एयर इंडिया की एक और त्रासदी: 37 साल बाद फिर वही हादसा, फिर वही दर्द
अब जब 2025 में फिर से AI-171 फ्लाइट अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुई है, लोग सवाल कर रहे हैं — क्या हमने पिछली गलतियों से कुछ सीखा? या फिर 37 साल बाद भी वही लापरवाहियां दोहराई जा रही हैं?;
12 जून 2025 को अहमदाबाद के मेघानीनगर इलाके में लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 क्रैश हो गई। इस हादसे ने 37 साल पहले इसी इलाके में हुए एक और भयावह विमान हादसे की दर्दनाक यादें फिर से ताजा कर दीं। 19 अक्टूबर 1988 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 113, जो मुंबई से अहमदाबाद आ रही थी, कोटारपुर वॉटर वर्क्स के निर्माणाधीन स्थल पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। वह स्थल मौजूदा हादसे की जगह से महज 7 किलोमीटर दूर था।
1988 का हादसा
शुरुआती जांच में सामने आया कि 1988 की सुबह कोहरा और निर्माणाधीन चिमनियों से निकलता धुआं विमान के लिए घातक साबित हुआ। रनवे 7 के पाथ लाइट्स स्पष्ट नहीं थे और विमान लैंडिंग के दौरान कोटारपुर वॉटर वर्क्स की साइट पर जा गिरा। 135 यात्रियों और क्रू मेंबर्स में से 133 की जान चली गई। लेकिन जमीन पर किसी की मौत नहीं हुई थी. क्योंकि पास का मेघानीनगर स्लम उस समय कम आबादी वाला था।
दो पीढ़ियों की पीड़ा
लक्ष्मीनगर के निवासी दयाभाई ठाकोर ने बताया कि मैं उस दिन छत पर सो रहा था। तेज धमाका सुनाई दिया और जब देखा तो एक जलता हुआ विमान मेरे घर के पीछे गिरा हुआ था। मैं हक्का-बक्का रह गया। पत्नी और बच्चों को लेकर वहां से भागा। दयाभाई ने बताया कि इस साल के हादसे में फिर वैसी ही आवाज़ सुनकर वह कांप उठे।
केतन पटेल के पिता राजेश पटेल (IIM अहमदाबाद स्नातक) 1988 के हादसे में मारे गए थे। उन्होंने कहा कि मेरे पिता घर लौट रहे थे, जब हादसा हुआ। उनके जाने के बाद हमारी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। मां ने छोटे-मोटे काम करके हम दोनों भाई-बहनों को पाला। मेरा सपना MBA करके विदेश जाना था। लेकिन वो सपना उसी दिन मर गया।
जीवित बचे दो लोग
उस हादसे में शुरू में 5 लोग जिंदा बचे, लेकिन तीन कुछ दिनों बाद दम तोड़ गए। विनोद त्रिपाठी, जो तब गुजरात विद्यापीठ के रजिस्ट्रार थे, बच गए और बाद में वाइस चांसलर बने। दूसरे जीवित बचे अशोक अग्रवाल, जो एक स्थानीय व्यापारी थे, ने अपनी पत्नी और 11 माह के बेटे को खो दिया। वो मानसिक रूप से कभी उबर नहीं पाए। 2020 में उनका शव उनके फ्लैट से सड़ी हालत में मिला।
मुआवजे की लंबी लड़ाई
1989 में एयर इंडिया ने पीड़ित परिवारों को ₹2 लाख का मुआवज़ा ऑफर किया, जो उस समय की अधिकतम सीमा थी। लेकिन 20 परिवारों ने इसे “अपर्याप्त” मानते हुए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। एयर क्रैश क्लेमेंट्स एसोसिएशन के सचिव पंकश पटेल ने बताया कि हमने सेक्शन 25 के तहत अधिक मुआवज़े की मांग की. क्योंकि एयरलाइन लापरवाही का दोषी थी। साल 2009 में गुजरात हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा और ₹6 करोड़ का मुआवज़ा 9% वार्षिक ब्याज के साथ देने का आदेश दिया। लेकिन एयर इंडिया और AAI ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जो अब तक लंबित है।
पायलट और एटीसी दोनों की गलती
जस्टिस एके माथुर की अध्यक्षता में गठित कमीशन ने पाया कि उस दिन कोहरा और धुआं मिलकर विजिबिलिटी केवल 1.2 मील रह गई थी। पायलट्स ने न तो लैंडिंग क्लीयरेंस मांगा और न ही अपने ऑल्टीट्यूड की सूचना दी, जो उस समय जरूरी था। एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने रनवे विजिबिलिटी के बारे में अपडेट नहीं दिया, जिससे पायलटों ने लोकलाइज़र-DME एप्रोच का सहारा लिया — एक तकनीक जो कम विजिबिलिटी में इस्तेमाल होती है।
इतिहास फिर दोहराया?
अब जब 2025 में फिर से AI-171 फ्लाइट अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुई है, लोग सवाल कर रहे हैं — क्या हमने पिछली गलतियों से कुछ सीखा? या फिर 37 साल बाद भी वही लापरवाहियां दोहराई जा रही हैं?