बंगाल चुनाव से पहले CBI-ED की सक्रियता, विपक्ष ने उठाए सवाल

बंगाल चुनाव से पहले CBI-ED की छापेमारी तेज़ हो चुकी है। लेकिन अदालतों में ढहते केस और अधूरी जांच से एजेंसियों की साख पर सवाल उठ खड़ा हुआ है।;

Update: 2025-08-28 03:42 GMT

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ़ एक साल शेष है और इससे पहले ही केंद्रीय एजेंसियां केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED)  एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में CBI ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) विधायक सुदीप्त रॉय के घर छापा मारा, जो कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में कथित वित्तीय गड़बड़ियों की जांच से जुड़ा था। इसी बीच, ED ने TMC के ही एक अन्य विधायक जीवन कृष्ण साहा को स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) भर्ती घोटाले में गिरफ्तार कर लिया।

जीवन कृष्ण साहा: गिरफ्तारी और संदिग्ध लेन-देन

साहा को 25 अगस्त को गिरफ़्तार किया गया और 30 अगस्त तक ED की हिरासत में भेजा गया। एजेंसी के मुताबिक़ साहा और उनके परिजनों के खातों में संदिग्ध वित्तीय लेन-देन हुए। उनकी पत्नी तागोरी साहा के बैंक खाते में सितंबर से दिसंबर 2020 के बीच 26 लाख रुपये जमा हुए। जांच एजेंसियों को शक है कि साहा के अन्य रिश्तेदारों के खातों में भी घोटाले की रकम छुपाई गई।

भ्रष्टाचार बनाम राजनीति

चुनाव से पहले विपक्षी दलों पर केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता अब एक राष्ट्रीय ट्रेंड बन चुका है। बंगाल में भी यही तस्वीर दिख रही है। माना जा रहा है कि कई TMC नेता भ्रष्टाचार में शामिल हैं, लेकिन दोषसिद्धि तक पहुंचने के बजाय एजेंसियां मामलों को राजनीतिक रंग देने में ज़्यादा रुचि दिखा रही हैं।

SSC भर्ती घोटाले में पहले भी पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य फंस चुके हैं। वहीं, विधायक रॉय पर आरोप है कि उन्होंने अस्पताल के उपकरणों का निजी उपयोग किया, अवैध स्टॉल लगवाए और मरीज़ों को अपने नर्सिंग होम भेजा।

छापेमारी पर सियासी बवाल

इन कार्रवाइयों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। TMC ने इन्हें “चुनावी साज़िश” बताया। पार्टी नेता अपूर्व सरकार ने कहा कि एजेंसियां राजनीतिक प्रेरणा से काम कर रही हैं। दिलचस्प यह कि विपक्षी भाजपा ने भी कई मौकों पर CBI पर अविश्वास जताया। भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल ने कहा था “CBI से जांच की ज़रूरत नहीं, राज्य पुलिस करे।” हालांकि बाद में भाजपा ने इस बयान से किनारा कर लिया।

अदालत का सख़्त रुख

न्यायपालिका ने भी एजेंसियों की कार्यशैली पर नाराज़गी जताई। हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने पूर्वी मिदनापुर में दो भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की जांच CBI को देने से इंकार करते हुए कहा “CBI अब सिर्फ़ गैलरी शो बन गई है।” इसी तरह, विशेष CBI अदालत ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज मामले में मूल शिकायत पत्र पेश न करने पर एजेंसी को फटकार लगाई।

अदालत में ढहते मामले

कई हाई-प्रोफाइल केस कोर्ट में ध्वस्त हो चुके हैं। शारदा चिटफंड घोटाले में मुख्य आरोपी सुदीप्त सेन सबूतों की कमी के चलते तीन मामलों में बरी हो गया। इसी तरह, आरजी कर बलात्कार-हत्या केस और SSC भर्ती घोटाला भी धीमी जांच और प्रक्रियागत खामियों के कारण सवालों के घेरे में हैं।

साहा को अप्रैल 2023 में CBI ने गिरफ्तार किया था, मई 2025 में ज़मानत मिली, और अब दोबारा ED ने पकड़ लिया। यह क्रम यह दर्शाता है कि कार्रवाई तो दोहराई जाती है, लेकिन ठोस नतीजे सामने नहीं आते।

अधूरे सबूत और बेल पर नेता

21 अगस्त को CBI ने TMC विधायक परेश पाल और दो पार्षदों पर चार्जशीट दाख़िल की, मगर सबूत पुख़्ता न होने पर अदालत ने उन्हें अग्रिम ज़मानत दे दी।

विपक्ष और विशेषज्ञों का आरोप

बंगाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणजीत मुखर्जी का कहना है “चुनाव से पहले केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता एक राष्ट्रीय पैटर्न बन चुकी है। भ्रष्टाचार है, लेकिन दोषसिद्धि के बजाय राजनीतिकरण ज़्यादा दिख रहा है।” कोलकाता के वकील नबा पल्लव राय कहते हैं “चुनाव से पहले हाई-प्रोफाइल छापेमारी होती है, लेकिन केस या तो अदालत में टिकते नहीं या फिर वर्षों तक लटके रहते हैं। यह सवाल उठाता है कि क्या कार्रवाई जवाबदेही के लिए है या सिर्फ़ राजनीतिक संदेश के लिए।”

900 से अधिक लंबित केस

CBI के पास फिलहाल 900 से ज़्यादा केस लंबित हैं, जिनमें से कई 20 साल से भी पुराने हैं। इनमें न सिर्फ़ राजनीतिक संवेदनशील मामले हैं बल्कि अहम आपराधिक और भ्रष्टाचार से जुड़े केस भी शामिल हैं। केंद्रीय एजेंसियों की ताज़ा सक्रियता ने चुनावी माहौल को गरमा दिया है। लेकिन अदालत में ध्वस्त होते केस, अधूरे सबूत और धीमी जांच उनकी साख पर सवाल खड़े कर रहे हैं। बार-बार छापेमारी और गिरफ्तारियां अगर ठोस कानूनी नतीजे नहीं देतीं तो इन्हें केवल बहुत शोर, पर असर नहीं की तरह देखा जाएगा।

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