राशन बेचा, मजदूरी गंवाई-वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाना बना जंग, चुनाव आयोग का SIR लोकतंत्र से विश्वासघात?
बिहार में चुनाव आयोग का वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने का फैसला सवालों के घेरे में है. पटना में हुए जन सुनवाई में बिहार में अलग-अलग जगहों से आए लोगों ने इस पूरे प्रक्रिया में जो कठिनाईयों का सामना करना पड़ा उसे लेकर अपनी आपबीती सुनाई. सुनवाई में शामिल लोगों ने इसे रद्द करने की मांग की है.;
बिहार के कटिहार की रहने वाली फूल कुमारी देवी की ऐसी कहानी है जो आपको हैरान कर देगी. बिहार में नए सिरे से वोटर्स लिस्ट तैयार करने के लिए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन चल रहा है. इस प्रक्रिया के दौरान बीएलओ ने फूल कुमारी से फोटो, आधार और वोटर आईडी कार्ड की फोटोकॉपी देने को कहा. फूल कुमारी के मुताबिक फोटो खिंचवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने अपने राशन में से चावल बेच दिए जिससे पैसे जुटाकर वो फोटो बनवा सके. इस चक्कर में मजदूरी कर अपना घर चलाने वाली फूल कुमारी दो दिनों तक काम पर नहीं जा सकीं जिससे उनकी मजदूरी भी चली गई. इससे आहत होकर वे सवाल कर रही हैं, ये कैसा सिस्टम है जो अपने ही नागरिकों को भूखे रहने को मजबूर कर रहा है.
वोटर लिस्ट के SIR को लेकर जन सुनवाई
मतदाता सूची के “विशेष गहन पुनरीक्षण” (SIR) को लेकर पटना में एक जन सुनवाई का आयोजन किया गया उसी में द फेडरल देश से बात करते हुए फूल कुमारी ने अपनी आपबीती सुनाई. इस जन सुनवाई में बिहार के कोने कोने से सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे थे जिन्होंने चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रक्रिया के बारे में अपने अनुभव साझा किए. इन लोगों ने जन सुनवाई में बताया कैसै गणना फॉर्म (Enumeration Form) BLO के बजाय कई बार वार्ड पार्षद, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या सफाईकर्मी द्वारा बांटे गए. कई मतदाताओं को फॉर्म भरने का तरीका ही नहीं बताया गया. कई परिवारों में सभी सदस्यों को फॉर्म नहीं दिया गया. कई विवाहित महिलाओं को अपने मायके से दस्तावेज लाने में कठिनाई हुई. BLO ने आधार और वोटर कार्ड जैसे पहचान पत्र भी स्वीकार कर लिया जो चुनाव आयोग के अधिकृत सूची में नहीं हैं. इक्का-दुक्का लोगों को फॉर्म की रिसीविंग मिली लेकिन वो भी मिले फॉर्म के फोटोकॉपी कराने के बाद.
जन सुनवाई में शिकायतों का अंबार
जन सुनवाई में आए लोगों को पता ही नहीं था कि उनका फॉर्म BLO ने बिना उनके हस्ताक्षर लिए पहले ही जमा कर दिया. कई जगहों पर गैर पढ़े-लिखे मतदाताओं को फॉर्म भरवाने के लिए लगभग एक फॉर्म के लिए 100 रुपये देने पड़े. कई BLO ने बैंक पासबुक की कॉपी भी ली, जबकि चुनाव आयोग के मानक प्रक्रिया में ये शामिल नहीं थी. कोसी नदी के बाढ़ प्रभावित गांवों में दस्तावेज़ बार-बार बाढ़ में बह जाते हैं, खासकर गगरीब और दलित वर्ग के लोग इसका शिकार हैं. BLO पर भारी दबाव है. जो नियमों का पालन कर रहे हैं उन्हें धीमा कहकर डांटा जा रहा है और वेतन रोकने की धमकी दी जा रही है. कुछ लोगों ने बताया कि BLO और आंगनवाड़ी सेविकाओं की इस प्रक्रिया में अत्यधिक व्यस्तता से शिक्षा और पोषण की जनकल्याणकारी योजनाओं को नुकसान हो रहा है.
जन सुनवाई में शामिल हुई बड़ी हस्तियां
चुनाव आयोग जो बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नए सिरे से वोटर्स लिस्ट को तैयार करने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है. इस पूरे प्रक्रिया को लेकर इससे सवाल खड़े करता है. इस जन सुनवाई पैनल में पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला, (पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त), पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश, अर्थशास्त्री जाँ द्रेज और प्रोफेसर नंदिनी सुंदर समेत कई लोग शामिल हुए.
असंवैधानिक है वोटर्स लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण
पटना हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज अंजना प्रकाश ने जन सुनवाई के बाद द फेडरल देश से बात करते हुए कहा, चुनाव आयोग की ये पहल असंवैधानिक है. उन्होंने कहा, लोगों के पास वोट करने का अधिकार सबसे बड़ा मौलिका अधिकार है. और इस पूरे प्रक्रिया के जरिए उसे ही छिनने की कोशिश की जा रही है. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने भी द फेडरल देश से कहा, SIR को रद्द कर देना चाहिए. पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने बताया, “प्रशासन का दुरुपयोग हो रहा है, यह लोगों की मदद नहीं बल्कि उन्हें परेशान कर रहा है. SIR की प्रक्रिया न संविधान के अनुसार है, न RTI कानून के अनुरूप है. समाजशास्त्री प्रो. नंदिनी सुंदर ने SIR को लोकसंत्र के लिए खतरनाक बताया.
योगेंद्र यादव बोले, बिहार में हो रहा फर्जीवाड़ा
इस जन सुनवाई का आयोजन करने वाले स्वराज इंडिया और भारत जोड़ो अभियान से जुड़े पॉलिटिकल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने द फेडरल से कहा, वोटर्स लिस्ट पुनरीक्षण के नाम पर बिहार में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. उन्होंने चुनाव आयोग के दावे पर हैरानी जताया कि 95 फीसदी वोटरों को फॉर्म दे दिया गया और उनसे वापस भी उसे मिल गया. जबकि बीएलओ गया भी नहीं, इसके बावजूद ये हो गया. उन्होंने चुनाव आयोग के आदेश को तुगलकी फरफान बताया. योगेंद्र दायव ने कहा, चुनाव आयोग पर भारी दबाव है. उन्होंने कहा, बिहार में इसे लागू करने की कोई जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट देखे आयोग के दावे को
योगेंद्र यादव ने कहा, चुनाव आयोग तो कह देगा कि सफलतापूर्वक बिहार में ये संपन्न हो गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट को उसके सफलता के दावे को देखना होगा. और अगर सुप्रीम कोर्ट इसपर मुहर लगाता है तो दुख की बात होगी. आपको बता दें 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होने वाली है.