेजस्वी टकराव
BJP ने तेजस्वी पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि उनके पास दो वोटर आईडी कार्ड हैं। पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने पूछा "क्या आपने शपथ के तहत झूठ बोला? क्या चुनाव आयोग को गलत जानकारी दी?" सवाल यह है कि क्या EC तकनीकी आधार पर तेजस्वी को चुनाव लड़ने से रोक सकता है?
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के मुताबिक, उम्मीदवार का उसी सीट पर वोटर होना जरूरी नहीं है जहां से वह चुनाव लड़ रहा है, लेकिन उसका नाम देश में कहीं भी किसी वोटर लिस्ट में होना चाहिए। अगर तेजस्वी का नाम सभी लिस्टों से हटा दिया गया, तो वह तब तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे जब तक नाम फिर से दर्ज न हो जाए।
गैर-नागरिकों का मामला
नीतीश कुमार और गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह गैर-BJP वोटरों को हटाने की साजिश नहीं है। 2024 में EC ने संसद की स्थायी समिति को बताया था कि कानून पहले से गैर-नागरिकों को वोटर बनने से रोकता है।लेकिन ADR के मुताबिक, कई जगह BLO (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) ने बड़ी संख्या में वोटरों को “not recommended” मार्क किया है। उदाहरण के लिए, दरभंगा में 10.6% और कैमूर में 12.6% वोटरों के नाम ऐसे मार्क किए गए।EC के अनुसार SIR में 18 लाख वोटर मृत पाए गए, 26 लाख ने अन्य क्षेत्रों में शिफ्ट किया
और 7 लाख डुप्लिकेट थे।
बिहार से आगे भी असर
फिलहाल यह मुद्दा बिहार में है, लेकिन विपक्षी दलों को डर है कि SIR जल्द ही पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी लागू होगा, जहां 2026 में चुनाव हैं।ममता बनर्जी ने कहा कि वह बंगाल में SIR नहीं होने देंगी, जबकि तमिलनाडु के CM एम.के. स्टालिन ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया वंचित समुदायों के वोट हटाकर BJP को फायदा पहुंचाने की कोशिश है।स्पष्ट है कि अगर SIR पूरे देश में लागू हुआ, तो आने वाले चुनाव सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि संवैधानिक मुद्दा बन सकते हैं।