बिहार में पहले चरण में रिकॉर्ड 65% मतदान : जब-जब बढ़ी वोटिंग, तब-तब हुआ बदलाव

चुनाव आयोग ने कहा कि विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान शांतिपूर्ण तरीके से "त्योहार जैसे माहौल" में संपन्न हुआ, जिसमें बिहार के इतिहास में अब तक का सबसे अधिक 64.66% मतदान दर्ज किया गया।

Update: 2025-11-07 03:02 GMT
महिलाएं वोट डालने के लिए कतार में इंतज़ार करती हुईं — बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में हाजीपुर, वैशाली स्थित मतदान केंद्र पर, गुरुवार, 6 नवंबर। (पीटीआई)

बिहार में अब तक के सबसे अधिक मतदान में, गुरुवार (6 नवंबर) को पहले चरण के विधानसभा चुनाव में लगभग 3.75 करोड़ मतदाताओं में से करीब 65 प्रतिशत ने 121 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान किया।

चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा कि पहले चरण का मतदान शांतिपूर्ण ढंग से “त्योहार जैसे माहौल” में संपन्न हुआ, जिसमें बिहार के इतिहास में रिकॉर्ड 64.66 प्रतिशत मतदान हुआ।

कहां कितने वोट पड़े?

मतदान 18 जिलों में हुआ। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में सर्वाधिक मतदान दर्ज किया गया।

मुजफ्फरपुर में 70.96 प्रतिशत, समस्तीपुर में 70.63 प्रतिशत, मधेपुरा में 67.21 प्रतिशत, वैशाली में 67.37 प्रतिशत, सहरसा में 66.84 प्रतिशत, खगड़िया में 66.36 प्रतिशत, लखीसराय में 65.05 प्रतिशत, मुंगेर में 60.40 प्रतिशत, सीवान में 60.31 प्रतिशत, नालंदा में 58.91 प्रतिशत और पटना में 57.93 प्रतिशत मतदान हुआ।

चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार में 1951-52 के विधानसभा चुनाव में सबसे कम 42.6 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2000 में इससे पहले का सबसे अधिक मतदान 62.57 प्रतिशत दर्ज किया गया था।

2020 में कोविड-19 महामारी के बीच हुए चुनाव में 57.29 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि 2015 में यह 56.91 प्रतिशत और 2010 में 52.73 प्रतिशत था।

महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने बताया कि महिलाएं “अत्यधिक उत्साह” के साथ बड़ी संख्या में मतदान करने पहुंचीं। भाजपा, राजद, कांग्रेस और जनसुराज दलों ने इस उच्च मतदान को अपनी-अपनी जीत का संकेत बताया।

राजद नेता और इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने कहा, “मैं बिहार की जनता को इस भारी मतदान के लिए सलाम करता हूं। अब मैं आत्मविश्वास से कह सकता हूं कि आपने महागठबंधन की जीत सुनिश्चित कर दी है।”

भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम आज जिन सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से लगभग 100 सीटें जीतने जा रहे हैं। एनडीए का कुल आंकड़ा 2010 के रिकॉर्ड 206 सीटों को पार करेगा।”

जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा कि यह उच्च मतदान जनता की बदलाव की इच्छा का संकेत है। “14 नवंबर को जब मतगणना होगी, तब बिहार में एक नई सरकार होगी।” कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि उच्च मतदान यह दर्शाता है कि हमें स्पष्ट बहुमत मिलने वाला है।

जब-जब 5% से ज्यादा वोटिंग बढ़ी, तब-तब सत्ता पलटी

बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर 64.46% वोटिंग हुई है। अगर दूसरे और आखिरी फेज की 122 सीटों पर भी इसी तरह वोटिंग हुई, तो यह बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल सकती है। कम से कम आंकड़े तो यही बता रहे हैं।

64.46% वोटिंग एक रिकॉर्ड है। 2020 चुनाव के पहले फेज में सिर्फ 55.68% वोटिंग हुई थी, हालांकि तब चुनाव 3 फेज में हुआ था और पहले फेज में सीटें भी 71 थीं। आजादी के बाद हुए कुल 17 विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि जब-जब बिहार में 5% से ज्यादा वोटिंग बढ़ी या घटी, तो राज्य में सत्ता ही नहीं, सियासी दौर भी बदल गया। हालांकि 4 में से 3 एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बार सत्ता तो नहीं, लेकिन सियासत पूरी तरह बदल सकती है। सबसे पहले 1951 से हुए 17 विधानसभा चुनावों के नतीजों और उनके असर को देखते हैं-

जिन 4 चुनावों में 5% वोटिंग घटी या बढ़ी तब क्या हुआ… 1967 में पहली बार राज्य में गैर-कांग्रेसी सरकार 1967 के चुनाव में वोटिंग में 7% की बढ़ोतरी हुई थी। तब राज्य में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। हालांकि सरकार अस्थिर रही। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। जन क्रांति दल और शोषित दल ने कांग्रेस के वर्चस्व को तो तोड़ा, लेकिन अपनी एकजुटता नहीं रख पाए। कांग्रेस सरकार में आती-जाती रही।

इस चुनाव के बाद कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुआत हुई। 1980 में अपने बूते कांग्रेस सरकार की वापसी 1980 में 6.8% ज्यादा मतदान हुआ था। तब कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में लौटी और जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने। उस वक्त जनता पार्टी के आपसी टकराव में कांग्रेस ने उसके हाथ से सत्ता छीन ली थी। हालांकि कांग्रेस के अंदर की राजनीति के कारण 10 साल में ही कांग्रेस का शासन खत्म हो गया।

1990 में कांग्रेस राज खत्म, लालू यादव सीएम बने 1990 में 5.8% ज्यादा मतदान हुआ और कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई। जनता दल की सरकार बनी। लालू यादव मुख्यमंत्री बने। इसके बाद राज्य की राजनीति में मंडल की ऐसी छाप पड़ी कि कांग्रेस दोबारा अब तक वापसी नहीं कर पाई। लालू यादव ने बिहार की पूरी राजनीति को बदल दिया और 15 साल तक राज किया। 2005 में लालू-राबड़ी राज खत्म कर CM बने नीतीश 2005 में 16.1% कम वोटिंग हुई, लेकिन लालू-राबड़ी शासन का अंत हो गया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। इस बार सत्ता का बदलाव कम वोटिंग से हुआ था। नीतीश कुमार ने सुशासन की छवि बनाई और 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं।

चुनाव के बाद 3 तरह से बदलेगी बिहार की राजनीति

1ः नीतीश कुमार मजबूत होंगे, लौटेगा 10 साल पुराना रुतबा

एक्सपर्ट का मानना है कि नीतीश कुमार इस चुनाव में मजबूत होकर उभरेंगे। अगर ऐसा हुआ तो वह भाजपा के साथ रहते हुए 2010 वाले पुराने रुतबे में लौट आएंगे। तब नीतीश की पार्टी JDU को 115 सीटें मिली थीं। सरकार में भाजपा की दखलअंदाजी सीमित थी, लेकिन 2020 में JDU 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। सरकार में भाजपा का दखल बढ़ गया।

2ः प्रशांत किशोर 10% वोट लेकर आए तो आगे सियासत बदल देंगे

कुछ पॉलिटिकल एनालिस्ट कहते हैं, ‘नीतीश कुमार की उम्र हो चुकी है और उन्होंने अब तक पार्टी के अगले नेता का ऐलान नहीं किया है। ऐसे में राज्य की तीसरी शक्ति के पोजिशन पर प्रशांत किशोर की नजर है। अगर जनसुराज ने 10% वोट हासिल कर लिए तो बिहार में उसकी पैठ मजबूत होगी। आगे चलकर जनसुराज थर्ड फ्रंट बन सकता है।

3ः तेजस्वी हारे तो महागठबंधन में नेतृत्व को मिलेगी चुनौती

अगर महागठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है, तो तेजस्वी यादव को गठबंधन के भीतर चुनौती मिल सकती है। अभी से कांग्रेस का रुख तेजस्वी को लेकर बहुत पॉजिटिव नहीं बताया जा रहा है। आगे कांग्रेस अपना अलग रास्ता अख्तियार कर सकती है। तेजस्वी पर IRCTC घोटाले का भी आरोप है। इसके बाद अगला चुनाव 5 साल बाद होगा, उस वक्त तक वह विपक्ष में रहे और केस में सजा हो गई तो राजनीतिक नुकसान हो सकता है।

Tags:    

Similar News