सच से सामना या मिला दिव्य ज्ञान,अखिलेश बोले-राजनीति में त्याग की जगह नहीं
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की उम्मीद विधानसभा की पांच सीटों पर टिकी हुई है। लेकिन महाविकास अघाड़ी की तरफ से साफ जवाब नहीं मिला है।
Maharashtra Assembly Polls 2024: सत्ता की लड़ाई में सिद्धांतों का मोल नहीं है। जब आप को सुविधा नजर आए उसके हिसाब से राजनीति का पैमाना गढ़ लीजिए। दरअसल इसे लिखने के पीछे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का बयान है। नवंबर के महीने में झारखंड के साथ ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। महाविकास अघाड़ी से महाराष्ट्र की समाजवादी यूनिट को उम्मीद थी कि पांच सीटें मिल जाएंगी। लेकिन तस्वीर अभी साफ नहीं है। वैसे अबू आजमी (महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष) यह कह चुके हैं कि अगर पांच सीट नहीं मिली तो 25 सीट पर चुनाव लड़ेंगे। अब इसी मामले में अखिलेश यादव ने बयान दिया जिसमें वो एक बड़ी बात कह गए कि राजनीति में त्याग के लिए जगह नहीं है। यहीं सवाल उठता है कि विरोध करने के नाम पर एक दूसरे का साथ तो चाहिए। लेकिन उसकी कीमत सीटों में ना हो।
इस वीडियो में अखिलेश यादव के भाव भंगिमा को देखें तो चेहरे पर निराशा,आवाज में नरमी और ड्राइवर की तरह इशारा करने से आप समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी के साथ कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के नेता जिस तरह से पेश आ रहे हैं वो खुश नजर नहीं आ रहे हैं। लेकिन सियासत में संवेदना की जगह ही कहां होती है। अगर संवेदना की जगह होती तो शायद शिवसेना (उद्धव गुट) और बीजेपी में टकराव नहीं हुआ होता। शिवसेना के दो फांड़ ना हुए होते। एनसीपी के दो फांड़ ना हुए होते। हालांकि एक बार फिर बात हम मूल विषय की करेंगे।
साल 2017 और यूपी का चुनाव
अखिलेश यादव और कांग्रेस के रिश्ते को समझने के लिए साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव को देखना होगा। यह वो साल था जब राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक साथ आए। यूपी की सियासत में दो लड़कों की जोड़ी का नाम मिला। वैसे तो दो लड़कों की जोड़ी कुछ कमाल नहीं कर सकी। लेकिन कांग्रेस को थोड़ा बहुत फायदा मिला। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता कहने लगे कि इस गठबंधन से पार्टी को जमीनी स्तर पर नुकसान हुआ और दोनों के रास्ते अलग हो गए। दोनों दल अपनी अपनी राजनीति करते रहे। समय चक्र की तरह राजनीतिक का पहिया भी आगे की तरफ चलता गया। साल 2019 और 2022 में आया। देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा।
2024 में फिर बनी दो लड़कों की जोड़ी
2024 के आम चुनाव से पहले जब देश में राजनीतिक सरगर्मी तेज हुई तो विपक्षी दलों को यह समझ में आने लगा कि बिना एक हुए नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर नहीं किया जा सकता। लिहाजा साथ आने की कवायद शुरू हुई। लेकिन मूल प्रश्न तो सीटों के बंटवारे का था। कुछ दलों ने अपनी राह बदल ली, हालांकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने एक साथ मिल कर आगे बढ़ने का फैसला किया। 2024 के आम चुनाव में ना सिर्फ अखिलेश यादव की पार्टी बल्कि कांग्रेस को भी फायदा मिला। ऐसे में बात बड़ी साफ थी कि समाजवादी पार्टी को कांग्रेस यूपी से बाहर थोड़ा स्पेस देती।
हरियाणा ने खोल दी आंखें
यह बात अलग है कि हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तो जमीनी आधार का हवाला देते हुए सीट देने से इनकार कर दिया। ऐसे में सवाल उठा कि गठबंधन किस नाम का। लिहाजा समाजवादी पार्टी ने यूपी में 9 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में 6 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जबकि कांग्रेस की मांग पांच सीटों की थी। यानी कि इशारा साफ था कि वैचारिक तौर पर नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए एक साथ कदमताल करेंगे। लेकिन सीटों को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे। अब जब यूपी में सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहते हुए अकेले ही चुनाव लड़ रही है तो जाहिर सी बात थी कि महाराष्ट्र में समझौता इतना आसान नहीं होगा।